टिफिन (पेट भरने के लिये जूठन खाने को मजबूर एक वृद्धा की करुण कहानी)

कहानी

पायल कटियार

रागिनी को बड़ा ताज्जुब हो रहा था कि किट्टू (उसका बेटा) अब अपना पूरा लंच फिनिश कर लेता है। पहले तो रोज उसके लंच बॉक्स में खाना बचता था। आधा खाता था, आधे से ज्यादा खाना वह उसके लंच बॉक्स से निकालकर डस्टबिन में फेंकती थी। उसे रोज डांटते हुए कहना पड़ता था मैं इतनी मेहनत के साथ लंच तैयार करती हूं और तू बचाकर ले आता है। वहीं किट्टू कोई न कोई रोज बहाना बना दिया करता था आज मेरे पेट में दर्द था तो कभी कहता मुझे क्लासवर्क ज्यादा करना था तो कभी कोई बहाना रहता था उसका, मगर जब से उसकी दादी गांव से क्या आईं हैं वह प्रतिदिन लंच फिनिश करके ही आता है।

रागिनी अपनी सास को बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी। या यूं कहो कि वह जिम्मेदारियों में बंधकर नहीं रहना चाहती थी। रागिनी को सुबह ऑफिस जाने की जल्दी होती थी उसे अपने बेटे के लिए लंच बॉक्स तैयार करना मुश्किल था ऊपर से सास का खाना तैयार करना उसे पसंद नहीं था। उसे बेहद गुस्सा आता था मगर क्या करे किट्टू अपनी दादी की जिद कर बैठा था इसलिए उसे गांव से अपनी सास को बुलवाना पड़ा। रागिनी के पति बाहर रहते थे। वह हफ्ते में एक दिन के लिए आते थे। इधर अकेले रहते हुए रागिनी भी आलसी और लापरवाह होती जा रही थी। जल्दबाजी में वह कभी अपनी सास को सुबह दलिया बनाकर रख जाती तो कभी दूध ब्रेड से काम चलाने के लिए कह जाती थी। देर रात तक मोबाइल में बिजी रहने की वजह से सुबह कितना भी कोशिश करती मगर वह उठ ही नहीं पाती थी।

जब उठती तो जल्दी जल्दी ऑफिस भागने की पड़ती। वहीं उसकी सास इतनी ज्यादा बुजुर्ग थी कि वह अपने हाथ से खड़े होकर खाना भी नहीं बना सकती थीं। आधी झुकी कमर के चलते फिर भी वह रागिनी के अधिकांश कामों को निपटाने की सोचती। पूरे घर की साफ-सफाई किट्टू के कपड़े यहां तक कि सुबह रागिनी बाथरूम में जिन कपड़ों को छोड़ जाती थी वह भी धो दिया करती थीं। रागिनी कई बार कह चुकी थी आप मेरे कपड़े मत धोया करो मैं शाम को मशीन लगाकर धो लिया करूंगी मगर उसकी सास थीं कि मानती ही नहीं थी। वह हमेशा कहती बेटी और बहू में कोई अंतर नहीं है जब बेटा बेटी के धो सकती हैं तो वह बहू के क्यों नहीं? वहीं रागिनी ने उन्हें शायद मां कभी भी न समझा था। शायद यही वजह थी कि वह उनका बिल्कुल भी ख्याल नहीं रखती थी। टाइम बे टाइम खाना पानी यहां तक कि दवा लाने के लिए भी हमेशा बहाना ही बना देती। दवा की पूछने पर कह देती- लाना भूल गई।

रागिनी का पति यह सब जानता था इसलिए वह जब भी संडे को घर आता तो वह अपनी मां की सारी दवाएं एक साथ लाकर रख देता था। इतना होने के बाद भी रागिनी की सास ने आज तक उसकी किसी भी पड़ौस से या अपने बेटे-बेटी से कोई शिकायत न की थी। अपने पोते के साथ रहने के कारण वह रागिनी का हर तिरस्कार बड़े ही आसानी से सह जाती थीं ऐसे व्यहार करतीं कि जैसे उनपर इन सब का कोई असर ही न पड़ता हो। वहीं किट्टू अपनी दादी का पूरा ख्याल रखता था। किट्टू वैसे तो अभी मात्र 10 साल का था मगर समझदारी में बिल्कुल अपने पिता पर गया था हमेशा दूसरों का ख्याल रखना बड़ो का मान सम्मान करना उसे कभी सिखाया नहीं गया मगर उसे यह सब बखूबी आता था।

किट्टू अपनी मां की बात बेशक एक पल टाल दे मगर दादी का एक एक शब्द उसके लिए आदेश का पालन करने वाला होता था। आखिर दादी की बात माने भी क्यों न दादी के आने के बाद उसके सारे काम उसकी दादी जो कर देती थीं। दादी उसका बैग संभालकर रखती और उसके बैग से टिफिन निकाल कर धो देती थीं। उसके यहां वहां उतारे कपड़े जूते-मोजे भी सही से रख देती थीं। दादी के आने के बाद उसकी शाम को अपनी मां से डांट भी नहीं पड़ती थी। क्योंकि दादी उसके सारे काम जो निपटा दिया करतीं थीं। वरना शाम को जब रागिनी आती तो इधर- उधर बिखरा सामान देखकर किट्टू पर बरस पड़ती थी। कई बार तो इन सबके लिए उसकी पिटाई भी कर देती थी।

