नंदगांव नंदबाबा का गांव है। कृष्ण का गांव है। उनका जन्म मथुरा में हुआ। बचपन के कुछ दिन गोकुल में बीते। चार वर्ष की अवस्था में वह नंदबाबा के साथ यहां आ पहुंचे। यह समय था संवत 3124 विक्रमी पूर्व। नंदबाबा के नाम पर बसाए गए इस गांव का नाम नंदगांव रखा गया। इस गांव में श्रीकृष्ण 12 वर्ष की अवस्था तक रहे। उसके बाद जो मथुरा गए तो फिर ब्रज में लौटे ही नहीं।
इस नंदगांव का कण-कण कृष्ण की बाललीलाओं का साक्षी है। उनकी लीलास्थलों के रूप में यहां सैकड़ों स्थान चिन्हित हैं। कुछ आदिकाल के हैं तो कुछ मध्यकालीन भक्तों द्वारा निर्धारित हैं। कुछेक स्थान ऐसे भी जो वर्तमान समय के रसिक भक्तजनों द्वारा चिन्हित किये गए हैं। ऐसा ही स्थान है नंद बैठक। यह वह स्थान है जहां बैठ कर नंदबाबा ब्रजवासियों के साथ मन्त्रणा किया करते थे।
यहीं हुआ था इंद्र के बजाय गिरिराज के पूजन का निर्णय
नंदबैठक ही वह स्थान है जहां से ब्रजवासियों ने इंद्र को चुनौती देने का निर्णय किया था। मान्यता है कि इसी स्थान पर इंद्र के स्थान पर गिरिराज पर्वत की पूजा करने का निर्णय कृष्ण के कहने पर नन्दबाबा ने लिया था। स्थानीय लोगों के अनुसार श्रीकृष्ण ब्रज छोड़कर मथुरा जाते समय इसी स्थान से अक्रूर के रथ पर सवार हुए थे।
संत हरिदास को स्वप्न में हुआ था दर्शन
नन्दकुण्ड के पास एक कुटिया में सन्त हरदास तपस्या किया करते थे। आज के करीब 80-90 वर्ष पहले की घटना है। एक रात संत हरिदास को स्वप्न में नंदबाबा के दर्शन हुए। संत ने देखा कि श्रीकृष्ण और बलराम नंदबाबा की गोद में बैठे हुए हैं। अन्य ब्रजवासी भी समीप बैठकर नन्दबाबा के साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं। यह दृश्य देखकर संत हरिदास को समझ आ गया कि यह स्थान नंदबैठक है।
दीवार पर बनाया था चित्र
संत हरिदास ने स्वप्न में जो दृश्य देखा था उसे उन्होंने कुटिया की दीवार पर चित्रित कर दिया। इस चित्र में नंदबाबा की गोद में श्रीकृष्ण और बलराम जी बैठे हुए हैं। संत हरिदास द्वारा बनाया गया चित्र अब नष्ट हो गया है लेकिन उसकी एक प्रति अब भी यहां मौजूद है। यह प्रति मूल चित्र को देखकर बाद में किसी चित्रकार ने तैयार की थी।
लोगों के सहयोग से विकसित हुआ यह स्थान
बाबा हरिदास ने अपने स्वप्न के बारे में लोगों को बताया। संत के स्वप्न के अनुसार यह स्थान नंद बाबा की अथाहीं के रूप में जाना जाने लगा। कुछ समय बाद यहां मन्दिर का निर्माण किया गया।
संत हरिदास की समाधि पर सिर झुकाते हैं श्रद्धालु
इस स्थान के शोधकर्ता संत हरिदास का गोलोकवास हुए 52 वर्ष बीत गए हैं। संत की प्रसिद्धि आज भी है और लोग उनके प्रति आदर रखते हैं। नंदबैठक पर ही संत हरिदास की समाधि बनी हुई है। इस स्थान पर बहुत से साधु-संत रहकर तपस्या करते हैं।
नन्दकुण्ड के जल से मन्दिर में बनती थी रसोई
नंदबैठक पर स्थित नन्दकुण्ड अब कुछ उपेक्षित सा है। पहले इस कुंड का जल स्वच्छ और निर्मल हुआ करता था। कुछ दशक पहले तक इस कुंड का जल मन्दिर जाता था। इसका प्रयोग नन्दबाबा मन्दिर की रसोई के लिए होता था।
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