शाक्तोपासना है अत्यंत प्राचीन
गोपाल शरण शर्मा (साहित्यकार)
श्री धाम वृन्दावन अध्यात्म और भक्ति का ऐसा स्थल है जहाँ विभिन्न संप्रदायों के अनुयाई अपनी अपनी पद्धति और मान्यताओं के अनुसार उपासना करते हुए भी वैष्णव रंग में रंगे नजर आते हैं। यहां की भूमि ने भक्ति की अनेक उपासना पद्धतियों को अपनाया एवं सहज भाव से उसका पोषण किया। रसोपासना के केन्द्रीय भाव में रहते हुए भी यहाँ शाक्त, शैव व निगुर्ण परंपरायें पुष्पित व पल्लवित हुई। वृंदावन में शाक्त (देवी) उपासना के प्रमाण प्राचीन काल से ही मिलते हैं।
श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कन्ध के बाइसवें अध्याय के प्रथम श्लोक में ब्रजांगनाओं के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिये कात्यायनी देवी की पूजा एवं व्रत रखने का उल्लेख मिलता है.
“हेमन्ते प्रथम मासि नन्दव्रज कुमारिकाः।”
ये ब्रज कुमारिका ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर पतित पावनी कालिन्दी के जल में स्नान कर भगवान भुवन भास्कर के उदय होने के साथ-साथ यमुना पुलिन पर वालुका से माँ कात्यायनी की मूर्ति का निर्माण कर सुरभि पुष्प, गन्ध-माल्य, धूप-दीप, नैवेद्य, प्रवाल, फल, तंदुल आदि से उनकी निम्न मंत्र के साथ उपासना करती थी-
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरी।
नंदगोप सुतं देवी पतिं मे कुरु ते नमः।
श्रीमद्भागवत में वर्णित व्रजगोपाङ्गनाएँ प्रेम भक्ति की आदर्श हैं। प्रेमानंदघन नंदनंदन श्री कृष्ण का इन्होंने पतिरूप में वरण किया। किन्तु महामाया कात्यायनी देवी के आनुकूल्य के बिना भगवान के साथ मिलन होने की सम्भावना नहीं है। भगवती महाशक्ति के अवलम्बन से भगवान का समस्त विश्व व्यापार संचालित होता है। ये महाशक्ति ही जीव और ब्रह्म के मध्य विराजमान हैं, इनका आश्रय ग्रहण किये बिना भगवान के साथ जीव का कोई संबंध स्थापित नहीं हो सकता।
वेदों को भारतीय संस्कृति का मूल उद्गम स्थल माना गया है। शाक्त उपासना का उद्गम स्थल भी वेद ही हैं। प्राचीन समय से ही प्रकृति पूजा को महत्व दिया जाता रहा है ऋग्वेद में जहाँ पितृरुप सत्ता का विवेचन गया है वहीं मातृ रूप का वर्णन “अदिति” के रूप में हुआ है। सृजन की अधिष्ठात्री देवी को शिव की सहचरी के रूप में भी वर्णित किया जाता है। पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है कि ब्रज प्रदेश में शक्ति की उपासना प्राचीन काल से ही चली आ रही है। “तंत्रचूडामणि” ग्रंथ जिसमें इक्यावन शक्तिपीठों का वर्णन प्राप्त होता है के अनुसार ब्रज में क्षत्र पीठ प्राप्त होता है। पौराणिक कथानुसार जब भगवान चंद्रमौलि अपनी पत्नी सती के शव को कंधे पर रख कर विचरण कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने आयुध चक्र से सती के समस्त अंगों को काट दिया तब सती के केश वैष्णव साधन के केन्द्र स्थल श्रीधाम वृन्दावन में गिरे-
“वृंदावने केशजाल उमानाम्नि च देवता।
भूतेषो भैरवस्तत्र सर्व सिद्धि प्रदायक।”
(तंत्र चूडामणि )
अगर अवलोकन करें तो भारतवर्ष के प्रत्येक नगर अथवा ग्राम में उस स्थान की देवी अवश्य होती है। ब्रज के विभिन्न स्थलों पर देवी के प्रमुख पीठ प्राप्त होते हैं। यथा- करौली में कैला देवी, गोवर्धन में मनसा देवी, बरसाने में नौवारी चौवारी देवी, मथुरा में दस महाविद्या, कंकाली देवी एवं वृन्दावन में कात्यायनी एवं चामुण्डा देवी के दर्शन होते हैं।
वृन्दावन शक्ति उपासना का धाम है। यहाँ शाक्त उपासना का रूप विशुद्ध वैष्णवी शक्ति साधना का है। वैष्णव संप्रदायों में भगवान श्रीकृष्ण की परम आह्लादनी शक्ति श्रीराधा को ही शक्ति के रूप में मान्यता दी गई है। श्रीराधा की कृपा के बिना श्री कृष्ण की प्राप्ति संभव नहीं है।
जगद्धात्री माँ जगदम्बा की पूजा–उपासना की प्राचीनता पर और अधिक चिंतन करें तो ज्ञात होता है की कि कालीदास रचित ग्रंथों में आदिशक्ति पार्वती को विभिन्न नामों से संबोधित किया गया है। रघुवंश में पार्वती को गौरी, कुमारसंभव में भवानी, मेघदूत में चंडी कहा गया है। मृच्छकटिकम् में दुर्गा द्वारा शुंभ–निशुंभ का वध किये जाने का वर्णन प्राप्त होता है। यदि महाकवि कालीदास के समय को 350 से 450 ई. अनुमानित करें तो दुर्गापूजा 300 ई. के पहले से ही प्रचलित है। गुप्त एवं कुषाण कालीन सिक्के भी इसकी प्राचीनता का उल्लेख करते है।
शाक्त उपासना पर विपुल साहित्य प्राप्त होता है। यह उपासना मातृतत्व-उपासना की प्रधानता के कारण संपूर्ण साधना परंपराओं में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। शाक्तोपासना में शक्ति का वह तात्विक स्वरूप विद्यमान है जिसकी सहायता से आध्यात्मिक उन्नति सौविध्य के साथ प्राप्त की जा सकती है।
हिस्ट्री पंडित डॉटकॉम के लिए यह आलेख गोपाल शरण शर्मा ने लिखा है, गोपाल साहित्यकार है और वृंदावन स्थित ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के प्रकाशन अधिकारी हैं।
You must log in to post a comment.