 एक दिन किट्टू स्कूल से आया और प्रतिदिन की भांति उसने अपना बैग मेज पर रख दिया। अपने कमरे में जाकर अपने बिस्तर पर लेट गया। दादी ने बाहर से आवाज लगाई कट्टू (दादी किट्टू को हमेशा प्यार से कट्टू ही कहकर बुलाती थीं) हाथ मुंह धोकर बिस्तर पर लेट वरना मां आकर डांट लगाएगी। किट्टू ने कमरे से ही आवाज दी- दादी आप आराम कर लीजिए मैं अभी हाथ मुंह धो लूंगा। बाहर गर्मी से आया हूं आप ही कहती हैं न गर्मी से जब आओ तो ठोड़ा रूक कर ही पानी पीना चाहिए, हाथ मुंह धोना चाहिए। इसलिए रूक जाओ मैं सब कर लूंगा आप आराम कर लो। ऊधर से दादी ने कोई प्रतिक्रिया न दी तो किट्टू बाहर निकला। दादी हॉल में न थी वह समझ गया दादी किचिन में उसका लंचबॉक्स साफ करके रखने गईं होगीं। उसने प्लान बनाया क्यों न आज दादी के साथ छिपा छिपाई खेली जाए इसलिए वह दबे पांव किचिन में झांककर यह निश्चित करने आया कि दादी को अभी कितना टाइम लगेगा?

उसने जैसे ही दरवाजे से झांका तो देखा दादी उसके टिफिन का बचा हुआ खाना खा रहीं थीं। वह एक पल को सन्न रह गया दादी इस तरह से मेरा झूठा खाना क्यों खा रहीं हैं? वह बिना कोई सवाल किये वापस अपने कमरे में आ गया। दूसरे दिन उसने फिर से छिपकर देखा तो दादी उसका टिफिन का बचा हुआ खाना खा रहीं थीं। उसकी कुछ समझ नहीं आ रहा था मगर उसे बाल मन को इतना जरूर समझ आ गया था कि जरूर कोई वजह है। दूसरे दिन रागिनी जब किट्टू का लंच तैयार कर रही थी तो किट्टू किचिन में आ गया। उसने देखा उसकी मां ने किट्टू का और अपना लंच तैयार किया मगर दादी के लिए कुछ नहीं बनाया। उसने जब पूछा आपने दादी के लिए क्यों नहीं बनाया तो रागिनी ने उससे कहा कि शाम का दलिया रखा है दादी वह खा लेंगी। शाम को आकर बनाकर खिला देगी अभी उसे जल्दी हो रही है। किट्टू को समझ आ गया कि उसकी मां उसकी दादी के लिए कुछ बनाकर ही नहीं जाती है इसलिए ही दादी भूख की वजह से उसका झूठा टिफिन खा लेती हैं। अगले दिन से किट्टू जब स्कूल के लिए अपना टिफिन लगवा रहा था तो वह अपने लिए दोपहर का खाना भी बनवाने लगा।

रागिनी ने जब पूछा स्कूल टिफिन तो पूरा खाया नहीं जाता है अब दोपहर में कहां से खा सकते हो? किट्टू- नहीं मां मुझे दोपहर में भूख लगती है आप बनाकर रख दिया करो। रागिनी ने किट्टू के लिए दोपहर का खाना भी बनाकर दिया। इधर किट्टू स्कूल से आया तो प्रतिदिन की भांति हॉल में पटक दिया। दादी ने उसका टिफिन निकाला तो देखा आज तो उसमें एक गस्सा तक न था। दादी बिना कुछ बोले चुपचाप किचिन में उसका टिफिन धोकर रख आईं। किट्टू ने आज बिना कहे हाथ मुंह धो लिए। उसके बाद वह किचिन में गया और किचिन से एक थाली में खाना लगाकर ले आया। उसने अब दादी के सामने खाने को रख दिया। दादी ने थाली में खाना देखा तो आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगीं, किट्टू अपने छोटे-छोटे हाथों से रोटी का छोटा सा टुकड़ा सब्जी के साथ लिया और अपनी दादी की ओर बढ़ा दिया।

दादी की आंखो में आंसू आ गए क्योंकि जब से वह आईं थीं हमेशा उसके टिफिन से बचा हुआ ही खाकर अपना गुजारा कर रहीं थीं। किट्टू ने उनके मुंह में कौर रखते हुए कहा आज से आप मेरे झूठे टिफिन से नहीं बल्कि साफ थाली से खाना खाओगी वह भी मेरे हाथ से। दादी बच्चों की तरह से जोर से रो पड़ी और कहने लगीं- तू तो मेरा लड्डू गोपाल है तेरा झूठा कोई झूठा थोड़े ही है वह तो मेरे लिए भोग समान है। किट्टू- हां दादी और भोग को बिगाड़ते नहीं हैं, मेरी समझ आ चुका है। अब मैं अपना टिफिन फिनिश करके आऊंगा और आप आज से मेरा झूठा नहीं साफ थाली का भोग खाएंगीं।

पायल कटियार

[नोट: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।]

error: Content is protected !!