कहानी
पायल कटियार
दीनू सब्जी की ठेल वाले ने अवाज लगाई- आलू, प्याज टमाटर गोभी, पत्ता गोभी, हरी मटर, हरी-हरी सब्जियां ले लो। आवाज सुनते ही एक महिला ने अपने घर के अंदर से ही आवाज लगाई रूक जाना आती हूं। आती हूं सुनकर सब्जी बेचने निकला दीनू रूक जाता है और पसीना पोंछने लगता है। तेज तमतमाती धूप में उसका काला रंग और ऊपर से बहता पसीना उसे और भी गहरा सीसे के समान काले सीसे की तरह से चमका रहा था। ठेल पर रखी एक छोटी सी बाल्टी के पानी से वह अपनी सब्जियों पर छिड़काव करता है और एक बार फिर से आवाज लगाता है हरी-हरी सब्जियां ले लो, इतने में करीब पांच मिनट बाद घर से बाहर निकलकर आती महिला एक-एक सब्जी का भाव लेना शुरू कर देती है।
आलू क्या हिसाब से दे रहे हो? दीनू- तीस रुपये किलो हैं दीदी, महिला- टमाटर क्या रेट चल रहा है? 100 रुपये का बिक रहा है मगर आप चलो मुझे 90 के हिसाब से दे देना बोनी का टाइम है और बताओ क्या चाहिए? सब्जी बिकने की एक उम्मीद से वह महिला की ओर निहारता है। ठेल की हर सब्जी का रेट लेने के बाद महिला मुंह बनाते हुए सब्जी वाले से कहने लगती है, कितना मंहगी दे रहे हो सब सब्जी? महिला- आलू 20 लगाओ तो मैं पांच किलो ले लूं, दीनू- दीदी इतने में कैसे पड़ता आ जाएगा? अच्छा चलो आप पांच किला लोगी तो आपको 25 रुपये के हिसाब दूंगा। वरना एक आधा वाले के लिए तो यही रेट है? महिला आसमान की ओर निहारते हुए बड़बड़ाती है-गर्मी में भी आग लग रही है कितनी आग बरस रही है जले जा रहे हैं, महिला सब्जियों को टटोलते हुए- नहीं नहीं तो रहने दो, सही से लगाओ तो ही लूंगी, और हां टमाटर भी 80 लूंगी समझे देना हो तो दे जाओ वरना रहने दो शाम को मॉल जाकर खुद ही ले आऊंगी। दीनू घबराते हुए यह सोचते हुए कि कहीं महिला नाराज न हो जाए महिला से कहता है- चलो दीदी आप ले लो बोनी तो करवाओ।
इस वार्तालाप के बीच दीनू को एक जगह पर खड़े-खड़े 20 मिनट निकल गया था, दीनू बार-बार पसीना पोछते हुए महिला के मनमाफिक रेट में पांच किलो आलू एक किलो टमाटर दे देता है। इसी बीच दूसरी महिला भी अपने घर से निकल कर आ जाती है और दीनू से सब्जियों के भाव लेने लगती है। दोनों आपस में बात करने लगती हैं कि डायबिटीज में करेले फायदेमंद होते हैं डॉक्टर से दवा लेकर आई है पांच हजार की टेस्टिंग में खर्च हो गए तीन हजार की दवाएं आई हैं। दवा डॉक्टर की बातें कर ही रहीं थीं कि एक और महिला आ जाती है उसको देखकर दोनों कहने लगती हैं कि कल कहां घूमने चली गई थीं आप? तीसरी महिला इठलाती हुई अरे मॉल गई थी मैं तो सारा सामान वहां से ही लेकर आती हूं। बस सब्जी खरीदती हूं ठेल से। दूसरी महिला पिछली बार मेरे छोले में तो कीड़े निकल आए थे रखे हुए थे शायद सारे के सारे फेकने पड़े थे। वहां से भी देखभाल कर ही लाना पड़ता है।
