दो खामोश आंखें – 5 Posted on 28th January 2011 by Yogendra Singh Chhonkar योगेन्द्र सिंह छोंकर हो जाऊं जहाँ के लिए मसीहा या फिर कातिल मैं क्या हूँ जानती हैं बखूबी दो खामोश ऑंखें
साहित्य दो ख़ामोश आंखें -24 Yogendra Singh Chhonkar 2nd February 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर महबूबा की, मजलूम की, कवि की, किसान की, इंसान की भगवान की सबकी हैं दो खामोश ऑंखें
साहित्य दो खामोश आंखें – 16 Yogendra Singh Chhonkar 2nd February 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर सामने रहकर न हुआ कभी जिस प्यास का अहसास उसे बुझाने दुबारा कभी मेरे पहलु में आएँगी दो खामोश ऑंखें
साहित्य दो खामोश आंखें – 31 Yogendra Singh Chhonkar 4th March 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर मंदिर हो या कोई मजार किसी नदी का पुल हो, कटोरा किसी भिखारी का या शाहजहाँ की कब्र एक ही भाव सिक्का फैंकती है […]