पितृ पक्ष में बनाई जाने वाली सांझी वैसे तो उत्तर भारत में अधिकांश स्थानों देखने को मिलती है पर उसका मूल ब्रज ही है। सोलहवीं सदी से ब्रज में उपजी यह कला आज परिचय की मोहताज नहीं है। हाल ही में इसे जीआई टैग भी मिला जिसके बाद इसके उत्तरोत्तर विकास की उम्मीद भी की जा रही है। इसके विकास और संरक्षण में ब्रज के देवालयों का बड़ा हाथ है। पर बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि ब्रज की इस कला का अवलोकन 1921 ईस्वी में अपनी भारत यात्रा के दौरान प्रिंस ऑफ वेल्स ने भी किया था। अगर इसके विकास में योगदान देने वालों की बात करें तो मथुरा के एक ज्योतिषी का बड़ा सहयोग रहा पर विडंबना है कि आज की पीढ़ी के अधिकांश लोग उनसे अनभिज्ञ हैं। आइए, आज में इस आलेख में हम चर्चा करते हैं मथुरा के उस महान ज्योतिषी शिव प्रकाश की:
प्रसिद्ध ज्योतिषी बाबा के घराने में जन्मे थे ज्योतिषी शिव प्रकाश
ज्योतिषी घराने में बारे में जानने के लिए शुरू से शुरू करते हैं। ज्योतिषी बाबा का असली नाम कृपा शंकर था। इनका जन्म सवाई माधोपुर में हुआ था। युवावस्था ने ही इनकी ज्योतिषीय विद्या की बड़ी प्रसिद्धि हो गई और पेशवा से लेकर होलकर और सिंधिया समेत तमाम मराठा घरानों में इनकी बड़ी पूछ होने लगी। इन्होंने धन भी कमाया और नाम भी कमाया। वृद्धावस्था में ब्रजवास की लालसा से मथुरा आ गए। स्वामी घाट के पास इन्होंने एक विशाल हवेली बनवाई और ब्रजवास करने लगे। इन ज्योतिषी बाबा के वंश में एक से एक बड़े ज्योतिष विद्या के महारथी जन्मे। इनकी चौथी पीढ़ी में ज्योतिषी शिव प्रकाश का जन्म हुआ।
ज्योतिषी शिव प्रकाश का जन्म और शिक्षा
ज्योतिषी शिव प्रकाश का जन्म 1872 ईस्वी में हुआ। इनके पिता का नाम ज्योतिषी अमरलाल था। अमरलाल ज्योतिषी बाबा के पौत्र थे। ज्योतिषी अमरलाल स्वामी दयानंद सरस्वती के मित्र थे। मथुरा में जब दयानन्द सरस्वती डंडी विरजानंद से व्याकरण की शिक्षा पाने के लिए आए थे तब उनके विद्याध्ययन के दौरान उनके रहने और भोजनादि का प्रबंध भी ज्योतिषी अमरलाल ने ही किया था। खैर बात करते हैं ज्योतिषी शिव प्रकाश की, जो हिंदी, संस्कृत, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं के मर्मज्ञ थे। ज्योतिष तो उन्हें विरासत में ही मिला था साथ ही धर्मशास्त्र, तंत्रशास्त्र और पुराणों पर उनका विशद अध्ययन था। ये हिंदी और संस्कृत के लेखक और कवि थे। इन्होंने कई पत्रों का संपादन किया और कई धार्मिक और जातीय संस्थाओं का संचालन किया। इस प्रकार कला और विद्या की साधना तथा जन सेवा में जीवनपर्यंत लगे रहे और इसके लिए अपने धन को लुटाते रहे जिसके कारण बाद के दिनों में इन्हें आर्थिक कठिनाई भी उठानी पड़ी।
खैर, अब बात सांझी की जिसे इंग्लैंड के युवराज ने देखा था
ज्योतिषी शिव प्रकाश की सांझी कला में बड़ी रुचि थी। उनकी इतनी विशेषज्ञता थी कि आठ आठ रंग तक के सांचे और खाके वे स्वयं बना लेते थे। उन खाकों पर सूखा रंग छिड़क कर बड़ी सुंदर सांझी बनाते थे। उनकी सांझी देखने के लिए सैकड़ों लोग जुटते थे। मथुरा की कला और संस्कृति के विद्वान प्रभु दयाल मित्तल अपनी पुस्तक ब्रज का सांस्कृतिक इतिहास में लिखते हैं कि जब वर्ष 1921 में जब प्रिंस ऑफ वेल्स का भारत आगमन हुआ तब ब्रिटिश अधिकारियों ने आगरा के किले में उन्हें सांझी का अवलोकन कराया था।
वेधशाला का भी किया था निर्माण
दिल्ली का जंतर मंतर तो आप सभी ने देखा होगा, जो कि खगोलीय गणनाओं के लिए जयपुर के तत्कालीन महाराजा जयसिंह द्वितीय के द्वारा बनवाई गई वेधशाला है। जय सिंह ने एक ऐसी वेधशाला मथुरा में भी बनवाई थी जो कि कालांतर में नष्ट हो गई। अपने ज्योतिषी शिव प्रकाश ने भी ज्योतिष गणना के लिए अपने बगीचे शिवाश्रम उद्यान में एक वेधशाला का निर्माण कराया था। उन्होंने जिन ज्योतिषीय यंत्रों का आविष्कार किया था उन्हें अपनी वेधशाला में स्थापित किया था। उनके द्वारा आविष्कृत ज्योतिष यंत्रों में सार्वदेशिक धूपघड़ी, लग्नबोधक घड़ी, वृहत गोलार्ध, यष्टि यंत्र, ध्रुव भित्ति, तुरीय और मर्कटी आदि उल्लेखनीय हैं। इन यंत्रों का निर्माण उन्होंने अपने निर्देशन में ब्रज के ही सामान्य कलाकारों द्वारा ही कराया था। खेद का विषय है कि ब्रिटिशकाल में उनकी इस प्रतिभा का समुचित उपयोग न हो सका। उनके देहावसान के बाद उत्तराधिकारियों की उदासीनता के चलते यह वेधशाला भी जयसिंह की वेधशाला की भांति ही नष्ट हो गई। 61 वर्ष की अवस्था में वर्ष 1933 में इनका देहावसान हो गया।
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