कहानी
पायल कटियार
पूजा अपने घर में दो भाईयों के बीच अकेली बहन थी। उसके पिता एक कपड़ा व्यापारी थे। अच्छा खासा परिवार था। किसी चीज की कोई कमी नहीं थी। वह पढ़ाई के साथ-साथ बिंदास जिंदगी जीने वाली लड़की थी। अपनी सहेलियों के साथ आए दिन कहीं न कहीं मस्ती करने का प्रोग्राम बना ही लेती थी। कई बार इस बात को लेकर उसकी मां ने उसे समझाया कि वह ज्यादा घूमने फिरने पर ध्यान न दिया करे। लेकिन वह हमेशा मां को यह कहकर चुप करवा देती कि आप मुझे ज्यादा मत टोका करो मैं आखिर आपकी इकलौती बेटी हूं। पूजा के पिता जी भी पूजा की साइड लेकर कहते खाने खेलने की दिन हैं फिर किस चीज की कमी है हमारे पास? एमबीए करने के बाद इसके लिए कोई अच्छा सा लड़का देखकर शादी कर देंगे।
पूजा भी यही सोचती थी कि पता नहीं जिंदगी में फिर कभी मौका मिला न मिला खूब इंज्वाय कर लो। उसकी इस तरह से बिंदास सोच उसे देर रात घर से बाहर ही नहीं अपनों से भी बाहर कर रही है यह उसने सोचा न था।
एमबीए कर रही थी पूजा के क्लास में एक अरशद नाम का लड़का भी पढ़ता था। दोनों एक ही कॉलेज से एमबीए की पढ़ाई कर रहे थे। इसलिए दोनों एक दूसरे से नोट्स शेयर करते करते अपनी बातें भी शेयर करते थे। अरशद भी खुले विचारों वाला और बिंदास जीवन जीने वाला शख्स था। पूजा धीरे-धीरे उससे इंप्रेस होती चली गई। अब वह अपनी सहेलियों से ज्यादा उसके साथ वक्त बिताने लगी। आए दिन किसी न किसी रेस्टोरेंट में घूमने जाती कभी किसी पार्क या शहर में लगने वाली एग्जिविशन में देखे जाते।
धीरे-धीरे जब यह बात पूजा के भाईयों के कानों में पहुंची तो उन्होंने पूजा को समझाने का प्रयास किया। पूजा अपने भाईयों की बात सुनना ही नहीं चाहती थी। पिता ने भी यह कहकर उसका समर्थन कर दिया कि मुझे अपनी बेटी पर पूरा भरोसा है। अब पूजा को और ज्यादा शह मिल गई। वह खुलकर अरशद से मिलने लगी। उसके घर में भी उसका आना-जाना शुरू हो गया। अरशद के घरवाले पूजा को काफी पसंद करते थे। पूजा चाहती थी कि उसके घरवाले भी अरशद को पसंद करना शुरू कर दें। लेकिन ऐसा न हुआ। पूजा की मां ने एक दिन पूजा से साफ-साफ स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि अरशद को घर न लाया करे। पूजा समझ आ चुका था कि मेरे घरवाले शायद अरशद को पसंद नहीं करते हैं। इधर पूजा और अरशद की दोस्ती प्रेम में कब बदल गई पता ही न चला।
एमबीए की पढ़ाई पूरी होने के बाद अब पूजा का कॉलेज जाना बंद हो चुका था लेकिन उसका अरशद से मिलना बंद नहीं हुआ। वह उसके बिना नहीं रह सकती थी सो किसी न किसी बहाने से अरशद से मिलने जाने लगी। इधर अरशद भी उस पर शादी का दबाव बनाने लगा। मगर पूजा अभी टाइम चाहती थी कि वह अरशद से कहती कि किसी न किसी दिन अपने परिजनों को मना ही लेगी। लेकिन अरशद अच्छी तरह से जानता था कि ऐसा कभी नहीं होगा। पूजा के भाई उसे किसी कीमत पर उसकी शादी उसके साथ नहीं होने देंगे। क्योंकि वह उसे पसंद नहीं करते हैं।
पूजा ने जब इस बात को अपनी मां से कहा तो मां के पैरों तले जमीन खिसक गई। वह पूजा को फटकार लगाते हुए कहने लगी कि पागल तो नहीं हो गई है तू? तुझे पता है कि वह कौन है? तेरे भाईयों को यह बात पता भी चली तो वह या तो अरशद को मार देंगे या फिर तेरा गला दबा देंगे। पूजा पूरी तरह से अरशद के प्रेम में पागल हो चुकी थी। अरशद भी उसके लिए जीने मरने की कसमें खा रहा था। एक दिन अरशद ने पूजा को मिलने के लिए बुलाया और साफ-साफ कह दिया कि एक माह का टाइम दे रहा हूं। अगर शादी के लिए तैयार न हुईं तो मेरी मौत की जिम्मेदार तुम होगी। पूजा रोने लगी और कहने लगी ऐसा मत कहो मैं करती हूं कुछ। इधर पूजा के घर वाले उसके लिए एक डॉक्टर लड़के से उसके लिए रिश्ते की बात कर रहे थे। पूजा की मां ने पूजा को बहुत समझाया लेकिन पूजा के दिमाग में अरशद छाया हुआ था। पूजा को देखने के लिए आए लड़के से पूजा ने साफ-साफ कह दिया कि मैं किसी कीमत पर अब किसी और से शादी नहीं कर सकती हूं। मैं किसी और से प्रेम करती हूं। यह बात जब पूजा के पिता और उसके भाईयों को पता चली तो उन्होंने पूजा के घर से निकलने पर पाबंदी लगा दी। उसके भाई अब उसकी मां और पिता को दोष दे रहे थे कि यह सब आपके लाड़ प्यार का नतीजा है। पूजा के पिता ने पूजा के कदमों में अपना सर रख दिया कहा बेटा पछताओगी। लेकिन पूजा को अब न पिता दिख रहे थे न मां। उसे अरशद के प्रेम के आगे सभी का प्रेम तुच्छ नजर आ रहा था। इधर अरशद भी उसे किसी न किसी बहाने से अपनी मौत का संदेश भेज-भेजकर उसे डरा रहा था।
एक दिन जब उसके माता-पिता किसी रिश्तेदार की मृत्यु पर घर से बाहर गये हुए थे और दोनों भाई अपने व्यापार के सिलसिले में बाहर थे, पूजा को मौका मिल गया वह तुरंत एक जोड़ी कपड़े में घर से बाहर निकल आई। अपने पीछे अपनी मां और पिता के नाम एक लैटर लिखकर रख आई। मां पापा आप मुझे माफ करना मैं आपसे दूर जा रही हूं। एक न एक दिन तो आप मुझे वैसे भी दूर करने ही वाले थे। मेरी शादी के बाद आपसे मुझे दूर जाना ही था सो मैं पहले ही आपसे दूर जा रही हूं। मुझे माफ कर देना। मेरे लिए अब अरशद के रिश्ते से दूर जाना बेहद मुश्किल है। मैं उसके बिना एक पल नहीं रह सकती हूं।
पूजा के माता-पिता जब घर वापस लौटे तो वह घबरा गए। उन्होंने उसकी सहेलियों से संपर्क किया लेकिन सभी ने यह कहकर मना कर दिया कि पूजा उसके पास नहीं आई है। पूजा के भाईयों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने अरशद के खिलाफ मुकद्मा दर्ज किया। दोनों परिवार के लोग अब आमने सामने आ चुके थे। लेकिन अभी अरशद और पूजा का कोई अता -पता नहीं था। पुलिस ने अरशद के घरवालों पर दबाव बना रही थी। एक हफ्ता बीत चुका था। पूजा के घरवाले परेशान हो रहे थे। हिंदूवादी संगठनों का सहयोग लिया गया। सभी के प्रयास से एक हफ्ते बाद पूजा अरशद थाने में उपस्थित हुए। अरशद को लॉकअप में और पूजा को सेल्टर होम में रखा गया। पूजा के पिता की हालत खराब हो गई थी वह अस्पताल में एडमिट हो चुके थे। पूजा की मां ने सेल्टर होम पहुंचकर पूजा से संपर्क साधने की कोशिश की लेकिन पूजा किसी कीमत पर मां से मिलना नहीं चाह रही थी। पूजा की मां गिड़गिड़ा रही थी। एक बार मिल लो बेटा सिर्फ एक बार, अपने पापा से तो मिल आओ वह अस्पताल में पहुंच चुके हैं सिर्फ तुम्हारी वजह से। इतना होने के बावजूद भी पूजा अपनी मां के सामने नहीं आई। पूजा के गिड़गिड़ाने को देखकर सेल्टर होम में उपस्थित हर एक की आंख भर आई लेकिन वहां पर सिर्फ पूजा पत्थर की बन चुकी थी। वहां उपस्थित महिला पुलिस ने पूजा से कहा भी अगर चाहो तो एक बार मां को देख लो, लेकिन पूजा अब देखना भी नहीं चाहती थी। पूजा ने बताया कि अरशद ने उसे अपनी कसम दी है कि वह अब किसी कीमत पर अपने घरवालों से न मिले। अरशद की कसम अब उसके माता-पिता से बढ़कर हो चुकी थी। अरशद के प्रेम में भीगी पूजा को अब पिता, भाई का दुलार भी न डिगा पा रहा था। मां गिड़गिड़ाकर कोसती हुई चली गई। मां के जाने के बाद पूजा फूट-फूटकर रो रही थी। लेकिन अरशद के प्रेम में पड़ी पूजा अब अरशद से निकाह कर चुकी थी। वह अब उसकी कसम में बंध चुकी थी। पूजा को कोर्ट में पेश किया गया। उसका मेडिकल कराया गया। पूजा 21 साल की थी उसने कोर्ट में भी अरशद के साथ जाने की बात कहकर अपने घरवालों को पीछे कर दिया। अब हिंदूवादी संगठन भी अरशद का कुछ नहीं कर सकते थे। अरशद उसका अपहरण करके नहीं बल्कि उसके साथ निकाह करके पूजा से अब उसे शबनम बनाकर ले गया था।
