गोवर्धन की सप्तकोसी परिक्रमा के बारे में तो आपने सुना ही होगा। यह सात कोस (21 किमी) की दूरी है जिसे भक्त नंगे पैर चलकर तय करते हैं। यह परिक्रमा दो हिस्सों में है। एक हिस्सा तीन कोस का है और दूसरा चार कोस का। तीन कोस की परिक्रमा में राधाकुंड से गोवर्धन के बीच कुसुम सरोवर स्थित है। यह एक रमणीक स्थान है। इस सरोवर पर कदम्ब के वृक्षों का सुंदर बगीचा है और यहां भव्य स्मारक बने हुए हैं। यह स्थान पौराणिक और ऐतिहासिक दोनों तरह से महत्त्वपूर्ण है।
श्रीकृष्ण ने राधारानी का पुष्पों से किया था श्रंगार
इस स्थान के बारे में पौराणिक मान्यता है कि यह राधा-कृष्ण के एकांतिक प्रेम लीला की स्थली है। इसे कुसुम सरोवर या पुष्प सरोवर भी कहते हैं। मान्यता है कि श्री कृष्ण ने इस स्थान पर राधा रानी का श्रंगार सोने-चांदी के आभूषणों के स्थान पर पुष्पों से किया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार कालिंदी ने यहां पर वज्रनाभ, परीक्षित समेत तमाम ब्रजवासियों को कृष्णकार उद्धवजी का साक्षात्कार कराया था।
ओरछा के राजा ने बनवाए सरोवर के घाट
प्रारम्भ में यह सरोवर एक कच्चा तालाब जैसा था। इस स्थान के महत्त्व की जानकारी होने पर ओरछा के राजा वीर सिंह ने 1675 ईस्वी में इस सरोवर के चारों ओर पक्के घाटों का निर्माण कराया था। राजा वीर सिंह राधा-कृष्ण के समर्पित भक्त थे। उन्होंने ब्रज में अनेक धार्मिक महत्व के स्थलों पर निर्माण कार्य कराए थे जिनके बारे में हम हिस्ट्रीपण्डित डॉटकॉम के आगामी पोस्ट्स में जानेंगे।
सूरजमल ने लगवाया था बगीचा
भरतपुर राज्य की स्थापना राजा बदनसिंह ने की। इस राज्य की स्थापना के बाद गोवर्धन की रौनक बहुत तेजी से बढ़ी। इसकी दो वजह थीं पहली यह कि भरतपुर के राजा धार्मिक प्रवृत्ति के थे जिससे उन्होंने यहां के धर्मस्थलों की साज-संवार पर ध्यान दिया। दूसरी और महत्वपूर्ण वजह यह थी कि भरतपुर का राजपरिवार श्रीकृष्ण की अपना पूर्वज मानता था। अपने आदि पूर्वज के लीलास्थलों के प्रति आस्था दिखाते हुए इस राजपरिवार ने यहां अनेक निर्माण कार्य कराए जिससे गोवर्धन की शोभा को चार चांद लग गए। महाराजा सूरजमल ने कुसुम सरोवर पर एक खूबसूरत बगीचा लगवाया। यह स्थान उनकी रानी किशोरी (जिन्हें रानी हंसिया भी कहा जाता है) को अत्यंत प्रिय था।
इसी सरोवर के तट पर हुआ सूरजमल का अंतिम संस्कार
महाराजा सूरजमल की मृत्यु दिल्ली के निकट एक युद्द में शत्रुओं द्वारा अचानक घेर कर किये हमले में हुई थी। यह हमला इतना भयावह था कि शत्रुओं ने सूरजमल के शव को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया था। उनके साथ में मौजूद सभी अंगरक्षक भी इस हमले में वीरगति को प्राप्त हुए थे। आलम यह था कि सूरजमल की सेना को अपने स्वर्गीय महाराज का पार्थिव शरीर भी नहीं मिल सका। राजकुमार जवाहरसिंह सूरजमल के बाद महाराज बने। जवाहर सिंह ने विद्वानों से अपने पिता के अंतिम संस्कार के बारे में राय ली। रानी किशोरी के पास महाराज सूरजमल का एक दांत था। इस दांत को लाकर कुसुम सरोवर के तट पर महाराज सूरजमल का प्रतीकात्मक अग्नि संस्कार किया गया।
जवाहर ने बनवाया अपने पिता का स्मारक
कुसुम सरोवर के तट पर जो भव्य छतरियां दिखाई देतीं हैं असल में वह राजा सूरजमल का स्मारक है। इस स्मारक का निर्माण जवाहर सिंह ने अपने पिता की स्मृति में करवाया था। मुख्य छतरी सूरजमल की छतरी है। अन्य छतरियों को उनकी तीन रानियों को समर्पित किया गया है। सम्भव है कि इन तीन छतरियों को बाद में उन रानियों के स्वर्गवास के उपरांत बनवाया गया हो। क्योंकि रानियों के जीते-जी छतरियां बनवाने की कोई तुक नहीं थी। अगर ऐसा हुआ होगा तो महारानी किशोरी की छतरी का निर्माण महाराज रणजीत सिंह के समय पर हुआ होगा। यहां एक छोटी छतरी एक दासी की भी है। स्मारक की मुख्य इमारत के सामने छोटी-छोटी नौ बुर्जियां हैं। ये बुर्जियां उन नौ अंगरक्षकों की स्मृति में बनवाई गई हैं जो सूरजमल के साथ वीरगति को प्राप्त हुए थे। कहते हैं कि इन नौ अंगरक्षकों में एक मुसलमान भी था जो सूरजमल के लिए शहीद हुआ।
