जीवन की नई शुरुआत

कहानी

पायल कटियार 

पूजा संगीता के लिए फिक्रमंद थी मगर संगीता को पूजा की कही एक-एक बात सुई की तरह चुभ रही थी। पूजा संगीता की दूर रिश्ते की भाभी थी। दोनों फोन पर बात कर रहीं थीं। 

दीदी! आप एक बार शांति से विचार करके तो देखिए। हम आपका बुरा नहीं चाहते हैं। – कहते हुए पूजा ने गहरी लंबी सांस ली और धम्म से कुर्सी पर बैठ गई। फोन चालू था। कुछ देर तक दूसरी साइड से कोई आवाज नहीं आई गई, तो पूजा ने ही यह कहकर फोन काट दिया कि आप एक बार अपनी बेटी और दामाद से पूछ लीजिए। विचार विमर्श कर लीजिए कोई जल्दी नहीं है। इधर पूजा का पति पूजा का चेहरा पढ़ते हुए कहने लगा – कितनी बार कहा है कि किसी के भले की मत सोचा कर, आज का वक्त ऐसा नहीं है। तुम तो दूसरों का भला सोचती हो लेकिन सामने वाला तो यह नहीं सोचता है। उसी समय नहाकर बाथरूम से आए पूजा के पति ने पूजा और संगीता की फोन पर चल रही बातों को सुन लिया था। उसने तौलिये से सिर के पानी को पौंछते हुए पूजा को समझाने का प्रयास किया। फिर आवेश में आकर कहने लगा – कर ली मन की तसल्ली, मना किया था, नहीं मानी। अब क्या सोचेगी संगीता दीदी? वह पढ़ी लिखी नहीं है उसे अच्छे भले का अगर इतना ही ज्ञान होता तो आज इस कदर धक्के न खा रही होती। अपने सिर को कसकर दबाते हुए पूजा कहने लगी- मालूम है वह समझदार नहीं हैं इसीलिए तो उन्हें समझा रही थी। वरना चालाक आदमी तो अपना भला खुद ही सोच लेता है।

 दिल दुखा था पूजा का लेकिन उसे पता था कि वह किसी का बुरा नहीं सोच रही थी इसलिए उसे अपने दिल पर बोझ नहीं बल्कि दिल का बोझ हल्का होता ही महसूस कर रही थी। पूजा ने अपने पति की आंखों में आंखे डालकर कहा- मैं तो बस उनके भले के लिए ही चाह रही हूं। बहुत परेशानियां झेल लीं हैं अब अपने लिए जी लें वह। बेटी की शादी हो गई। अब बेटी अपनी गृहस्थी संभालेंगी कि इनका ख्याल रखेंगी? 

पूजा का पति- लेकिन उसकी समझ में तो तेरी भलाई की बात नहीं आ रही है पूजा के पति ने झुंझलाहट भरे शब्दों में कहा। 

पूजा की एक दिन पहले ही संगीता की बेटी से बात हुई थी वह भी यही कह रही थी कि मामी मम्मी किसी कीमत पर तैयार नहीं होगी। बाकी आप खुद बात करके देख लीजिए। 

पूजा ने विचार कर लिया था अब जो हो जाए वह उससे खुद ही बात करेगी क्योंकि संगीता से उसकी दूसरी शादी के बारे में बात करने की हिम्मत किसी और में न थी। न उनकी बेटी में न ही उनके भाई यानि उसके पति में।  

पूजा के पति ने भी यह कहकर टाल दिया कि बेकार है उससे बात करना वह हमें गलत ही समझेगी। हुआ भी वही आज जब पूजा ने जब संगीता से बात की तो वह बुरी तरह से उस पर बिफर पड़ी। ऊपर से पूजा के पति से यह तक कह डाला कि अगर तुम्हारी बहन होती तो क्या यह बात उससे भी करते? इस पर पूजा के पति ने यही कहा कि बात नहीं अब तक उसकी दूसरी शादी करवा भी देता। असल में पूजा संगीता की सगी नहीं बल्कि दूर रिश्ते की ननद थी लेकिन पूजा ने उन्हें कभी दूर रिश्ते की न समझ हमेशा अपनी सगी ननद के समान ही सम्मान देती थी। लेकिन आज एक झटके में संगीता ने उसे यह कहकर उसका तिरस्कार कर दिया कि तुम्हारी सगी बहन होती तो क्या तब भी तुम लोग उसकी दूसरी शादी करवाने की सोचते? 

पूजा के पति अपने काम पर जा चुके थे। पूजा अपने घर के कामों में व्यस्त हो गई मगर वह परेशान थी। एक लंबा समय बीता धीरे-धीरे बात आई गई हो गई और सबकुछ सामान्य सा हो गया था। इस बात को कई दिन बीत गए थे कि अचानक एक दिन संगीता का फोन आता है पूजा के पास। संगीता- तुमने कुछ कहा था मुझसे, संगीता की बात सुनकर पूजा एक दम शॉक्ड हो जाती है। फिर भी अंजान बनते हुए दीदी मुझे याद नहीं बताइए क्या कहा था? किस काम की बात कर रही हैं आप? कुछ रिश्ते की बात कर रहीं थीं? हां दीदी पूजा मन ही मन विचार कर रही थी कि सच में उम्र के साथ-साथ हमारे विचारों में बदलाव आ जाते हैं। जो चीजें आज गलत लग रही हैं जरूरी नहीं कल भी हमें गलत लगें? कहते हैं उम्र के साथ हमारी जरूरतें बदल जाती हैं। 

किसी ने सच ही कहा है वक्त बड़ा बलवान है। 

कुछ ऐसी ही उतार-चढ़ाव के साथ जिंदगी जी रही थी संगीता। संगीता का बेशक नाम संगीता था मगर उसकी जिदंगी में संगीत नाम का कुछ भी न था। वीरान सी जिंदगी थी संगीता की। उम्र ढलने को आ गई थी। हाथ पैर दुखने लगे थे। रिश्तेदारों ने भी अब संगीता से दूरी बना ली थी। एक समय था जब संगीता को हर कोई याद करता था। करता भी क्यों न संगीता एक मशीन की भांति दूसरों की सेवा में जो लगी रहती थी। किसी के घर में शादी हो या फिर कुछ और काम संगीता को पहले से ही बुलवा लिया जाता था। संगीता पूरे घर के कामों को अकेले ही संभाल लेती थीं। मगर अब उसके हाथ पैर पहले की तरह काम नहीं करते थे इसलिए उसके अंदर अब पहले जैसी फुर्ती नहीं थी। इसलिए मतलबी रिश्तेदारों ने भी रिश्ता सिर्फ मुंह देखे का ही रख रखा था।

 संगीता अपने बहनों में सबसे छोटी थी। छोटी होने के बावजूद भी छोटे जैसी जिद नहीं थी उसमें शायद पैदा होने के साथ ही उस पर जिम्मेदारियों का बोझ पड़ गया था। संगीता के पिता की मामूली कमाई में चार भाई बहनों का बोझ उठाना मुश्किल था लेकिन पिता के काम में सभी सहयोग करते थे जिससे घर का खर्चा आसानी से चल जाता था। संगीता ज्यादा पढ़ी लिखी भी नहीं थी और न ही मांबाप के पास ज्यादा कुछ देने लेने के लिए था सो संगीता की शादी एक मामूली घर में कर दी गई। कुछ दिनों के बाद ही संगीता के पति के साथ रिश्ते बिगड़ने लगे। पति आए दिन गर्भवती संगीता के साथ मारपीट करता। परेशान होकर संगीता के घरवाले उसे ससुराल से ले आए। संगीता ने अपने मायके में रहते ही एक बेटी को जन्म दिया। अब मायूस संगीता को जीने का एक सहारा मिल गया लेकिन उसका परिवार उजड़ चुका था। अब वह पूरी तरह से अपने माता-पिता और भाई बहन के सहारे फिर से जीने के लिए मजबूर हो चुकी थी। 

