प्राचीन मथुरा की खोज भाग आठ


भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा नगरी सच में तीन लोक से न्यारी है। आमजन इसकी कहानी को बस श्रीकृष्ण से जोड़कर ही जानते हैं जबकि यह नगरी अपने अतीत में एक विशाल वैभवशाली विरासत को सहेजे हुए है जो श्रीकृष्ण के जन्म से कहीं प्राचीन है। मथुरा की इस अनकही कहानी को लेकर आया है हिस्ट्रीपण्डितडॉटकॉम। यह विस्तृत आलेख लिखा है श्री लक्ष्मीनारायण तिवारी ने। श्री तिवारी ब्रज के इतिहास और संस्कृति के पुरोधा हैं जो अपने कुशल निर्देशन में ब्रज संस्कृति शोध संस्थान (वृन्दावन) का संचालन कर रहे हैं। यह आलेख थोड़ा विस्तृत है अतः इसे यहां किश्तों में प्रकाशित किया जा रहा है। प्रस्तुत आलेख प्राचीन मथुरा की खोज की आठवीं किश्त है।

प्राचीन मथुरा की खोज (आठवीं किश्त)


प्राचीन मथुरा को खोजने के इस प्रयास में एक प्रश्न है, जो मेरे सामने बार – बार उठ खड़ा होता है। वह यह कि मथुरा के इतिहास में मध्यकाल तक आते आते जैन और बौद्ध धर्म की इतनी समृद्ध परंपराएँ आखिर महत्त्वहीन क्यों हो गईं।

जैन धर्म के संदर्भ में तो हम यह विचार कर सकते हैं कि वह सदैव से समाज के एक विशिष्ट तथा सीमित वर्ग में ही प्रचलित रहा है, जैसा कि आज भी देखा जा सकता है, पर बौद्ध धर्म के साथ ऐसा क्या हुआ होगा कि वह मथुरा में पूर्णतः विलुप्त ही हो गया।

आखिर क्यों लुप्त हुआ बौद्ध धर्म

कुछ लोग मानते हैं कि इस का कारण भारत में इस्लाम का आगमन है। इस अवसर पर बाहर से आये आक्रमणकारी शासकों ने बड़े पैमाने पर मठों, विहारों और मन्दिरों को नष्ट किया। इन आक्रमणों से मथुरा भी अछूता नहीं रहा जिसके चलते बौद्ध धर्म यहाँ से विलुप्त हो गया।

लेकिन मैं इस धारणा से पूरी तरह सहमत नहीं हूँ। हो सकता है कि बहुत से कारणों में से यह भी एक कारण रहा हो पर प्रमुख कारण यह नहीं हो सकता है। यदि यह सिद्धांत सही होता तो भागवत धर्म को भी उतना ही प्रभावित करता। हम देख सकते हैं कि मथुरा में मध्यकाल के दौरान प्रारंभ से लेकर अन्त तक भागवत धर्म को समाप्त करने के लिए उसके मुख्य स्थान कटरा के केशवदेव मन्दिर (श्रीकृष्ण जन्म स्थान) को सर्वाधिक बार तोड़ा गया, किन्तु वह हर बार उतनी ही शक्ति के साथ फिर उठ खड़ा हुआ।

राजकीय उपेक्षा भी रही बड़ी वजह

लोक की स्मृति में से इतिहास के साक्ष्य बहुत जल्दी ओझल नहीं होते। वह लोक कथाओं, लोकोक्तियों, लोकअनुष्ठानों, लोक उपासना और लोक मान्यताओं आदि में हमारी कल्पना से भी कहीं अधिक समय तक जीवित बने रह सकते हैं। बिखरे हुए सूत्रों के रूप में।

मैं लोक की स्मृति में बौद्ध धर्म संबंधी सूत्रों को खोजने का प्रयास कर रहा हूँ, लेकिन मैं अभी तक इन प्रयासों में असफल ही रहा हूँ ! हाँ ! इतना ही खोज सका हूँ कि मथुरा में यमुना के किनारे एक घाट का नाम बुद्ध तीर्थ के रूप में बचा है जिस की स्मृति भी स्थानीय लोगों के बीच बहुत धूमिल हो चुकी है और अब मैं धीरे धीरे इस निष्कर्ष पर पहुँचने लगा हूँ कि बौद्ध धर्म के विहार और मठ तो बाद में नष्ट हुए, वह इससे बहुत पहले ही लोक की स्मृति में से गायब हो चुका था। यह धर्म बाद में शासकों और साम्राज्यों  की छत्र छाया पर निर्भर हो गया। जब तक उनका आधार रहा। यह टिका रहा और आधार समाप्त हुआ, तो यह भी लुप्त हो गया। 

शायद इसीलिए मथुरा की लोक स्मृति में बौद्ध धर्म को लेकर एक गहरा शून्य है।

लक्ष्मीनारायण तिवारी,सचिव, ब्रज संस्कृति शोध संस्थान, वृन्दावन।

(आगे किश्तों में जारी)

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