प्राचीन मथुरा की खोज-भाग दो

भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा नगरी सच में तीन लोक से न्यारी है। आमजन इसकी कहानी को बस श्रीकृष्ण से जोड़कर ही जानते हैं जबकि यह नगरी अपने अतीत में एक विशाल वैभवशाली विरासत को सहेजे हुए है जो श्रीकृष्ण के जन्म से कहीं प्राचीन है। मथुरा की इस अनकही कहानी को लेकर आया है हिस्ट्रीपण्डितडॉटकॉम। यह विस्तृत आलेख लिखा है श्री लक्ष्मीनारायण तिवारी ने। श्री तिवारी ब्रज के इतिहास और संस्कृति के पुरोधा हैं जो अपने कुशल निर्देशन में ब्रज संस्कृति शोध संस्थान (वृन्दावन) का संचालन कर रहे हैं। यह आलेख थोड़ा विस्तृत है अतः इसे यहां किश्तों में प्रकाशित किया जा रहा है। प्रस्तुत आलेख प्राचीन मथुरा की खोज की दूसरी किश्त है।

(पहली किश्त पढ़ने के लिए यहां जाएं)

प्राचीन मथुरा की खोज (दूसरी किश्त)

पुरातात्त्विक साक्ष्यों के प्रकाश में हम प्राचीन मथुरा के नगर विस्तार पर कुछ चर्चा कर सकते हैं। मथुरा ने नगर का रूप कब ग्रहण किया। इस प्रश्न के उत्तर में हमारे पास लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक के पुरातात्त्विक साक्ष्य उपलब्ध हैं, इस से यह सिद्ध नहीं होता है कि मथुरा का अस्तित्व छठी शताब्दी ईसा पूर्व से पहले नहीं था।

पौराणिक संदर्भों में मथुरा

यदि हम पौराणिक संदर्भों में मथुरा को खोजते हैं तो इस नगर का सर्वप्रथम उल्लेख वाल्मीकी रामायण के उत्तर कांड में प्राप्त होता है। ‘मधु’ नामक दैत्य के नाम पर नगर का नाम मधुपुर या ‘मधुपुरी’ कहलाया। इस के आसपास का घना जंगल ‘मधुवन’ कहलाने लगा। मधु और उसके पुत्र लवण की कथा का वर्णन रामायण के अलावा अन्य पुराणों में भी मिलता है। श्रीराम के छोटे भाई शत्रुघ्न  ने लवण का वध कर मथुरा पर अपना राज्य स्थापित किया। रामायण में मथुरा को देवताओं के द्वारा निर्मित पुरी कहा गया है – ‘इयं मधुपुरी रम्या मधुरा देव निर्माता

पौराणिक मधुवन और आज का महोली

आज इस मधुवन का अस्तित्व मथुरा के निकट ‘महोली’ नामक गांव के रूप में बचा है। ब्रज के प्रमुख वनों में मधुवन का नाम आता है। प्रति वर्ष वैष्णव भक्तों द्वारा किये जाने वाली ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा में एक पड़ाव महोली ‘मधुवन’में होता है, जहाँ के दर्शन कर तीर्थ यात्री अपने आप को धन्य मानते हैं। महोली गांव से पुरातात्त्विक सामग्री भी उपलब्ध हुई है जिससे इस स्थान की प्राचीनता प्रमाणित होती है। हमारे लिए यह समझना भी काफ़ी दिलचस्प होगा कि महोली का महत्व मध्यकाल तक बना रहा। अकबर के समय में मथुरा और महोली आगरा सरकार के अंतर्गत दो स्वतंत्र परगने थे। आइन ए अकबरी से ज्ञात होता है कि मथुरा के मुकाबले महोली परगने में भूमि अधिक थी और राजस्व भी अधिक प्राप्त होता था। 

