पर्यावरण गीत

आओ हम सब मिल कर
आज ये संकल्प उठाये
वसन विहीन वसुंधरा को
एक चादर हरी उढ़ाए
रहे सदा से मित्र हमारे
भू माँ के आभूषण प्यारे
छिन्न भिन्न होते हैं आज
जाती है वसुधा की लाज
आओ आगे मिलकर साथी
धरती की हम लाज बचाए
वसन विहीन वसुंधरा को
 एक चादर हरी उढ़ाए
आज ख़त्म होते ग्लेशियर
ओजोन लेयर घटती जाती
आने वाली नस्लों को सोंपेगे हम
इस सूखे, गर्माते मौसम की थाती
आने वाली नस्लों खातिर
साथी कुछ  चिर उपहार जुटाए
वसन विहीन वसुंधरा को
एक चादर हरी उढ़ाए
………………….योगेन्द्र  सिंह छोंकर 23 जून 2007

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