दो खामोश आंखें – 17 Posted on 2nd February 2011 by Yogendra Singh Chhonkar योगेन्द्र सिंह छोंकर करने को सुबह शाम क्यों देती हो होठों को थिरकन हो जाएगी दिन से रात जो एक बार पलक झुका लें दो खामोश ऑंखें
साहित्य दो खामोश आंखें – 21 Yogendra Singh Chhonkar 2nd February 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर कभी भटकाती कभी राह दिखाती कभी छिप जाती कभी आकर सामने अपनी ओर बुलाती मुझसे है खेलती या मुझे खिलाती दो खामोश […]
साहित्य बनी ठनी प्रेमकथा से चित्रकला तक Yogendra Singh Chhonkar 13th October 2021 0 भारतीय चित्रकला की लघु चित्र शैली के जानकारों में ऐसा कौन होगा जो ‘बनी-ठनी’ को न जानता हो! पर वह महिला जो इस शैली की […]
साहित्य दो खामोश आंखें – 3 Yogendra Singh Chhonkar 28th January 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर तेरे जाने का ख्याल मुझे दहशत नहीं देता मत समझना मैं तुम्हे दिल से नहीं लेता न होऊंगा उदास पर करूँगा तलाश […]