पूजा अरशद को निकाह किए एक साल बीत चुका था। अरशद अब धीरे-धीरे बदलने लगा था। बिंदास जीने वाली पूजा अब कहीं भी बाहर जाती तो वह बुरखे में जाती थी अकेले घर से बाहर जाने की उसे इजाजत न थी। कहीं भी जाती तो उसकी सास, जिठानी ननद या फिर स्वयं अरशद जाता। बाहर का घूमना-फिरना खाना-पीना मौज मस्ती सब कहीं पीछे छूट चुकी थी। अरशद का चॉकलेटी चेहरा भी बदल चुका था। अब वह लंबी दाड़ी रखकर टोपी पहन कर ही रहता था। अरशद का यह लुक उसे पसंद नहीं आता था लेकिन पूजा अब उससे कुछ कह नहीं सकती थी क्योंकि यह अरशद अब वह अरशद नहीं था जो उसकी एक आवाज पर दौड़ा हुआ चाहे जहां पर चल देता था। आधी रात को उसके लिए घर से भागा अरशद अब फर्नीचर के कारोबार में पूरी तरह से सिमट गया था। दिन में सिर्फ एक बार आकर खाना खा जाता था। रात में भी 11 बजे से पहले नहीं आता था। घर में पड़ी पूजा दिन भर घर का काम करती या फिर उसकी बूढ़ी मां की सेवा में लगी रहती थी। उसकी जिठानी के तीन बच्चे थे वह उनके साथ ही घर में रहकर उन्हें पढ़ाने का काम भी करती थी। पूजा अब अपनी सपनों की दुनिया से बाहर आ चुकी थी।
धीरे-धीरे शादी के दस साल बीत चुके थे। पूजा के तीन बच्चे थे। दो बेटे एक बेटी। सभी को पांच वक्त की नमाज पढ़ने के लिए सख्त आदेश था। अरशद अब खूंखार रूप धारण कर चुका था। अरशद की इस कट्टरता के पीछे पूजा ने बताया कि वह हिंदू थी। अरशद को हमेशा यह डर लगा रहता था कि यह मेरे बच्चों को काफिर न बना दे। यह मुस्लिम से हिंदू न बना दे। शायद यही वजह थी कि अगर बच्चों ने एक वक्त भी नमाज पढ़ने में लापरवाही की तो वह घर के रखे सामान चाहे कुर्सी हो या मेज उठाकर मारना शुरू कर देता था। अब पूजा (शबनम) के साथ बच्चे भी दहशत में जीते थे। वह जब घर से बाहर रहता तो सभी राहत की सांस लेते थे लेकिन अगर घर पर होता तो सबकी हवा खराब रहती थी। अरशद की इस तरह की हरकतों को देखकर उसके परिवार वाले भी परेशान थे। पूजा (शबनम) की जिठानी के बच्चे हंसी- खुशी की जिंदगी जी रहे थे। उनके बच्चों के लिए पांच वक्त की नमाज पढ़ने पर इतनी सख्ती नहीं थी। पूजा(शबनम) की जिठानी को घर से बाहर जाने की भी पूरी आजादी थी। वह अपने बच्चों को लेकर कभी-कभी हॉल में फिल्म देखने भी जाती थी। लेकिन पूजा (शबनम) के बच्चों को इस तरह की जिंदगी जीने का हक न था। अरशद को लगता था कि वह कहीं न कहीं अपने परिवार वालों को भूली नहीं है। वह उनसे संपर्क कर सकती है उसे छोड़कर जा सकती है। इसलिए वह उसे एक पल के लिए बाहर अकेले नहीं जाने देता था। उसे मोबाइल रखने की भी आजादी न थी। कांवेंट स्कूल में ढेर सारा होमवर्क के बीच पूजा (शबनम) के बच्चों को नमाज पढ़ना जरूरी था बेशक दूसरे दिन बच्चे होमवर्क न होने पर स्कूल टीचर से पिटाई खाएं। कई बार पूजा (शबनम) के जेठ और उसके ससुर उसकी आदतों को लेकर अरशद को डांट भी चुके थे लेकिन उसमें सुधार नहीं हो रहा था।
कई बार मारपीट के दौरान पुलिस थाने तक बात पहुंच गई। लेकिन कुछ दिन सही रखने की कहकर वह फिर से अपने ढर्रे पर आ जाता था। एक दिन पूजा (शबनम) बिना बताए महिला हेल्पलाइन के सेल्टर होम में आई और उसने अपने पति के खिलाफ शिकायत करने लगी। उसके बच्चों को बुलवाया गया। बच्चे बुरी तरह से डरे हुए थे। वह बार-बार अपनी मां से यही कह रहे थे घर चलो वरना आज हम बुरी तरह से पिटे जाएंगे। पूजा फूट-फूटकर रो रही थी और बस यही कहे जा रही थी अब रोने के सिवाय बचा ही क्या है? मेरे सपनों का आशियाना बिखर चुका है।
(कहानी पायल कटियार ने लिखी है। पायल आगरा में रहती है और पेशे से पत्रकार हैं।)
[नोट: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।]