पहली महिला- अब पैकिंग में क्या देखोगी? अब घर आकर ही पता चलता है। तीनों महिलाओं की बातचीत सुनता हुआ दीनू सोचता है मेरा अगर एक टमाटर खराब निकल आए तो यह महिलाएं दूसरे दिन उसके बदले मुझसे दो टमाटर फ्री में रखवा लेती हैं अब वहां वापस लेकर नहीं गईं वापस करने के लिए? तभी पहली वाली महिला – चलो इसमें धनिया भी दो अब, सब सब्जीवाले धनिया फ्री में ही देते हैं। दीनू सब्जीवाला चुपचाप थोड़ा सा धनिया देने लगता है तभी महिला- अरे और डालो इतना बस? सब्जीवाला- दीदी गर्मी में धनिया बहुत महंगा होता है 200 रुपये किलो धनिया चल रहा है कहते हुए थोड़ा सा धनिया और डाल देता है सब्जी की डलिया में, और कुछ चाहिए दीदी? नहीं बस कहते हुए महिला पैसे देकर मन ही मन मुस्कराती हुई अपने घर के अंदर चली जाती है। मन ही मन विचार करती है आज शाम को अपने पति को बताएगी देखो इसे कहते हैं सब्जी खरीदना। पता नहीं कहां से इतनी मंहगी सब्जी उठा लाते हैं वह भी खराब-खराब सी। दूसरी और तीसरी महिला भी एक एक सब्जी लेकर मोल भावकर सब्जी लेकर अपने-अपने घरों की ओर भागती हैं कहते हुए धूप में जल गए। वहीं बेचारा दीनू सब्जीवाला अपनी किस्मत समझ मुस्कराता हुआ फिर से चिल्लाने लगता है हरी सब्जी ले लो हरी सब्जी, ताजी-ताजी पत्ता गोभी, आलू टमाटर, फूल गोभी, हरी प्याज ले लो। एक बार फिर से पसीना पोछता हुआ आगे चल देता है।
रात तक सब्जी बेचने के बाद दीनू सब्जीवाला अपने घर पहुंचता तो बच्चे उसका इंतजार करते हुए सो चुके होते हैं। बस पत्नी ही जाग रही होती है। दीनू हाथ मुंह धोकर बैठता है और अपनी जेब के सारे पैसे निकालकर पत्नी के समाने रख देता है। पैसे गिनते हुए पत्नी कहती है यह क्या आज तो तुम्हारी लागत का भी नहीं मिला? दीनू- क्या करूं, इस गर्मी में ज्यादातर सब्जी तो धूप में खराब हो जाती है। लोग खराब सब्जी नहीं लेते हैं पालक तो बची हुई सारी गाय को डालकर आया हूं। कितना तो खराब हो जाता है माल (सब्जी)। दीनू की पत्नी- शाम को सब्जी मंडी में ही क्यों नहीं बेचते हो सब्जी? दीनू- वहां पर सबका ठिया ठिकाना तय है। 100 रुपये रोज देना पड़ता है और अगर ठेल लेकर चलूं तो पुलिसवाले परेशान करते हैं। पिछले साल याद है एक पुलिस वाले ने मेरी गुस्से में ठेल पलट दी थी। अब मजबूरी है इस धूप में ठेल लेकर घूमता हूं तो चार पैसे मिल भी जाते हैं वरना रोटी के भी लाले पड़ जाएं। इधर दीनू की पत्नी दीनू के आने के बाद दीनू से पैसे मांगकर कई कामों को निपटाने की सोच के बैठी थी मगर आज की कमाई देख कुछ नहीं कहती है। बेचारी अपनपढ़ दीनू की अनपढ़ पत्नी अपने दिमाग की बनाई लिस्ट को दीनू से कहने की हिम्मत नहीं करती है लेकिन वहीं अनपढ़ दीनू भी उसके मन और चेहरे के भाव को पढ़ना अच्छी तरीके से जानता है। वह सबकुछ समझ जाता है कि कुछ पत्नी कुछ झिपा रही है उससे।
