पूर्व कथा
पिछले भागों में हम यदुवंश, श्रीकृष्ण की कथा, महाजनपदकाल, मौर्य साम्राज्य, शुंगवंश, मथुरा के मित्रवंश, मथुरा के शक, दत्त, कुषाण, नाग, गुप्त वंश, कन्नौज के मौखरि, हर्षवर्धन, कन्नौज के गुर्जर-प्रतीहार, महमूद गजनवी का आक्रमण, कन्नौज के गाहड़वाल, और दिल्ली सल्तनत के गुलाम, खिलजी, तुगलक, सैय्यद एवं लोदी आदि वंशों के शासकों की कहानी बता चुके हैं। इसके बाद बाबर ने भारत में मुगल सत्ता की नींव डाली, हुमायूं का शासन, शेरशाह सूरी व उनके वंशजों के बाद फिर से हुमायूं की वापसी व अकबर का राज्यारोहण हुआ। अब आगे…
अकबर का काल (1556 से 1605 ईस्वी)
जिस समय ब्रज प्रदेश अकबर के अधीन हुआ तब यहां भयंकर अकाल पड़ा हुआ था। आगरा और मेवात पर अधिकार के बाद ग्वालियर पर कब्जे के लिए मुगल सेना आगरा के सूबेदार कियाखां के नेतृत्व में भेजी गई। ग्वालियर का दुर्ग इस्लाम खां के गुलाम बहावल खां के अधिकार में था। इस दुर्ग पर कब्जे के लिए ग्वालियर के पूर्व राजा विक्रमाजीत के पुत्र रामशाह तंवर ने घेर रखा था। कियाखां जब वहां पहुंचा तो पहले उसे रामशाह की सेना से लड़ना पड़ा। रामशाह परास्त होकर मेवाड़ चला गया उसके बाद मुगल सेना को डेढ़ साल तक घेरा डालने के बाद कहीं जाकर इस दुर्ग को जीतने में सफलता मिली। मुगलकाल में यह किला महत्त्वपूर्ण राजकीय कैदियों को रखने के काम आता रहा। बहुत से शहजादे इस किले में गिरफ्तार करके रखे गए।
आगरा में अकबर की राजधानी
अकबर ने आगरा को अपने साम्राज्य की राजधानी बनाया। उस समय यह एक छोटा सा शहर था। निरन्तर बढ़ते हुए मुगल साम्राज्य के साथ ही आगरा भी बढ़ने लगा। अकबर ने यहां पर बहुत से भवनों का निर्माण कराया। 1665 ईस्वी में आगरा के प्रसिद्ध किले का निर्माण शुरू हुआ। अकबर के काल में आगरा व्यापार का भी बड़ा केंद्र बन गया।
तीर्थ स्थानों की उन्नति
मथुरा के आसपास उन दिनों घना जंगल होता था। यहां बहुत से बाघ भी थे। अकबर यहां शिकार के लिए आता था। सन 1563 ईस्वी में एक बार जब अकबर यहां के जंगलों में शिकार के लिए आया था तब कुछ तीर्थयात्रियों ने उससे तीर्थकर को हटाने की मांग की। अपने धर्म स्थलों की यात्रा करने के लिए जाने वाले हिंदुओं को उन दिनों एक तीर्थकर देना होता था। अबुलफजल ने लिखा है कि इस कर से मुगल साम्राज्य को करोड़ों की आमदनी होती थी। अकबर ने इस तीर्थकर को हटा दिया। इससे उसकी हिन्दू प्रजा बहुत खुश हुई। अगले वर्ष अकबर ने गैरमुस्लिमों से वसूल किया जाने वाला जजिया कर भी हटा दिया। हिंदुओं के प्रति इस सहिष्णुता की नीति से ब्रज की बहुत उन्नति हुई। मथुरा और वृन्दावन जैसे तीर्थस्थान भव्यता को प्राप्त करने लगे।
ब्रज में वैष्णव धर्म की उन्नति
ईस्वी 16वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रज में वैष्णव संप्रदायों ने एक नई धार्मिक चेतना का आरम्भ हुआ। चैतन्य महाप्रभु इस दौर में वृन्दावन आये। चैतन्य के शिष्य रूप गोस्वामी और सनातन गोस्वामी ने अपने प्रयासों से ब्रज में हिंदुओं में धार्मिक चेतना जगाई। जब अकबर गद्दी पर बैठा तब वृन्दावन में जीव गोस्वामी की विद्वता और भक्ति की चर्चा अब जगह हो रही थी। अकबर की उदार धार्मिक नीति के कारण हिंदुओ में नए उत्साह का संचार हुआ। यह समय उपद्रवहीन था तथा अब और शांति थी। इस शांति के कारण दूर-दूर के प्रान्तों से भक्त और श्रद्धालु ब्रज के तीर्थस्थानों की यात्रा करने आने लगे।
रचे गए धर्म ग्रन्थ
उस समय पर ब्रज में वैष्णव धर्म और भक्तिमार्ग सम्बन्धी धार्मिक संस्कृत ग्रंथों का अध्ययन एवं अध्यापन होने लगा। भक्त कवि अपने आराध्य देवताओं और उनके भक्तों की जीवन गाथाएं गाने लगे और उन पर ग्रंथ रचने लगे। बल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने गोकुल को अपना निवास बनाया। अकबर ने विट्ठलनाथ के प्रति सम्मान दिखाया और उन्हें गोकुल गांव प्रदान कर दिया। अकबर ने आज्ञा दी कि विट्ठलनाथ की गायें बिना किसी रोकटोक के शाही चरागाहों में भ्रमण कर सकेंगी। उस समय पर बहुत से वृद्ध ब्रज में देहत्याग की लालसा से यहां आने लगे। आमेर के राजा भारमल ने भी अपने जीवन के अंतिम दिन यहीं बिताए। भारमल की मृत्यु होने पर मथुरा के विश्राम घाट पर उसका अंतिम संस्कार किया गया। उसकी पत्नी उसके साथ सती हुई थी। इस सती की स्मृति में विश्राम घाट पर प्रसिद्ध सती बुर्ज का निर्माण कराया गया।
