आज हम जिस पवित्र स्थल के बारे में बात कर रहे हैं वह है कदम्बखण्डी। कदम्बखण्डी यानी कदम्ब के वृक्षों से आच्छादित खण्ड। आज भी यहां बड़ी संख्या में कदम्ब के वृक्ष मौजूद हैं। यह स्थान नागा जी की भजन स्थली रहा है। स्थान रमणीक है और भीड़भाड़ से दूर शांति की अनुभूति कराता है। यह सुनहरा गांव के पास स्थित है।
भक्त की जटा सुलझाने खुद आये भगवान
यह स्थान नागा जी की भजन स्थली है। इसके बारे में एक कथा है। एक बार इसी कदम्बखण्डी में भजन करते हुए नागा जी की जटाएं एक झाड़ी में उलझ गईं।जटा के उलझने से नागा जी झाड़ी में फंसकर रह गए। तीन दिन तक नागा जी बिना कुछ खाये पिये वहीं फंसे रहे। श्रीकृष्ण की नागा जी पर बड़ी कृपा थी। उन्हें फंसा देखकर श्रीकृष्ण एक बालक का रूप बना कर उनके बाल सुलझाने पहुंचे। बालक रूपी कृष्ण ने जब नागा जी की जटा सुलझाने की कोशिश की तो नागाजी ने मना कर दिया। नागाजी ने कहा कि जिसने जटा उलझाई है वही सुलझाने आएगा। इस पर कृष्ण अपने वास्तविक स्वरूप में आकर उनकी जटा सुलझाने लगे। नागाजी ने फिर से मना कर दिया। और कहा कि जब तक राधाजी आकर यह तुम्हारी साक्षी नहीं देंगी तब तक मैं कैसे मानूँ कि तुम ही कृष्ण हो।इस पर राधा रानी भी वहां प्रकट हो गईं। तब राधा कृष्ण दोनों ने मिलकर नागाजी की जटा सुलझाईं।इस तरह नागाजी की चतुराई देख कर इन्हें चतुर नागा जी कहा जाने लगा।
कौन थे चतुर नागाजी
नागाजी निम्बार्क सम्प्रदाय के प्रसिद्ध भक्त थे। उनका जन्म मथुरा के पैगांव नामक गाँव हुआ था। ये बचपन से ही बहुत भक्त थे। इन्होंने संत परमानंद देवाचार्य से दीक्षा ली थी। इनकी भक्ति की अनेक कहानियां सुनने को मिलती हैं। ब्रज में अनेक स्थानों पर इनके स्मारक, मठ, मन्दिर बने हुए हैं। गोवर्धन में गोविंद कुंड पर इनकी समाधि है। वृंदावन के विहार घाट और भरतपुर के किले में इनके प्राचीन मंदिर हैं। भरतपुर के किले के राजमन्दिर में इनकी मूर्ति प्रतिष्ठित है। वहां पर नागाजी की कंपा (गुदड़ी) भी सुरक्षित है। इनके अतिरिक्त मथुरा बैराग पुरा, कामवन, बरसाना, कदम्बखण्डी और वहीं पर नागाजी की गुफा दर्शनीय है।
रोजाना करते थे ब्रज परिक्रमा
नागा जी दैनिक रूप से ब्रज की परिक्रमा किया करते थे। वह गोविंद देव जी के मन्दिर में मंगला आरती के दर्शन करते थे। उसके बाद मथुरा के केशवदेव मन्दिर में पहुंचकर श्रृंगार आरती के दर्शन करते थे। नंदगांव के मन्दिर में राजभोग आरती के दर्शन करते थे। उसके बाद गोवर्धन-राधाकुंड होते हुए शाम तक वृंदावन पहुंच जाते थे।
क्या होती है कदम्बखण्डी
कदम्बखण्डी कदम्ब के वृक्षों का छोटा सा वन होती थीं। आमतौर पर ऐसे स्थानों पर संत महात्मा तपस्या करते थे। कवि जगतनन्द ने अपने समय मे ब्रज में चार स्थानों पर कदम्बखण्डी होने का वर्णन किया है।
‘देखि सुनहरा पास गिरि, जल बिहार नंदगांव।
कदम्बखण्डि ब्रज चार हैं, जगतनन्द इहि ठाँव।।’
इसका अर्थ यह है कि सुनहरा गांव की कदम्बखण्डी, गिरिराज के पास जतीपुरा में गोविंद स्वामी की कदम्बखण्डी, जल बिहार (मान सरोवर) की कदम्बखण्डी और नंदगांव (उद्धव क्यार) की कदम्बखण्डी थीं।
इसके अलावा कुमुदवन, बहुलावन, पेठा, श्याम ढाक (गोवर्धन), पिसाया, दोमिल वन, कोटवन और करहला नामक स्थानों पर भी कदम्बखण्डी होने का वर्णन मिलता है।
कुंड और मन्दिर हैं दर्शनीय
कदम्बखण्डी में नागाजी की जटाएं सुलझाते हुए राधा कृष्ण विराजमान हैं। इस मंदिर में पहुंच कर अतीव शांति का अनुभव होता है। यहां एक विशाल वटवृक्ष भी स्थित है। समीप ही एक प्राचीन कुंड है। इसी कुंड के एक किनारे पर वह झाड़ी मौजूद है जिसमें नागाजी की जटाएं उलझीं थीं। अभी भी इस स्थान पर तपस्या करते हुए साधु मिलते हैं।
भादों में लगता है मेला
भादों यानी भाद्रपद मास वह महीना है जिसने श्रीकृष्ण और राधा रानी दोनों के जन्मदिन आते हैं। इसलिए यह महीने में ब्रज में उत्सवों की भरमार रहती है। शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को यहां एक मेला लगता है। इस मेले में रासलीला के माध्यम से नागाजी की जटाएं सुलझाने की लीला का मंचन होता है। यह मेला ठेठ ग्रामीण संस्कृति के दर्शन कराता है।
कैसे पहुंचें
कदम्बखण्डी पहुंचने के लिए बरसाना या कामां से पहुंचा जा सकता है। कामां से बरसाना के रास्ते पर बीच में पड़ता है सुनहरा गांव। सुनहरा गांव से दो किमी चलकर कदम्बखण्डी स्थित है। इस रूट पर पब्लिक ट्रांसपोर्ट के साधन उपलब्ध नहीं हैं इसलिए निजी वाहन से ही जाना पड़ता है।
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