भारतीय चित्रकला की लघु चित्र शैली के जानकारों में ऐसा कौन होगा जो ‘बनी-ठनी’ को न जानता हो! पर वह महिला जो इस शैली की प्रेरणा बनी, उस ‘नागर रमणी‘ को भला कितने लोग जानते हैं! वृंदावन की भूमि पर अपने प्रेमी सावंत सिंह (नागरीदास) के साथ एक भक्तिमती महिला के रूप में जीवन बिताने वाली और रसिक बिहारी के नाम से भक्ति पथ के पद रचने वाली अठारहवीं सदी की उस महान नायिका का योगदान तो छोड़िए नाम तक भी हर व्यक्ति नहीं जानता। वृंदावन के गोदाविहार मन्दिर परिसर से संचालित ब्रज संस्कृति शोध संस्थान ने इस दिशा में पहल करते हुए एक पुस्तक प्रकाशित की है जो बनी ठनी के जीवन के हर पहलू से आपको रूबरू कराती है।
साकार हुआ शब्दों का अद्भुत संसार
कभी कभी कोई पुस्तक इतनी रुचिकर होती है कि एक बार पढ़ना प्रारम्भ हो जाये तो उसे पूरी पढ़कर ही मन को प्रसन्नता होती है। दरअसल यह सब शब्दों के चमत्कार से ही सम्भव है। शब्दों का संसार है ही जादुई। जो इन शब्दों का अपनी लेखनी से जादू कर पाठकों को बांधकर रख दे वही सच्चा लेखक है। ब्रज संस्कृति शोध संस्थान, गोदाविहार वृंदावन के नवीन प्रकाशन “बनी ठनी :- प्रेमकथा से चित्रकला तक” में शब्दों का ऐसा अद्भुत संसार साकार हुआ है। कृति के लेखक नर्मदाप्रसाद उपाध्याय ने किशनगढ़ के शासक सावंत सिंह एवं उनकी पासवान (उपपत्नी) के चरित्रों का इतना सजीव वर्णन किया है कि पुस्तक का अध्ययन करते समय वे साकार रूप लेने लगते हैं। नर्मदाप्रसाद निबन्धकार होने के साथ साथ कलाविद भी हैं। लेखन के समय कब कहां कौनसा रंग (भाव) पाठकों को अच्छा लगेगा वे इससे भली भांति परिचित हैं।
बनी ठनी किशनगढ़ कलम की राधा हैं उसका रूप सौंदर्य ऐश्वर्यशाली अप्सरा के समान है लेकिन मन किसी भावुक हृदय वाली उस स्त्री का है जिसमें प्रेम व भक्ति का रस सिंधु लहलहाता है। इस भाव को उकेरना बड़ा कठिन है लेकिन लेखक ने इस कृति की नायिका बनी ठनी के सौंदर्य का अनूठा वर्णन किया है :-
“लंबी और उन्नत तथा सुती हुई नाक है जिसके नीचे गहरे लाल ओठों की रेखा ऐसी है जैसे खिलते हुए कमल की पांखुरियों ने एक कतार संवार दी हो!”
बनी ठनी एक भक्तिमती महिला थी। 18वीं शताब्दी में वह भी सावंत सिंह (नागरीदास) के साथ वृंदावन आई और नागरीदास की साधना सहचरी बनी। वह स्वयं भी कवियत्री थी उसने अनेक सुंदर पदों की रचना की। इनके अधिकांश पद नागर समुच्चय नामक ग्रन्थ में मिलते हैं।
ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के सचिव लक्ष्मीनारायण तिवारी ने इस कृति की शोधपूर्ण भूमिका लिखी है जो शोधार्थियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। पुस्तक का मुखपृष्ठ आकर्षक है जो सहज ही लोगों को भा जाता है। पुस्तक में बनी ठनी के चित्र, नागरीदास घेरे में स्थित सावंत सिंह व बनी ठनी की समाधियों के चित्र लगाए गए हैं।
इसके साथ ही पुस्तक में बनी ठनी द्वारा कृत पदावलियों को भी प्रकाशित किया गया है। पुस्तक का संपादन संस्थान के प्रकाशन अधिकारी गोपाल शरण शर्मा द्वारा किया गया है। उनके संपादन में पुस्तक का संपादन बहुत ही अच्छा हुआ है।
ब्रज संस्कृति शोध संस्थान द्वारा प्रकाशित यह कृति एक अल्पज्ञात महिला की पुनः प्रतिष्ठा करती है। एक ऐसी महिला जो पूर्ण निष्ठा भाव के साथ वृंदावन धाम में भक्ति में लीन रही, जिसके द्वारा रचित पद के गायन से ठाकुर बांकेबिहारी शयन करते हों ऐसी महिला वृन्दावनी भक्त समाज में उपेक्षित रही। निश्चय ही यह कृति बनी ठनी को उसका सम्मान दिलाने में सहायक सिद्ध होगी। पुनः ब्रज संस्कृति शोध संस्थान को एक महत्वपूर्ण प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई।
लेखक परिचय
नर्मदा प्रसाद उपाध्याय
(जन्म, 30 जनवरी 1952) भारतीय कला पर लेखन के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर का नाम हैं। भारतीय कला पर उनकी 20 कृतियां प्रकाशित हैं। इसके अलावा छह संपादित, तीन अनुदित एवं 15 ललित निबंध की पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। श्री उपाध्याय जी को ब्रिटिश काउंसिल व शिमेंगर लेडर फैलोशिप मिल चुकी है।
भारतीय लघु चित्रों के मशहूर गेयर एंडरसन संग्रह पर काम करने के लिए उन्हें लेवेनहेम (इंग्लैंड) व नेशनल गैलरी ऑफ ऑस्ट्रेलिया, केनबेरा द्वारा सम्मानित किया गया है। इसके अलावा वे मध्यप्रदेश साहित्य परिषद, उ.प्र. हिंदी संस्थान के सम्मान सहित कई महत्त्वपूर्ण संस्थाओं द्वारा सम्मानित हैं।
प्रकाशक :
ब्रज संस्कृति शोध संस्थान, श्रीगोदा विहार परिसर, गोपेश्वर मार्ग, वृन्दावन -281121
मथुरा ( उ.प्र.)