मंदिर बनाने पर लगी रोक हटाई
अकबर ने नए मंदिर बनाने पर लगी हुई रोक को हटा लिया। नए मन्दिर बनवाने पर लगी रोक के हटते ही वृन्दावन और मथुरा में धन बरसने लगा। तमाम धनी व्यक्ति और राजा-महाराजा मन्दिर बनवाने में जुट गए। यहां बड़े-बड़े मन्दिर बने और लम्बे चौड़े भव्य घाट भी बनाये गए। इन मदिरों में सुंदर देव प्रतिमाओं की स्थापना की गई। मंदिरों में भोगराग के नए नए नियम निर्धारित हुए। वृन्दावन में सुंदर कुंजों का रोपण भी इसी दौर में हुआ।
आमेर के राजाओं का योगदान
ब्रज की साज संवार में आमेर के राजाओं का बहुत योगदान रहा। राजा भगवानदास ने मथुरा में सती बुर्ज का निर्माण कराया। भगवानदास ने गोवर्धन में हरदेवजी का भव्य मंदिर भी बनवाया। भगवानदास के पुत्र राजा मानसिंह ने गोवर्धन में मानसी गंगा कुंड का निर्माण कराया। 1590 ईस्वी में मानसिंह ने वृन्दावन में गोविन्ददेव के मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर के निर्माण में हिन्दू मन्दिरों की प्राचीन शैली और उस दौर की मुगल शैली का सुंदर समन्वय किया गया था। मथुरा में कंस किले का निर्माण भी मानसिंह ने ही कराया था। मुगलकाल में आमेर के राजा मथुरा आने पर इसी महल में ठहरते थे। वृन्दावन में गोपीनाथ का मंदिर भी बनवाया गया था। इस मंदिर को कछवाहों की शेखावत शाखा के आदि पुरूष शेखा के प्रपौत्र रायसल ने बनवाया था। रायसल अकबर का दरबारी था।
फतहपुर सीकरी में बनाई राजधानी
अकबर के उदार शासन से मथुरा वृन्दावन में धर्मिक परिवर्तन हुए वहीं कई राजनीतिक परिवर्तन भी हो रहे थे। 1569 ईस्वी में अकबर ने आगरा को छोड़कर फतहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाया। फतहपुर सीकरी में एक नई नगरी का निर्माण हुआ। 1585 ईस्वी में अकबर लाहौर गया। वहां से वापस लौटने पर अकबर ने फिर से आगरा को ही राजधानी बनाया। सीकरी में अकबर हर धर्म के विद्वानों को बुलाकर उनके साथ चर्चा किया करता था।
ब्रज प्रदेश की शासन व्यवस्था
लगान वसूली और शासन व्यवस्था के सम्बंध में अकबर ने यहां बहुत से महत्त्वपूर्ण सुधार किए। उसने स्थानीय कानूनगो की रिपोर्टस के आधार पर खालसा जमीन (सरकारी भूमि) का लगान निर्धारित किया। उसने बहुत सी जागीरों की जमीनों को भी खालसा भूमि घोषित कर दिया। ब्रज प्रदेश भी खालसा भूमि के अंतर्गत ही था। इस व्यवस्था से किसान सीधे राज्यकर्मियों को लगान अदा करने लगे और जागीरदारों की जरूरत नहीं रही। परगनों में कृषि उत्पादन और कृषि राजस्व में वृद्धि करने के लिए ‘करोड़ी’ का पद सृजित किया गया। इससे ब्रज प्रदेश में भी भूमि की पैमाइश हुई। हालांकि यह व्यवस्था ज्यादा लाभकारी सिद्ध नहीं हुई और बाद में इसमें बहुत से परिवर्तन करने पड़े। अकबर ने अपने राज्य को बारह सूबों के अंतर्गत विभाजित किया। ब्रज प्रदेश आगरा सूबे के अधीन था।
अकबर का शासन प्रबन्ध और ब्रज प्रदेश
अकबर के समय पर 1580 ईस्वी में जो शासन संगठन किया गया वह थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ सारे मुगलकाल में जारी रहा। 1586 ईस्वी में नई सूबा प्रणाली के अंतर्गत प्रान्तों में सूबेदार नियुक्त किये गए। आगरा के सूबेदार शेख इब्राहीम को बनाया गया। 1585 ईस्वी से अगले पांच वर्ष तक ब्रज में अच्छी बारिश हुई। फसलों की पैदावार तो ठीक हुई पर अधिक बरसात के कारण यातायात की व्यवस्था खराब रही और फसलों को खरीददार नहीं मिला। भाव गिर गया और लगान वसूली में कठिनाई हुई। इसके कारण किसानों को लगान में छूट देनी पड़ी। 1995-96 ईस्वी में बरसात नहीं हुई और अकाल पड़ गया। अगले तीन-चार साल तक यह अकाल की स्थिति बनी रही। इस दौरान महामारी फैल गई। 17 अक्टूबर 1605 ईस्वी को आगरा में अकबर की मृत्यु हुई।
(आगे किश्तों में जारी)
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