योगेन्द्र सिंह छोंकर
इत्तिला
अपनी रवाग्नी की
करते समय
जो थी पीर
चहरे पर
तीस आवाज में
लिख पाने में
रहे असफल
हाथ आपके
दिलाते हें
मुझको यकीन
जहाँ भी जाओगे
तलाशेगी मुझे
दो खामोश ऑंखें