मोबाइल : 9219858901
ब्रज मण्डल के इतिहास, पुरातत्व, कला, साहित्य एवं लोक संस्कृति की शोध अकादमी के रूप में ब्रज संस्कृति शोध संस्थान, श्रीगोदा विहार परिसर ,वृन्दावन में स्थित है। विगत् 11 वर्षों से निरंतर संस्कृति के क्षेत्र में नि:स्वार्थ भाव से कार्यरत यह संस्थान एक गैर सरकारी सहायता प्राप्त संगठन है जिस का संचालन ब्रज के वरिष्ठ और युवा अध्येता, संस्कृति प्रेमी, कलाकार तथा ब्रज प्रेमीजन मिलकर करते हैं !
संस्थान के ग्रंथागार में 3000 से अधिक दुर्लभ हस्तलिखित ग्रंथ (पांडुलिपियाँ) एवं ताड़पत्र हैं ! संस्थान के संग्रहालय में 5000 से अधिक ऐतिहासिक महत्व के दुर्लभ सिक्के, ताम्रपत्र, मानचित्र,वहियाँ ,चित्र,लीथो ग्राफ,फोटो ग्राफ,मुखौटे, कला कृतियाँ एवं अभिलेख संगृहीत हैं तथा संस्थान द्वारा स्थापित शोध संदर्भ पुस्तकालय में लगभग 6000 से अधिक शोध संदर्भ पुस्तकों एवं ग्रंथों को संगृहीत किया गया हैं।
संस्थान ब्रज संस्कृति के संरक्षण से जुड़ी अनेक शोध परियोजनाओं पर कार्य कर रहा है जिन के चलते प्रतिवर्ष साँझी मेला, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियाँ , कला प्रदर्शनियाँ , सम्मेलन ,कार्यशालाएँ और व्याख्यान आयोजित करता है। संस्थान प्रति वर्ष ब्रज मण्डल के साहित्य, संस्कृति ,कला व इतिहास पर कार्य करने वाले विद्वानों को ब्रज संस्कृति सम्मानों से अलंकृत करता है ।यह सम्मान तीन श्रेणियों में निर्धारित हैं – ब्रज निधि सम्मान, ब्रज संस्कृति अध्येता सम्मान एवं ब्रज संस्कृति सेवी सम्मान ।
संस्थान का अपना प्रकाशन विभाग है, जिसके द्वारा ब्रज के इतिहास, साहित्य ,कला,भाषा एवं संस्कृति पर एकाग्र अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर पुस्तकें, ब्रोशर आदि प्रकाशित किये जाते हैं !
संस्थान में देश -विदेश से आने वाले शोधार्थियों की संख्या में प्रति वर्ष बढ़ोत्तरी हो रही है I अध्येताओं की सुविधा के लिए संस्थान परिसर में आवासीय व्यवस्था भी की गई है और संस्थान को निरन्तर एक उच्च स्तरीय शोध अध्ययन केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है।
परिचय भूमिका लेखक :
लक्ष्मी नारायण तिवारी
सचिव :- ब्रज संस्कृति शोध संस्थान, गोदा बिहार, वृन्दावन।
संस्थान के सचिव लक्ष्मी नारायण तिवारी ब्रज की संस्कृति, इतिहास, पुरातत्व एवं साहित्य के विशेषज्ञ हैं। 11 वर्ष पूर्व उन्होंने संस्थान की स्थापना ब्रज की सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण एवं सम्बर्धन के उद्देश्य को ध्यान में रख कर की थी।
संस्थान उनके मार्गदर्शन में ब्रज की सांस्कृतिक विरासतों को सहेजने में निरंतर कार्यरत है।
परिचय संपादक
गोपाल शरण शर्मा
पद :- प्रकाशन अधिकारी
कार्यस्थल :- ब्रज संस्कृति शोध संस्थान, गोदाबिहार, वृन्दावन
शिक्षा :- एम.ए.हिंदी
प्रकाशित पुस्तक व आलेख:- गाँधी जी की ब्रज यात्राएं व अन्य शोधालेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।