नंदा देवी की लोकयात्रा

नंदा देवी की महत्ता

मान्यता है कि  नंदा देवी गढ़वाल के राजाओं के साथ-साथ कुँमाऊ के कत्युरी राजवंश की ईष्टदेवी थी। इष्टदेवी होने के कारण नन्दादेवी को राजराजेश्वरी कहकर सम्बोधित किया जाता है। नन्दादेवी को पार्वती की बहन के रूप में देखा जाता है परन्तु कहीं-कहीं नन्दादेवी को ही पार्वती का रूप माना गया है। नन्दा के अनेक नामों में प्रमुख हैं शिवा, सुनन्दा, शुभानन्दा, नन्दिनी। पूरे उत्तराँचल में समान रूप से पूजे जाने के कारण नन्दादेवी के समस्त प्रदेश में धार्मिक एकता के सूत्र के रूप में देखा गया है।नन्दादेवी से जुडी जात (यात्रा) दो प्रकार की हैं। वार्षिक जात और राजजात। वार्षिक जात प्रतिवर्ष अगस्त-सितम्बर मॉह में होती है। जो कुरूड़ के नन्दा मन्दिर से शुरू होकर वेदनी कुण्ड तक जाती है और फिर लौट आती है, लेकिन राजजात 12 वर्ष या उससे अधिक समयांतराल में होती है।

आगरा में होगा स्वागत

उत्तराखंडी प्रवासी समिति आगरा के अध्यक्ष तेज सिंह बथ्याल ने इस बारे में बताया कि लोक यात्रा का स्वागत और पूजन-अर्चन परंपरागत उत्तराखंडी तौर-तरीके से किया जाएगा। रविवार एक सितंबर को यात्रा आगरा पहुंचेगी। पूजन कार्यक्रम के लिए सिकंदरा-बोदला के श्री हंस सत्संग मन्दिर में तैयारियां पूरी कर ली गईं हैं।

गोवर्धन में मानसी गंगा की परिक्रमा

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सांझी लोक परम्परा से देवालयी परम्परा बनी

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