पूर्व कथा
पिछले भागों में हम चंद्रवंश की शुरुआत, यदुवंश की शुरूआत, श्रीकृष्ण की कथा, महाजनपदों का विवरण, मौर्य साम्राज्य, शुंगवंशी राजाओं, मथुरा के मित्रवंशी राजाओं, मथुरा के शक शासक राजुबुल, शोडास, मथुरा के दत्त शासक, कुषाण शासक विम तक्षम, कनिष्क, वासिष्क, हुविष्क, वासुदेव, नाग राजाओं, गुप्त वंश के चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, कुमारगुप्त तक कि कथा का वर्णन कर चुके हैं। अब आगे…
कन्नौज के मौखरियों के अधीन मथुरा
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद ईस्वी 554 में कन्नौज में मौखरि वंश के शासक ईशानवर्मन ने महाराजधिराज की उपाधि धारण की। ईशानवर्मन के समय पर मौखरि राज्य की सीमाएं पूर्व में मगध, दक्षिण में मध्य प्रान्त और आंध्र, पश्चिम में मालवा और उत्तर पश्चिम में थानेश्वर तक थीं। ईशानवर्मन के बाद जिन शासकों का मथुरा प्रदेश पर राज्य रहा वे क्रमशः शर्ववर्मन, अवन्तिवर्मन, ग्रहवर्मन नामक मौखरि शासक थे।
मौखरियों और वर्धन वंश के सम्बंध
ईस्वी 606 में ग्रहवर्मन का विवाह थानेश्वर के शासक प्रभाकरवर्धन की पुत्री राजश्री के साथ हुआ। प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के बाद मालव के राजा देवगुप्त ने ग्रहवर्मन को मार डाला और राजश्री को कन्नौज में बन्दी बना लिया। राजश्री के बड़े भाई राज्यवर्धन ने मालव पर चढ़ाई करके देवगुप्त को परास्त किया। परन्तु इस विजय के उपरांत ही गौड़ के शासक शशांक ने धोखे से राज्यवर्धन को मार डाला।
हर्षवर्धन ( 606 – 647 ईस्वी)
हर्षवर्धन प्रभाकरवर्धन का छोटा पुत्र था। राज्यवर्धन की मृत्यु के बाद यह शासक बना। इसने एक विशाल सेना संगठन करके उत्तर और पूर्व भारत के बहुत से राज्यों को जीता। इसकी बहन राजश्री जो कन्नौज के कारागार से निकलकर विंध्य के जंगलों में चली गई थी को यह वापस लाया। हर्ष ने कन्नौज के राज्य का संचालन करने को राजश्री से कहा पर राजश्री व अन्य सामन्तों के कहने पर हर्ष को ही कन्नौज का राज्य संभालना पड़ा। अब मथुरा का राज्य हर्षवर्धन के अधिकार में आ गया। हर्षवर्धन ने अपने राज्यारोहण के वर्ष से एक नया संवत चलाया था, जो हर्ष संवत के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ग्यारहवीं शती के लेखक अलबेरुनी ने लिखा है कि श्रीहर्ष का सम्वत मथुरा और कन्नौज में प्रचलित था।
ह्वेनसांग का मथुरा वर्णन
ह्वेनसांग एक चीनी यात्री था जो 635 ईस्वी में हर्षवर्धन के समय पर भारत आया था। यह मथुरा भी पहुंचा था। इसने मथुरा का विस्तार से वर्णन किया है।
“मथुरा राज्य का क्षेत्रफल 5000 ली (लगभग 833 मील) तथा इसकी राजधानी (मथुरा नगर) का विस्तार 20 ली ( लगभग 3 ½ मील) है। यहां की भूमि बहुत उपजाऊ है और यहां अन्न की पैदावार खूब होती है और आम बहुत पैदा होता है।”
यहां के निवासियों के बारे में वह लिखता है कि
“उनका स्वभाव कोमल है और वे दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं। वे लोग तत्वज्ञान का गुप्त रूप से अध्ययन करना पसंद करते हैं। ये लोग बड़े परोपकारी हैं और विद्या का प्रति बड़े सम्मान का भाव रखते हैं।”
ह्वेनसांग द्वारा मथुरा की धर्मिक स्थिति का वर्णन
मथुरा की तात्कालिक धार्मिक स्थिति का परिचय ह्वेनसांग के इस वर्णन से मिलता है।
“इस नगर में करीब 20 संघाराम हैं, जिनमें 2000 भिक्षु रहते हैं। इन भिक्षुओं में हीनयान और महायान दोनों मतों को मानने वाले हैं। यहां पांच देव मन्दिर भी हैं जिनमें बहुत से साधु पूजा करते हैं। राजा अशोक के बनवाये तीन स्तूप यहां विद्यमान हैं।”
हर्ष की मृत्यु के बाद मथुरा
हर्ष की मृत्यु के बाद उसका राज्य तमाम छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित हो गया। करीब पचास वर्ष तक मथुरा की राजनीतिक स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है।
यशोवर्मन (लगभग 700 से 740 ईस्वी)
