दो खामोश आंखें – 14

योगेन्द्र सिंह छोंकर
चंद कतरे उनके
लफ़्ज़ों के
चंद हर्फ़
उनकी मुस्कराहट के
वो मन भावन मिठास उनके
जज्बात की
सहेजने को ताउम्र
मुझे सौंप गयी है
सौगात
दो खामोश ऑंखें
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