मुरीदे कुतुबुद्दीन हूँ खाक-पाए फखरेदीं हूँ मैं,
अगर्चे शाह हूँ, उनका गुलामे-कमतरी हूँ मैं।
बहादुर शाह मेरा नाम है मशहूर आलम में,
व लेकिन ऐ ‘जफ़र’ उनका गदा-ए रहनशीं हूँ मैं।
‘जफ़र’ दुश्वार है हरचंद अहले मारफत होना,
मगर अहले में फ़ख़रुद्दीन हां हो सकता है सब कुछ।
बहादुर शाह जफ़र
(बहादुर शाह जफ़र छोटी उम्र में ही मौलाना शाह फ़ख़रुद्दीन से बैत-दीक्षित-हो गए थे। मौलाना शाह फ़ख़रुद्दीन एक पहुंचे हुए सूफी महात्मा थे। शाह फ़ख़रुद्दीन के इंतकाल के बाद जफ़र ने उनके पुत्र मौलाना कुतुबुद्दीन और पौत्र नसीरुद्दीन से बड़ी घनिष्ठता रखी। अपने कुछ शेरों में जफ़र ने इस बात को जाहिर किया है और गुरु के प्रति भक्ति और निष्ठा के भाव दर्शाए हैं।)
सहायता :
खाक-पाए : पांव की धूल
गुलामे-कमतरी : निकृष्ट सेवक
गदा-ए रहनशीं : राह में बैठने वाला फकीर।
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