कहते हैं वक्त कहां ठहरता है वह तो हमेशा आगे ही बढ़ता है वक्त के साथ-साथ संगीता के माता-पिता और एक भाई भी साथ छोड़ गए। संगीता का दिन रात सहारा देने वाली बड़ी बहन ने भी एक दिन दुनिया से विदा ले ली। लेकिन मरने से पहले वह संगीता और उसकी बेटी के नाम कुछ पैसे छोड़ गई थी ताकि उन्हें किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े। अब वह सिर्फ अपनी बेटी के सहारे मायके के एक कमरे में जीवन जी रही थी। संगीता के एक भाई-भाभी को और थे मगर उनका संगीता से कोई लेना देना नहीं था। धीरे-धीरे वह वक्त भी आ गया जब एक मात्र जीने का सहारा उसकी बेटी की विदाई का भी समय आ गया और उसने एक दिन बड़ी धूमधाम के साथ उसको भी विदा कर दिया। अब अकेले-अकेले रहते उसका जीवन जीना दूभर हो चुका था। हाथ पैर भी वक्त से पहले ही जबाव दे चुके थे। लेकिन कोई चारा भी नहीं था इसलिए वह अपने जीने के लिए काम करती रहती थी। दिन पर दिन थकते हुए शरीर और मन के साथ अपना जीवन यापन करते हुए उसे अहसास होने लगा था कि काश उसका भी अपना परिवार होता या फिर पति का साथ होता तो कम से कम अपने दुख तकलीफ को एक दूसरे से कह लेते। 

आज उसे याद आ रही थी अपने दूर रिश्ते की भाभी की बातें जिसे सुनकर कभी उसका गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया था। लेकिन आज वही बातें उन्हें लग रहा था कि सही ही कहा था। काश मैंने बात मान ली होती। तो कम से कम एक अपनी छत तो होती एक कंधा तो होता जिस पर रखकर मैं अपनी थकान मिटा सकती अपने दुख दर्द की बात कर सकती। विचार करते हुए ही संगीता ने एक बार फिर से जिंदा होने की ठान ली और फोन उठाकर पूजा से एक बार फिर से रिश्ते की बात करने का विचार मन में बना लिया। 

पूजा और संगीता की बात हो गई। पूजा ने संगीता को दूसरी शादी के लिए तैयार भी कर लिया लेकिन जैसे ही दूसरी शादी की बात आसपास के लोगों को पता चली तो लोगों ने बातें बनाना शुरू कर दिया जिससे संगीता का विचार फिर से बदल गया।

काफी दिनों तक पूजा ने संगीता की ओर से कोई बात बनते न देखी तो उसने एक दिन फिर से हिम्मत करके फोन करके पूछ ही लिया दीदी आपने क्या विचार किया? संगीता दुखी मन से कहने लगी लोग क्या कहेंगे? बेटी की शादी के बाद अब शादी करने की क्या सूझी? पूजा- दीदी जब आपको आपका पति मार रहा था तब उन लोगों ने बचाया था? जब आपको अपनी बेटी के लिए पढ़ाई और उसकी शादी का खर्चा करना था क्या तब किसी ने पूछा था क्या कैसे करोगी? आप किन लोगों की बात कर रही हो? आज आप जब पूरी तरह से थक चुकी हो तब क्या लोगों ने पूछा कि अब आप क्या करोगी ? क्या खाओगी आपकी सेवा कौन करेगा? आपका सहारा कौन बनेगा? संगीता शायद समझ चुकी थी कि सच में यह लोग ही हैं जिनकी वजह से उसने अपना पूरा जीवन नीरस और निर्जीव बना दिया था मगर आजतक किसी ने इस जीवन में संगीत देने की कोशिश नहीं की थी। संगीता अब पूजा की बात से सहमत हो गई और एक बार फिर से अपने नाम को सही रूप में सार्थक करने का विचार करने लगी।

(यह कहानी पायल कटियार ने लिखी है। पायल आगरा में रहती हैं और पेशे से पत्रकार हैं।)

[नोट: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।]

error: Content is protected !!