दीनू- क्या हुआ? अब क्या टेंशन पाल ली है? पत्नी- कुछ नहीं कहते हुए खाना लगाने लगती है। दीनू- अब बता भी दै। इधर खाना लग चुका होता है। दीनू खाना खाना शुरू कर देता है और वह बड़ी बेफक्री के साथ खाना खाने लगता है क्योंकि दीनू का तो जीवन ही इस तरह से टेंशनों के साथ जीने का आदी हो चुका था। दीनू – फीस भरनी होगी, किताबें लेनी होगीं मालुम है, और क्या मुसीबत होगी? दीनू बेसर्मी से मुस्कराता हुआ बड़े-बड़े रोटी के गस्से खाता हुआ पत्नी से सब कहता जाता है। दीनू की पत्नी- भुनभुनाते हुए- मालूम है तो क्या बताऊ? स्कूल में बच्चे की रोज पिटाई होती है। किताब नहीं है कापी नहीं है फीस भी नहीं भरी गई है। एक ड्रेस है वह भी तीन साल से पहन रहा है। जगह-जगह से घिस गई है। अब बच्चों को तो शर्मिदंगी होती ही है सब अच्छे से आते हैं और हमारे बच्चे… दीनू खाना उसी तरह से खाता रहता है जैसे उसे इन बातों से कुछ फर्क ही नहीं पड़ रहा हो। रोटी खाते हुए ही बीच में पानी पीते हुए दीनू- देख हम नहीं पढ़े हमारे बाप दादा नहीं पढ़े, मर तो नहीं गए? भाड़ में जान दे, एक दो साल रूक जा एक ठेल का और इंतजाम कर दूंगा बस ठेल के ऊपर तक निकल जाने दे लल्लुए (बेटे को)।
दीनू की बात सुनकर उसकी पत्नी और तुनक जाती है,पत्नी- तुम क्या चाहते हो जैसे हमारी तुम्हारी कटी तैसे ही इनकी सबकी कटे? दीनू अब तांव में आ जाता है, दीनू- तो तू क्या चाहती है मैं कहीं चोरी चकारी करूं? कहीं डाका डालूं? अब ठेल में जितना कमता है सो सब तेरे पास ही लाकर देता हूं? बस एक, एक पुड़िया के अलावा और कोई खर्चा तो है नहीं मेरा? दीनू की बातें सुन पत्नी को और भी गुस्सा आ जाता है और वह चिल्लाते हुए कहती है- तो क्या मेरा खर्चा है? जब से शादी होकर आई हूं एक साड़ी नहीं खरीदी। इधर-उधर से मिली साड़ियों से ही काम चला लेती हूं। कपड़े ढंग के नई हैं तासूं रित्तेदारीयू में भी जाएबो बंद कर दओ है। दीनू- अब रोटी खा ले चल, कल देखूंगो काकन्नो (क्या करना) है? कहते हुए दीनू अपनी चटाई लेकर छत पर धम्म्- धम्म तेजी से पैरों की आवाज करता हुआ चला जाता है। एक कमरे में रहता हुआ दीनू अपने चार बच्चों के साथ गरीबी की जिंदगी बसर कर रहा था। उसकी ठेल की कमाई में इतनी बचत भी न थी कि वह एक पंखा भी खरीद सके। उसकी हालत उसी चादर की तरह थी कि ऊपर से ढ़कता तो नीचे खुल जाता और नीचे ढ़कता तो ऊपर खुल जाता। एक समस्या का समाधान नहीं कर पाता चार समस्याएं और खड़ी हो जाती थीं। छत पर पहुंच कर देखता है चारों बच्चे सो चुके थे। वह भी जगह बनाता हुआ अपनी चटाई बिछाता है और सबसे छोटे बच्चे के करीब लेट जाता है। भयंकर गर्मी में उसकी चटाई भी नीचे से दहकने लगती है। कैसे लेटे हैं यह गर्मी में बड़बड़ाता है और फिर वह लेटा- लेटा तारों को देखता तो कभी पास में लेटे अपने बच्चों की ओर निहारता। मन ही मन विचार कर रहा था प्रभु जहां जरूरत है वहां देते नहीं हो और मुझ गरीब को तुमने चार चार औलाद दे दी अब पाले नहीं पल रहीं हैं।