ईस्वी आठवीं शती के प्रारंभ में कन्नौज में यशोवर्मन नामक शासक का पता चलता है। यशोवर्मन की वंश परम्परा के सम्बंध में निश्चित रूप से कुछ ज्ञात नहीं है। सम्भव है कि वह कन्नौज के मौखरि वंश का ही हो। कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार कश्मीर के तत्कालीन शासक ललितादित्य ने कन्नौज पर चढ़ाई करके यशोवर्मन को पराजित कर दिया था। इस विजय से यमुना नदी के किनारे तक का प्रदेश ललितादित्य के अधिकार में हो गया था। ललितादित्य के अधिकार में गए प्रदेश में मथुरा भी शामिल था। पर यह अधिकार बहुत कम समय तक ही रहा। यशोवर्मन के बाद कुछ समय तक मथुरा की राजनीतिक स्थिति के बारे में ठीक-ठीक जानकारी नहीं मिलती है।
गुर्जर-प्रतीहार वंश
आठवीं शती के उत्तरार्ध से उत्तर भारत में गुर्जर-प्रतिहारों की शक्ति बढ़ने लगी। गुर्जर लोग राजस्थान में जोधपुर के आसपास रहते थे। भारत में सबसे पहले गुर्जर राज्य स्थापित करने वाले राजा का नाम हरिश्चंद्र था। यह ब्राह्मण बताया गया है। इसकी दो स्त्रियां थीं। ब्राह्मण स्त्री से प्रतीहार ब्राह्मणों हुए और भद्रा नामक क्षत्रिय पत्नी से प्रतीहार क्षत्रिय हुए। गुप्त साम्राज्य की समाप्ति के बाद हरिश्चंद्र और उसके क्षत्रिय पुत्रों ने जोधपुर के उत्तर-पूर्व में अपने राज्य का विस्तार कर लिया। इस वंश के दस राजाओं ने करीब दो शताब्दियों तक राजस्थान और मालवा के एक बड़े भूभाग पर राज्य किया। इन्होंने पश्चिम की तरफ से बढ़ते हुए अरब लोगों की शक्ति को रोकने का कार्य किया। प्रतीहार राजा वत्सराज के पुत्र नागभट्ट ने अरबों को हराकर उनकी बढ़ती हुई शक्ति को रोका।
कन्नौज के प्रतीहार शासक
नवीं शती के आरम्भ से कन्नौज पर प्रतीहार शासकों का राज्य स्थापित हो गया। वत्सराज के पुत्र नागभट्ट ने 810 ईस्वी में कन्नौज को जीता। अब मथुरा प्रदेश भी गुर्जर-प्रतीहार साम्राज्य का अंग बन गया। मथुरा पर इस समय के लेकर दसवीं शती के अंत तक गुर्जर-प्रतीहार साम्राज्य का शासन रहा।
नागभट्ट के बाद उसका पुत्र रामभद्र 833 ईस्वी में कन्नौज साम्राज्य का अधिकारी हुआ। उसके बाद उसका पुत्र मिहिरभोज (836 से 885 ईस्वी) शासक बना। यह एक प्रतापी शासक सिद्ध हुआ। इसने अपने साम्राज्य को पंजाब, उत्तर प्रदेश और मालवा तक विस्तृत कर लिया। मिहिरभोज का पुत्र महेन्द्रपाल (885 से 910 ईस्वी) भी अपने पिता के समान ही था। उसने उत्तरी बंगाल तक अपना राज्य फैला लिया। अब हिमालय से लेकर विंध्याचल और बंगाल की खाड़ी से लेकर अरब सागर तक प्रतिहारों का शासन हो गया था।
आर्यावर्त का महाराजाधिराज
महेन्द्रपाल का दूसरा पुत्र महीपाल (912 से 944 ईस्वी) था। यह अपने बड़े भाई भोज द्वितीय के बाद साम्राज्य का अधिकारी हुआ। संस्कृत का प्रसिद्ध विद्वान राजशेखर इसी के काल में हुआ था जिसने महीपाल को ‘आर्यावर्त का महाराजाधिराज’ लिखा है। अल-मसूदी नामक मुसलमान यात्री 915 ईस्वी में बगदाद से भारत आया था। प्रतीहार साम्राज्य का वर्णन करते हुए इस यात्री ने लिखा है कि उसकी दक्षिणी सीमा राष्ट्रकूट से मिलती थी और सिंध का कुछ भाग तथा पंजाब भी इसमें शामिल थे। प्रतीहार सम्राट के पास घोड़े तथा ऊँट बड़ी संख्या में थे। साम्राज्य के चारों कोनों में सात लाख से लेकर नौ लाख तक फौज रहती थी।
परवर्ती प्रतीहार शासक (944 से 1035 ईस्वी)
महीपाल के उत्तराधिकारी क्रमशः महेन्द्रपाल, देवपाल, विनायकपाल, विजयपाल, राज्यपाल, त्रिलोचन पाल नामक प्रतीहार शासक हुए। इनके समय में साम्राज्य के कई प्रदेश स्वतंत्र हो गए। बुंदेलखंड में चंदेल, महाकौशल में कलचुरी, मालवा में परमार, सौराष्ट्र में चालुक्य, पूर्वी राजस्थान में चाहमान, मेवाड़ में गुहिल तथा हरियाणा में तोमर आदि अनेक राजवंशों ने अपने राज्य स्थापित कर लिए थे।
प्रतीहार शासन में मथुरा
नवीं शताब्दी के आरम्भ से लेकर दसवीं शताब्दी के अंत तक करीब दो सौ वर्ष तक मथुरा प्रदेश गुर्जर-प्रतीहार साम्राज्य के अंतर्गत रहा। प्रतिहारों के शासनकाल में हिन्दू पौराणिक धर्म की अच्छी उन्नति हुई। मथुरा से उपलब्ध तत्कालीन कलाकृतियों से इसकी पुष्टि होती है।
(आगे किश्तों में जारी)
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