दो खामोश आंखें – 21 Posted on 2nd February 2011 by Yogendra Singh Chhonkar योगेन्द्र सिंह छोंकर कभी भटकाती कभी राह दिखाती कभी छिप जाती कभी आकर सामने अपनी ओर बुलाती मुझसे है खेलती या मुझे खिलाती दो खामोश ऑंखें
साहित्य दो खामोश आंखें – 27 Yogendra Singh Chhonkar 2nd February 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर अपने बच्चे का निवाला कोयल कुल के कंठ में डालने वाले कौए को सदा ही दुत्कारती हैं दो खामोश ऑंखें
साहित्य दो खामोश आंखें – 13 Yogendra Singh Chhonkar 2nd February 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर जिनके होने का अहसास है दिल का सुकून जिनमे डूबने की हशरत है मेरा जूनून पल में हँसाने और रुलाने वाली खुद को […]
साहित्य पुत्रमोह में पागल एक दंपति का दर्द Yogendra Singh Chhonkar 29th August 2023 0 कहानी पायल कटियार (पुत्र के मोह में उसकी गलतियों को नज़रंदाज करने वाले माता-पिता को अंत में पछतावे के सिवा कुछ हाथ न लगा।) प्रवीन […]