तभी उसे ख्याल आया कि नई आबादी वाली दीदी देखो कितना परेशान हैं बच्चे के लिए, वह शर्माइन से बातें कर हीं थी सो वह सब सुन रहा था बता रहीं थीं कि लाखों रुपये खर्च कर चुके हैं एक बच्चा पाने के लिए मगर ऊपरवाला है कि उनकी सुन ही नहीं रहा है। दीनू बेसक किसी से बात नहीं करता था मगर ठेल पर खड़ी औरतें जो आपस में बात करती थीं उससे शहर की कई कॉलोनी और गलियों के घरों की पता रहती है कि किसके घर में क्या चल रहा है। दीनू सब जानता था वह सबकी सुनता जरूर रहता था मगर किसी से मतलब नहीं रखता था। दीनू अपने दीन हालतों के टूटे हुए सपनों के बीच कब गहरी नींद में चला गया पता ही नहीं लगा। दूसरे दिन रोज की तरह वह सुबह तड़के चार बजे उठा और मंडी की ओर अपनी ठेल लेकर निकल गया। सुबह जब सात बजे तक सब्जी लेकर लौटा तो उसके बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर चुके थे। बड़े बेटे ने दीनू को देखकर हाथ फैलाते हुए फीस के पैसे मांगे तो दीनू ने शाम को देने का वादा कर दिया। दीनू का बड़ा बेटा- आज मैं नाय जाए रहो स्कूल, रोज-रोज का बहाना करुं स्कूल में मैडम से? मेरी मार पत्त है तुम्हें का है कहते हुए उसने अपना बैग एक तरफ पटक दिया। यह देख दीनू की पत्नी ने उसके गाल पर जोरदार दो थप्पड़ जड़ दिए। जा चुपचाप स्कूल, कह दी न, आज शाम को दे देंगे। कल की बोल दियो मैडम से। दीनू का बेटा अपने आंसू पोछता हुआ बैग उठाकर चल देता है उसके पीछे-पीछे छोटे भाई बहन भी चल देते हैं। बड़े भाई की मार देखकर तीनों सहम जाते हैं और कुछ मांगने की हिम्मत नहीं करते हैं।
बच्चों के जाने के बाद दीनू की ठेल सही से लगाने में मदद करना शुरू देती है। दीनू- कछु खबाए के भेजो है या यूंही चले गए बालक? पत्नी- हां लाए के बहुत कछु धरो हतो सो बनाए के दे देती। दीनू- परामठे तो बनाए देती आलू तो धरे थे बाए भरके बनाए देती। जान देओ अब आनके खाए लेंगे। (दीनू की पत्नी को बच्चों के ब्रेकफास्ट से कोई लेना देना नहीं था शायद उसे पता ही न था कि सुबह का नाश्ता भी जरूरी होता है। दो वक्त की रोटी ही उनके लिए सारे पोषक तत्वों की पूर्ती करते थे इसलिए उसे भी कोई परवाह न थी कि बच्चे भूखे जा रहे है या प्यासे) लापरवाही से कहते हुए वह भी दीनू की ठेल में सब्जियों को सजाने में लगी रहती है। दीनू अपनी ठेल तैयार कर पत्नी की ओर देखते हुए कहता है- एक कप चाय तो पिला ही देती? दोपहर में टाइम मिल गयो तो रोटी खाएबे आए जाउगो। तू बच्चन संग खाए ले कर मेरी का है कछु लेके खाए लूंगो। पत्नी हां हां मालुम है कितनो खाए लोगे? मै अबे हाल रोटी सेंक देत हूं लेय जाओ कहीं छांव में बैठके खाए लियो। दीनू- चल ठीक है लेआ कहते हुए वहीं ठेल के पास बैठ जाता है। पत्नी अंदर जाकर रोटी के लिए आटा लगाती है तभी पता चलता है गैस खत्म हो गई है। बाहर आकर दीनू से कहती है रुको जरा गैस भरवाए लाउं कहते हुए छोटा सा सिलेंडर लेकर चल देती है मगर दीनू अब टाइम नहीं है कहता हुआ अपनी ठेल लेकर चल देता है। आज सुबह पत्नी और बच्चों के झगड़े में दीनू पानी की बोतल ले जाना भी भूल जाता है। जब दोपहर को तेज प्यास लगती है तब उसे याद आता है अरे आज तो पानी भी नहीं है। चलो कहीं देखते है सोचकर वह तमतमाती तेज धूप में चिल्लाता है हरी-ताजी सब्जी ले लो सब्जी, हरी ताजी सब्जी ले लो सब्जी —
(यह कहानी पायल कटियार ने लिखी है। पायल आगरा में रहती हैं और पेशे से पत्रकार हैं।)
[नोट: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।]