ब्रज में धार्मिक कार्यों के लिए धन का दान करने वाले बहुत सेठ हुए हैं। यहां का हर धर्मस्थल अपने पीछे किसी न किसी दानी व्यक्ति की कहानी छुपाए हुए है।इन दानी व्यक्तियों के बीच एक ऐसा भी नाम है जो दानियों का सिरमौर कहा जा सकता है। ब्रज में जब किसी धनी दानी का जिक्र आता है तो लोग अनायास ही कह उठते है, ” ऐसे कहीं तुम सेठ हरगुलाल नहीं हो।”
कौन थे सेठ हरगुलाल
हरियाणा के एक छोटे से गांव बेरी में उनका जन्म हुआ था। इस गांव का नाम आज भी सरनेम की तरह उनके और उनके वंशजों के नाम के साथ प्रयुक्त होता है ‘बेरीवाला’। बड़े होने पर व्यापार के लिए कलकत्ता (कोलकाता) चले गए। युवावस्था में ही इन्होंने पर्याप्त धन कमाया। एक बार संत प्रवर स्वामी कृष्ण यतिजी महाराज के साथ हरगुलाल जी का वृंदावन आगमन हुआ। इन्होंने बांके बिहारी जी के दर्शन किये और ब्रज में ही रह जाने का निर्णय किया। ब्रज में इन्होंने धार्मिक गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और जल्द ही दानियों के सिरमौर कहे जाने लगे।
वृंदावन में सेठजी का योगदान
हरगुलाल जी ने वृंदावन में जगह खरीद कर एक बाग लगवाया। यह बाग बांके बिहारी का बगीचा के नाम से जाना जाता है। यहां बांके बिहारी को अर्पित करने के लिए पुष्प उगाए जाते हैं। उन्होंने वृंदावन में स्वास्थ्य सेवा भी निशुल्क उपलब्ध कराईं। उन्होंने महिला चिकित्सालय की स्थापना कराई। सेठजी ने वृंदावन में टीबी सेनेटोरियम की स्थापना भी की। यह सेनेटोरियम अपने समय मे उत्तर भारत का सर्वाधिक प्रसिद्ध और सुविधा सम्पन्न अस्पताल था। दूर दूर से लोग यहां उपचार कराने आते थे। आज निजी क्षेत्र में उपचार के तमाम विकल्प उपलब्ध होने तथा सरकारी क्षेत्र में भी टीबी का बेहतर उपचार होने के बाद भी इस सेनेटोरियम की ख्याति कम नहीं हुई है। करीब डेढ़ दशक पहले उनके वंशजों ने ब्रज हेल्थकेयर के नाम से एक आधुनिक सुविधा सम्पन्न चिकित्सालय भी शुरू किया है।
लाड़लीजी मन्दिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माता
सेठजी ने बरसाना में भी बहुत से धार्मिक और सामाजिक कार्य कराए थे। करीब सौ वर्ष पूर्व यहाँ का लाड़लीजी मन्दिर बदहाल दशा में था। उस समय जाट और मराठा शासकों द्वारा बनवाया गया भवन सौ वर्ष से अधिक पुराना हो चुका था। सेठजी ने इस भवन की सुदृढ़ कराया। भवन का पूरी तरह से जीर्णोद्धार कर इसे नया स्वरूप दिया। वर्तमान में जिस भवन में लाड़लीजी विराजमान हैं उसका अधिकांश हिस्सा सेठजी की ही देन है। इसके अलावा उन्होंने यहां एक बगीचा भी लगवाया जिसे कृष्ण बाग के नाम से जाना जाता है। उन्होंने जर्जर घाटों वाली विलुप्त हो रही प्रिया कुंड की नए सिरे से खुदाई कराई। इसके घाट पक्के करवाये और धर्मशाला बनवाई। उन्होंने बरसाना से नंदगांव के रास्ते को चौड़ा करवा कर इसका डाबरीकरण भी करवाया। इन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी कार्य किया। सेठजी ने बरसाना में एक इंटरमीडिएट कॉलेज भी बनवाया। इस कॉलेज के लिए जमीन स्थानीय किसानों ने दान की। इस कॉलेज का नाम राधा बिहारी इंटर कॉलेज है।
अतुलनीय योगदान नहीं हो सकता वर्णन
सेठ जी ने गोवर्धन में मानसी गंगा का जीर्णोद्धार भी कराया था। नंदगांव के मन्दिर पर भी सेठजी ने काम कराया था। इसी तरह ब्रज के तमाम धर्मस्थलों पर उन्होंने सेवा कार्य कराए। उन्होंने बांके बिहारी मंदिर वृंदावन, लाड़लीजी मन्दिर बरसाना और नंदभवन नंदगांव में दैनिक भोग सेवा भी शुरू कराई थी। करीब तीन दशक पहले यह सेवा नंदगांव में किसी अन्य ने संभाल ली है। बरसाना और बांके बिहारी में सेठजी के वंशज ही भोग सेवा की व्यवस्था कर रहे हैं। इस भोग सेवा की बांके बिहारी में सौ वर्ष हो चुके हैं।
बांके बिहारी और लाड़लीजी मन्दिर के लिए बनवाये हिंडोले
वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर में हरियाली तीज के दिन ठाकुरजी एक लाख तोले चांदी और दो हजार तोला सोने से जड़ित हिंडोले पर विराजमान होकर दर्शन देते हैं। यह हिंडोला सेठ जी ने अपने परिवार एवं अन्य श्रद्धालुओं के सहयोग से बनवाया था। बनारस के कारीगर लल्लन एवं बाबूलाल ने अपने सहयोगियों के साथ 1942 में इसे बनाने की शुरुआत की और 1947 में इसे पूर्ण किया।
झूले के निर्माण के लिए बनारस के कनकपुर के जंगल को लीज पर लिया गया था। वहां से शीशम की लकड़ियां मंगाई गई। दो वर्ष तक लकड़ियों के सूखने के बाद बनारस के ही कारीगर छोटेलाल ने अपनी अद्भुत कारीगरी से इस झूले का ढांचा तैयार किया। एक लाख तोले चांदी एवं दो हजार तोले सोने से निर्मित इस विशाल झूले में सोने की आठ परतें चढ़ी हुई हैं। बेजोड़ है कलात्मकता बिहारी जी के हिंडोले की, कलात्मकता के लिहाज भी बेजोड़ है। इसकी भव्यता का अंदाजा इस पर की गई खूबसूरत पच्चीकारी को देखकर सहज लगाया जा सकता है। नक्काशी के रूप में झूले पर आकर्षक फूल-पत्तियों के बेल-बूटे, हाथी, मोर आदि बने हुए हैं।
इसी तरह का एक हिंडोला बरसाना के लाड़लीजी मन्दिर के लिए भी बनवाया गया।