रूपराम कटारा की समाधि भी यहीं पर है
कुसुम सरोवर महाराज सूरजमल के लिए समर्पित स्मारक है। उनके साथ के कई वफादार लोगों का भी बाद में यहीं अंतिम संस्कार किया गया। कुसुम सरोवर के एक तट पर छोटी-छोटी कई समाधियां बनी हुई हैं। ये समाधियां सूरजमल के समय के भरतपुर राज्य के कई उच्चाधिकारियों की हैं। इनमें से एक समाधि भरतपुर राज्य के दीवान, राजगुरु और वकील रहे रूपराम कटारा की भी है। रूपराम कटारा के पैतृक गांव बरसाना में प्रसिद्ध वृषभानु कुंड के तट पर भी रूपराम कटारा की स्मृति में एक छतरी की निर्माण हुआ था।
अधूरा रह गया जवाहर सिंह का स्मारक
सूरजमल की छतरी के अंदर निर्मित चरण चिन्ह।
कुसुम सरोवर के सौंदर्य को चार चांद लगाने वाले जवाहर सिंह का स्मारक दुर्भाग्यवश अधूरा रह गया। सूरजमल की मृत्यु के बाद भारतेंदु की उपाधि के साथ जवाहर सिंह भरतपुर राज्य के राजा हुए थे। जवाहर सिंह ने अपने राज्य के आंतरिक शत्रुओं को नष्ट किया। दिल्ली अभियान कर पिता की मृत्य का बदला लिया। चहुंओर दुश्मनों को रौंदते हुए एक अचानक उनकी मृत्यु हो गई। आगरा में किसी ने धोखे से उन्हें मौत के घाट उतार दिया। उनकी अंत्येष्टि कुसुम सरोवर के तट पर ही की गई। यहीं पर एक विशाल चबूतरा उनकी स्मृति में उनके बाद राजा बने उनके छोटे भाई रतन सिंह ने बनवाया। यह चबूतरा आगे चलकर स्मारक का रूप लेता उससे पहले ही रतन सिंह की भी हत्या हो गई। उसके बाद कुछ समय राज परिवार आंतरिक कलह से उलझा रहा और जवाहर सिंह का स्मारक एक चबूतरा बन कर रह गया।
निर्माण सामग्री से वृंदावन में बनी छतरी
इस स्मारक की निर्माण सामग्री को गोसाईं हिम्मत बहादुर वृंदावन ले गया। वृंदावन में उसने एक घाट का निर्माण कराया था। हिम्मत बहादुर एक नागा था। यह राजेंद्रगिरी गोसाईं का उत्तराधिकारी था। ये गोसाईं लोग बुंदेलखंड खण्ड के कुछ हिस्सों के जागीरदार थे। ये लोग वजीर सफदरजंग की सेना में थे। नागाओं का जत्था भरतपुर राज्य की सेनाओं में भी लंबे समय तक रहा। हिम्मत बहादुर इस नागा जत्थे का सेनापति था।
यहां शिकार करना मना है : अकबर
यह कुसुम सरोवर क्षेत्र शुरू से ही शिकार वर्जित रहा है। इस सरोवर के दक्षिण-पूर्व कौने पर एक शिलालेख है। इस शिलालेख के अनुसार मुग़ल बादशाह अकबर ने यहां जीव हिंसा करने पर रोक लगा दी थी। इस शिलालेख पर अंकित अभिलेख से यह भी पता चलता है कि 1855 ईस्वी में अंग्रेजों ने भी यहां शिकार पर रोक लगाए रखी थी।
छतरी में है सुंदर चित्रकारी
सूरजमल की छतरी के भीतरी हिस्से की छत पर सुंदर चित्रकारी अंकित है। इन चित्रों में राजा बदन सिंह अपने दरबारियों के साथ मन्त्रणा करते दिखते हैं। किसी चित्र में सूरजमल सेना का नेतृत्व करते नजर आते हैं। उस समय की कई घटनाओं का चित्रण उस चित्रकारी में दिखता है। यह चित्र इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि इन्ही चित्रों के माध्यम से इतिहासकारों को सूरजमल और बदन सिंह के चेहरे-मोहरे और वस्त्र-आभूषण आदि की जानकारी मिली है।
कुछ किस्से रहस्य-रोमांच के भी
कुसुम सरोवर को लेकर रहस्यमयी कहानियों और रोमांचकारी किस्सों की भी भरमार है। स्थानीय लोग इसे हॉन्टेड जगह भी मानते हैं। कुछ का कहना है कि रात को राजा के अंगरक्षक यहां पहरा देते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो दावा करते हैं कि उन्होंने सफेद दाढ़ी वाले राजगुरु को घोड़े पर बैठकर रात में घूमते हुए देखा है। एक साधु ने यह बताया कि इस सरोवर में पारस पत्थर है। किसी ने बताया कि इच्छाधारी नाग की मणि इस सरोवर में है। हम तो महज इतना कह सकते हैं कि इस सरोवर में पानी के नीचे पर्वत की नुकीली शिलाएं हैं। ऐसे में सलाह यही है कि गहरे पानी मे न उतरें।
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