नंदगांव की वृंदा देवी : जिसने दिया धर्मराज को श्राप

वृंदा कुंड नंदगांव में स्थित एक रमणीक सरोवर है। वृंदा यानी तुलसी की लहलहाती क्यारी से आती महक और कुंड में खिले कमल पुष्पों की सुंगध से यहां का वातावरण मन को प्रफुल्लित कर देता है। यहां पर वृंदा देवी का छोटा लेकिन भव्य और सुंदर मन्दिर है। 

वृंदा देवी और वृंदा कुंड का पौराणिक महत्त्व

वृंदा कुंड के समीप तुलसी की क्यारी। फिलहाल सर्दी के मौसम में तुलसी के पौधे थोड़े कुम्हलाए हुए हैं।



ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार महान तपस्वी और भक्त हुए ध्रुव महाराज के पौत्र का नाम केदार था। केदार महाराज की कन्या का नाम वृंदा था। असलियत में लक्ष्मीजी स्वयं वृंदा के रूप में यज्ञकुंड के प्रकटी थीं। वृंदा देवी ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए दीर्घकाल तक यहीं तप किया था। इनकी परीक्षा लेने के लिए ब्रह्माजी ने धर्मराज को इनके पास भेजा था। देवी वृंदा ने धर्मराज से रुष्ट होकर उन्हें श्राप दे दिया था। इनके श्राप से धर्म का क्षय होना शुरू हुआ। यही वृंदा देवी युगल सरकार की लीला का आनन्द लेने के लिए आज भी नंदगांव में विराज रही हैं।

प्रिया-प्रीतम के गुप्त मिलन की स्थली ‘गुप्त कुंड’

वृंदा देवी मंदिर के पीछे स्थित गुप्त कुंड।


गुप्त कुंड वृंदा कुंड के पीछे ही स्थित है। यह स्थान राधा-कृष्ण के मिलन के गोपनीय स्थलों में से एक है। यहां के महत्त्व के बारे में वृंदा देवी के पुजारी भगवत प्रसाद वशिष्ठ बताते हैं कि यह प्रिया-प्रीतम की नित्य अष्टयाम लीला स्थली है। मान्यता है कि दिन के पहले पहर में श्रीकृष्ण राधारानी और उनकी सखियों के साथ यहां नित्य लीला करते हैं। 

गुप्त कुंड से मिली थी लीलाओं की साक्षी एक भग्न प्रतिमा

गुप्त कुंड से प्राप्त राधा कृष्ण और सखियों की लीला का चित्रण प्रस्तुत करती प्रतिमा। यह प्रतिमा प्राचीन है। वर्तमान में यह भग्न रूप में गुप्त कुंड से प्राप्त हुई है।



इस स्थान पर राधा-कृष्ण और उनकी सखियों की लीला स्थली होने का प्रमाण यहां मिली एक भग्न प्रतिमा से मिलता है। यह प्रतिमा गुप्त कुंड से मिली थी। काफी हद तक नष्ट हो चुकी इस प्रतिमा में राधा-कृष्ण और उनकी सखियों का दर्शन होता है।

बाबा माधव दास के संघर्षों से हुआ संरक्षण


वृंदा कुंड, वृंदा देवी मंदिर और गुप्त कुंड का क्षेत्र करीब ढाई एकड़ का है। पिछले 37 वर्ष से यहां के पुजारी का दायित्व संभाल रहे भगवत प्रसाद वशिष्ठ ने बताया कि पूर्व में यह स्थान स्थानीय किसानों ने कब्जा लिया था। जिसके कारण यह लुप्त होने के कगार पर था। उन दिनों इस मंदिर के पुजारी रहे शिव बाबा माधव दास ने इस स्थान के संरक्षण के लिए संघर्ष किया। बाबा के प्रयासों से इस स्थान को कब्जा मुक्त कराकर बाउंडरी वॉल बनवाई गई। बाद में इस्कॉन से जुड़े कुछ भक्तों ने यहां कुंड के घाटों और वृन्दादेवी मन्दिर का जीर्णोद्धार कर इस स्थान को भव्य स्वरूप प्रदान किया। 

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