मानगढ़, जहां कृष्ण से रूठकर जा बैठीं थीं राधा रानी


जैसा कि हम जानते हैं कि बरसाना में स्थित पहाड़ी को ब्रह्मांचल नाम दिया गया है। मान्यता है कि ब्रह्माजी स्वयं श्रीराधा-कृष्ण की लीलाओं का साक्षी बनने के लिए पर्वत रूप लेकर ब्रज में स्थापित हुए हैं। इस ब्रह्मांचल पर्वत के चार शिखर हैं जो ब्रह्माजी के चार मुखों के सदृश्य हैं। ये हैं भानगढ़, दानगढ़, विलासगढ़ और मानगढ़।यह मानगढ़ ही वह स्थान है जहां राधा रानी कृष्ण से मान कर (गुस्सा होकर) जा बैठी थीं। यहां श्रीकृष्ण ने बहुत अनुनय विनय कर राधा रानी को मनाया था।

मानगढ़ का महत्व



नारायण भट्टजी द्वारा रचित ब्रज भक्ति विलास ग्रन्थ में मानगढ़ का उल्लेख मिलता है।

“देवगंधर्वरम्याय राधामानविधायिने।

मानमन्दिरसंज्ञाय नमस्ते रत्नभूमये।।”


अर्थात – “देव-गन्धर्वों से रमणीक, इस दिव्य रत्नमय धरा पर मानिनी ने मान किया अतः यह स्थान श्री मान मन्दिर नाम से विख्यात हुआ।”

यह प्रसंग कहलाता है मान लीला

मान मन्दिर।



अलग-अलग रसिक भक्तों ने अपनी भाव-दृष्टि से इस मान लीला के अपने-अपने अनुसार दर्शन और वर्णन किया है। राधा रानी के रूठने और श्रीकृष्ण द्वारा उन्हें मनाने के तरीके सबने अलग-अलग ढंग से वर्णित किये हैं। सार यह है कि प्रिया-प्रीतम की यह दिव्य लीला विलक्षण है। मानिनी श्रीराधा रानी रूठ कर एक पर्वतीय गुफा में जा विराजती हैं।

आज भी मौजूद है वह गुफा

मान मन्दिर में स्थित दिव्य गुफा।



वह गुफा जिसमें बैठकर राधा रानी ने मान लीला की वह गुफा आज भी मौजूद है। यह मान मन्दिर में मान बिहारी लाल के गर्भगृह के ठीक नीचे है। इस गुफा में जाना प्रतिबन्धित नहीं है पर इसके बारे में जानकारी न होने के कारण बहुत कम लोग ही इसके दर्शन को पहुंच पाते हैं। यह गुफा संतों की एकांत साधना स्थली भी है। आज भी कई संत यहां ध्यानमग्न देखे जा सकते हैं।

रमेश बाबा के आगमन से हुआ मान मन्दिर का कायाकल्प


मान बिहारी लाल के दर्शन।


आज से करीब 60 वर्ष पहले ब्रज के ख्यातिनाम विरक्त संत रमेश बाबा का ब्रज आगमन हुआ। उन्होंने मान मन्दिर को अपनी साधना स्थली के रूप में चुना। उन दिनों यह स्थान चोर-डाकुओं का अड्डा बन चुका था। रात की तो छोड़िए दिन में भी लोग इस शिखर पर चढ़कर मानगढ़ आने से डरते थे। बाबा के यहां आने के बाद से यह स्थान नए सिरे से प्रकाशित हुआ। 

रमेश बाबा का योगदान सराहनीय

संत रमेश बाबा।



ब्रज के प्राचीन स्थलों के संरक्षण और जीर्णोद्धार में संत रमेश बाबा का योगदान सर्वाधिक है। उन्होंने हरि भजन के साथ-साथ ब्रज में लुप्त होती जा रही श्रीराधा-कृष्ण की लीला स्थलियों के पुनरुद्धार का बीड़ा उठाया। उनके प्रयासों से दर्जनों कुंड जो लगभग लुप्त हो गए थे फिर से खोज कर खोदे गए। इन कुंडों के पक्के घाट बनाये गए। बाबा ने ब्रज के दिव्य पर्वतों का खनन रोकने के लिये अपने अनुयायियों के साथ लम्बा संघर्ष किया और इन पर्वतों में हो रहा खनन बंद कराया। इन्ही की प्रेरणा से आज हजारों गांवों में प्रातःकाल को हरिनाम संकीर्तन शुरू हुआ। इनके द्वारा संचालित माताजी गौशाला में पचास हजार से अधिक गौवंश की सेवा हो रही है। बाबा की इसी गौ सेवा प्रभावित होकर केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मश्री के सम्मान में नवाजा है।

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