दो खामोश आंखें – 21 Posted on 2nd February 2011 by Yogendra Singh Chhonkar योगेन्द्र सिंह छोंकर कभी भटकाती कभी राह दिखाती कभी छिप जाती कभी आकर सामने अपनी ओर बुलाती मुझसे है खेलती या मुझे खिलाती दो खामोश ऑंखें
साहित्य जीवन दर्शन Yogendra Singh Chhonkar 28th January 2011 0 जीवन दर्शन कंक्रीट के इस जंगल में आपाधापी के इस दंगल में आधुनिकता की होड़ में दौलत की अंधी दौड़ में आज हर इन्सान भूल […]
साहित्य पति की मृत्यु की तैयारी Yogendra Singh Chhonkar 18th October 2024 0 हिंदी कहानी पायल कटियार (हिंदी लेखिका) सावित्री अपने पति को मृत्यु के मुंह से छीनकर निकाल लाती है। यमराज उससे हार जाते हैं और उसके […]
साहित्य श्री दुर्गा चालीसा Yogendra Singh Chhonkar 28th April 2020 0 नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥ निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥ शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि […]