महाराजा सूरजमल को अपने किलों की मजबूती पर बड़ा नाज था। हो भी क्यों न? इन किलों ने समय आने पर अपनी मजबूती को साबित भी किया था। आज बात करते हैं भरतपुर के किले की। यह किला लोहे की तरह मजबूत है इसलिए इसका नाम लोहागढ़ रखा गया है। इस किले की मजबूत दीवारों को अंग्रेजों की तोपों के गोले भी भेद नहीं पाए थे।
महाराजा सूरजमल ने कराया था निर्माण
इस किले का निर्माण महाराजा सूरजमल ने करवाया था। 1733 ईसवी में भरतपुर पर अधिकार किया था। इस स्थान को उन्होंने सामरिक दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण पाया। यही वजह थी कि उन्होंने अपनी राजधानी डीग से हटाकर यहां लाने का निर्णय किया। 1945 में राज्य की शासन व्यवस्था लगभग पूरी तरह से ही सूरजमल के हाथ में आ गई थी। तब उन्होंने इस स्थान पर दुर्ग बनवाने का कार्य शुरू किया।
सूरजमल चाहते थे कि दुर्ग सबसे मजबूत बने
हालांकि डीग और कुम्हेर के दुर्ग भी अपनी मजबूती में किसी से कम नहीं हैं। पर सूरजमल चाहते थे कि भरतपुर का दुर्ग उन सब दुर्गों से भी अधिक मजबूत बने। करीब आठ वर्षों में इस दुर्ग का निर्माण कार्य पूरा हुआ। बनकर तैयार होने पर यह सबसे सुदृढ़, अभेद्य और विशाल क्षमता वाला दुर्ग था। सूरजमल ने 1753 ईसवी में भरतपुर को अपना स्थाई निवास बना लिया था। 1756 ईसवी में बदनसिंह की मृत्यु के बाद सूरजमल ने भरतपुर को विधिवत अपनी राजधानी घोषित किया।
डेढ़ मील के घेरे में बना है लोहागढ़ दुर्ग
भरतपुर के किले का घेरा डेढ़ मील का है। दुर्ग के परकोटे पर आठ बुर्ज बनाये गए हैं। परकोटे के चारों तरफ तीस फीट गहरी और दो सौ फीट चौड़ी खाई बनाई गई है। इस खाई में जल भरा रहता है। यह सुजान गंगा के नाम से प्रसिद्ध है। भरतपुर के किले में प्रवेश के लिए उत्तर व दक्षिण में दो प्रवेशद्वार बनाये गए हैं। मुख्य दक्षिणी द्वार के सम्मुख एक छोटी चौबुर्जा गढ़ी बनी है। नगर की सुरक्षा के लिए चारों ओर 18 से 25 फीट चौड़ा और साठ फीट ऊंचा मिट्टी का परकोटा बनाया गया है। यह परकोटा दुर्ग की सुरक्षा और मजबूती का मुख्य अवयव है। जब शत्रु सेना की तोपें किले पर गोले बरसाती थीं तब यह परकोटा किले की रक्षा करता था। शत्रु सेना के गोले इस मिट्टी के परकोटे में धँसकर प्रभावहीन हो जाते थे। इससे किले के अंदर की अन्य इमारतें सुरक्षित रहतीं थीं। मिट्टी के परकोटे और पत्थर के परकोटे से किले को एक दोहरा सुरक्षा कवच मिलता था।
लार्ड लेक की तोपें यहां हुईं थीं निराश
1805 ईसवी में ब्रिटिश सेना का नेतृत्व करते हुए लार्ड लेक ने भरतपुर पर हमला किया था। किले के परकोटे की इस दोहरी सुरक्षा संरचना ने उस समय बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंग्रेजों की तोपों के गोले इस किले की दीवारों को भेद नहीं पाए। यहां अंग्रेज़ो को कई बार निराश होकर लौटना पड़ा था।
किले के अंदर हैं कई भवन
लोहागढ़ किले के अंदर कई महत्वपूर्ण भवन बने हुए हैं। किशोरी महल, श्रीहरदेव जी मन्दिर और बिहारी जी मन्दिर आदि का निर्माण सूरजमल के समय पर ही हुआ। प्रसिद्ध जवाहर बुर्ज भी यहीं है। यहां कई बारहद्वारी भी बनी हुई हैं कचहरी कलां, दरबार हाल, 56 खम्भे की भूलभुलैया आदि अन्य भवन भी हैं।