शूरसेन जनपद के सिक्के

जब हम प्राचीन मथुरा के पुरातात्त्विक साक्ष्यों की बात कर रहे हैं, तब मैं आप का ध्यान एक अत्यंत महत्वपूर्ण पुरातात्त्विक साक्ष्य की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ जिस की ओर अभी तक अध्येताओं और विद्वानों ने पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। भारत के सबसे प्राचीनतम सिक्के चाँदी के ‘आहत’ (पंच मार्क) सिक्के माने जाते हैं, जो प्रायः छठी – पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व प्रचलन में थे। इन सिक्कों में से कुछ में विशिष्ट चिह्नों के आधार पर प्रसिद्ध मुद्राविद् श्रीपरमेश्वरी लाल गुप्त ने यह निर्धारित किया कि यह सिक्के मथुरा (शूरसेन जनपद) ने प्रचलित किये थे जिन्हें हम आज मथुरा की प्राचीनतम मुद्रा मान सकते हैं, क्योंकि इस प्रकार के चिन्ह वाले सिक्कों की निधियां केवल मथुरा और उसके आसपास के क्षेत्रों से ही प्राप्त हुईं हैं।

दुनियाभर के संग्रहालयों में संकलित हैं सिक्के

सौंख के एक टीले से भी इस प्रकार के सिक्कों की निधि प्राप्त हुई थी जिसके कुछ सिक्के राजकीय संग्रहालय, मथुरा के संग्रह में हैं। इस क्षेत्र के अतिरिक्त यह सिक्के उज्जयिनी और पद्मावती के आसपास भी पाए गए हैं। इस प्रकार के 22 सिक्के ब्रिटिश संग्रहालय में भी हैं जहां वे कनिंगहम और ह्वाइटहेड के संग्रहों से प्राप्त हुए हैं। उनमें से एक का प्राप्ति स्थान मथुरा अंकित है। ग्वालियर संग्रहालय में भी इस तरह के चार सिक्के हैं, जो संभवतः प्राचीन पद्मावती से मिले थे। मुझे भी मथुरा के श्री दिनेश सोनी ने इस प्रकार का एक सिक्का भेंट किया था, जो अब ब्रज संस्कृति शोध संस्थान, श्रीगोदा विहार, वृन्दावन में संरक्षित है।

सिक्कों से ज्ञात होता है मथुरा का राजनैतिक प्रभुत्त्व

यह सिक्के मथुरा की पाँचवीं – छठी शताब्दी ईसा पूर्व में निरन्तर तीव्र होती आर्थिक गतिविधियों की ओर संकेत करते हैं और तत्कालीन भारत में मथुरा के राजनैतिक प्रभुत्व को भी प्रदर्शित करते हैं। उज्जयिनी और पद्मावती में यह सिक्के निश्चित ही व्यापारियों के माध्यम से पहुंचे होंगे। आज आवश्यकता है कि सर्वेक्षण कर ऐसे स्थानों का सूचीकरण किया जाए जहाँ से इस प्रकार के सिक्के प्राप्त हुए हैं। तब हम प्राचीन मथुरा से चलने वाली व्यापारिक गतिविधियों को और अधिक व्यापक स्तर पर समझ सकेंगे।

फोटो क्रेडिट : यह फोटो ब्रज संस्कृति शोध संस्थान वृन्दावन की डिजिटल लाइब्रेरी में संग्रहित है। मथुरा नगर का यह चित्र सन् 1815 ई० में चित्रकार सीताराम द्वारा निर्मित किया गया है। इस चित्र को चित्रकार ने कटरा केशव देव (श्रीकृष्ण जन्मस्थान) पर बनी मस्जिद के ऊपर बैठकर चित्रित किया है और नगर के मध्य स्थित चौक बाज़ार की मस्जिद से कटरा केशव देव की ओर आने वाले मार्ग को दर्शाया गया है। मथुरा नगर में यह मार्ग आज भी है । इस चित्र में मध्यकालीन मथुरा नगर की संरचना स्पष्ट दिखलाई देती है।
श्री लक्ष्मीनारायण तिवारी, सचिव, ब्रज संस्कृति शोध संस्थान (वृन्दावन)

(आगे किश्तों में जारी)

error: Content is protected !!