दो खामोश आंखें – 20 Posted on 2nd February 2011 by Yogendra Singh Chhonkar योगेन्द्र सिंह छोंकर जी जाऊं पी विसमता विष रस समता बरसाऊँ रहे सदा से रोते जो उनको जाय हसाऊँ जो एक बार फिर से देख पाऊँ दो खामोश ऑंखें
साहित्य अनुपम है ब्रजभाषा में रचित सरल सुंदरकांड! Yogendra Singh Chhonkar 27th March 2023 0 श्रीराम जी के जीवन चरित पर आधारित प्रथम रचना महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण है, जो संस्कृत भाषा की रचना है। कालांतर में देश भर में […]
साहित्य स्टीम नेविगेशन के क्षेत्र में भारतीय व्यापारियों के संघर्ष की अनकही कहानी : सागर के सेनानी Yogendra Singh Chhonkar 3rd April 2023 0 सागरिक परिवहन का किसी भी राष्ट्र की सामरिक और व्यापारिक प्रगति के क्षेत्र में बड़ा योगदान होता है। यूरोपियन लोगों ने अपनी इसी सागरिक क्षमता […]
साहित्य पाबू प्रकाश के काव्य का मूल्यांकन Yogendra Singh Chhonkar 11th November 2021 0 पाबू प्रकाश एक प्रबन्ध काव्य है जिसमें समसामयिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों के साथ पाबू का सम्पूर्ण चरित्र वर्णित है। हम उसे एक महाकाव्य की […]