हिंदी कहानी
पायल कटियार
कर्मदंड तो भोगना ही होता है। हमें नहीं तो हम जिन्हें सबसे ज्यादा प्रेम करते हैं उसे यानी हमारी संतानों को भोगना होता है। इसलिए कहते हैं दुर्बल को न सताइए जाकी मोटी हाय, मरी खाल की सांस से लोह भसम हो जाए। किसी को बेवकूफ बनाकर उसके साथ छल कपट कर या फिर अपने पद का रुतबा दिखाकर हम किसी को सताते हैं तो सच में परिणाम भुगतने के लिए भी तैयार ही रहना चाहिए।
कुछ ऐसा ही हुआ दुर्गेश के साथ। वह जीवन भर लोगों को लूटता रहा। अंत समय उसकी दुर्दशा देखकर हर किसी के मुंह से यही निकलता कि न जाने किन पापों की सजा भुगत रहा है बेचारा। मगर क्या किया था उसने? यह उसके अलावा कोई नहीं जानता था। बिस्तर पर पड़े-पड़े दो साल से ऊपर हो चले थे। शरीर में कीड़ों ने घर बना लिया था। उसके अपने बच्चे भी पास नहीं आना चाहते थे। उसकी दीन-दशा और उससे आ रही बदबू के कारण उसके कमरे के आसपास तक कोई नहीं आना चाहता था। बिस्तर पर पड़े पड़े वह अपने कर्मो को याद करके रोता रहता। मगर अब कुछ नहीं हो सकता था। अब कुछ शेष नहीं था कि वह अपने कर्मों को सुधार कर अपना अंत संवार सकता। अब तो बस दिन रात वह ईश्वर को स्मरण कर अपने पापों के लिए क्षमा मांगा करता था। आज सुबह से दोपहर हो गई मगर उसकी पत्नी दवा-पानी तक देने नहीं आई थी। वह अपनी आंख बंद किये बीते दिनों को याद कर रहा था और खुद को कोस रहा था वह याद कर रहा था कि वह किस कदर लोगों लूटता था?
किस तरह से लोगों को अपने पाखंड और ढोंग से डराता था। वह पेशे से एक तांत्रिक था और भगत कहलाता था। अपने पेशे के अनुरूप दुर्गेश भगत का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि सामने वाले को सहज ही उसकी बातों पर यकीन आ जाता था। आलम यह था कि अगर वह किसी से भी कह देता कि तुम्हारे बेटे का अंत निकट है तो सामने वाला अपनी सारी पूंजी उसके कदमों में डालकर उससे अपने बेटे के जीवन के लिए पूजा पाठ करने को कहता था। दुर्गेश मन ही मन प्रसन्न होता और अपने सामने गिड़गिड़ाने वाले को से रुपए ऐंठने के लिए पूजा की सामग्री के नाम पर ऐसी ऊल जलूल और दुर्लभ वस्तुएं लाने को कहता जिन्हें जुटाना किसी आम इंसान के लिए कतई संभव नहीं था। मजबूरन उस पूजा सामग्री को जुटाने की जिम्मेदारी भगत स्वयं अपने सिर ले लेता और उसके बदले में मोती रकम झटक लेता। पूजा पाठ के नाम पर फीस अलग से मिलती ही थी।
यह फीस सामने वाले की हैसियत के अनुसार तय की जाती थी। मोटे आसामी से यह रकम लाखों में ली जाती थी वहीं गरीबों के मामले में फीस कुछ कम हो जाती थी। उसके पास आने वाले लोग भी अंधविश्वासी ही होते थे। इनकी परेशानियां कुछ ऐसी होती थीं। कोई कहता मोती रकम लगाकर व्यापार शुरू किया लेकिन मुनाफा नहीं हो रहा। कोई कहता कि कमाई बहुत है लेकिन पैसा बचता ही नहीं है। कोई कहता कि घर का कोई न कोई सदस्य बीमार बना रहता है। किसी को अदृश्य शक्तियां डराती थीं। दुर्गेश के तंत्र मंत्र के धंधे के लिहाज से ये लोग उसके मुफीद ग्राहक थे। इन पर विश्वास जमाने के लिए उसकी अभिनय शैली बहुत काम आती। वह आंखें बंद करके मंत्र बुदबुदाता। हवन कुंड में कुछ फेंक कर उसकी ज्वाला को दहका देता। किसी अदृश्य शक्ति से बात करने का स्वांग रचता। उसके बाद सामने वाले की परेशानी का दोष या तो किसी भूत प्रेत के सिर मंढ देता या फिर सामने वाले के किसी रिश्तेदार द्वारा किया कराया साबित कर देता।
मुश्किल के निवारण के नाम पर पूजा की जाती थी। जहां पूजा की सामग्री और दक्षिणा की नाम पर उसकी अच्छी कमाई हो जाती थी। उसके पास आने वालों में गरीब लोग भी बहुत होते थे। जिन पर बिना कोई दया दिखाए वह मुंहमांगी रकम ऐंठता था। एक रिक्शेवाला, जो अपनी पत्नी की लंबी बीमारी का उपचार खोजता उसकी शरण में आया था, से उसने इस तरह की लच्छेदार बातें कर के अपना रंग जमाया कि भगत की पूजा सामग्री के बदले उसका रिक्शा ही बिक गया। दूसरी ओर उसकी पत्नी की खून की कमी से चल बसी। दुर्गेश को इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसकी मानवीय संवेदनाएं कब की मर चुकी थीं। पैसा ही उसका सबकुछ था। इस तरह अनैतिकता से कमाया पैसा क्या आज उसके काम आ पा रहा था? मृत्यु शय्या पर पड़ा वह यही सोचता रहता था।
उसे याद आ रहा था कि जब वह पूजा और सामग्री के नाम पर सामने वाले से मोती रकम झटक लेता था तो अपने ध्यान कक्ष में जा घुसता था। इस कक्ष में जाकर वह लंबी तानकर सो जाता और उसका ग्राहक बाहर बैठा सोचता रहता कि भगत अंदर उसके संकट का निवारण कर रहा है। इस तरह पूजा के कई चरण होते और सामने वाला तब तक उसके पास आता रहता जब तक कि उसका भगत पर विश्वास जमा रहता। जब उसका विश्वास भगत पर से उठता तब तक वह मोती रकम गंवा चुका होता था। कुछ लोगों की समस्याएं संयोगवश दूर हो जातीं तो उसका श्रेय भगत को मिलता।
महिलाओं से संबंधित मामलों में उसकी लिप्सा सिर्फ धन तक ही सीमित नहीं रहती। वह उनका शारीरिक शोषण करने से भी बाज नहीं आता था। ऊपरी बाधा निवारण या संतान प्राप्ति की कामना से आई हुई महिलाओं को वह एकांत साधना के नाम पर अपने साथ अपने खास ध्यान कक्ष में ले जाता। जहां प्रसाद के नाम पर वह उन्हें कुछ नशीला पदार्थ खिलाकर उनका शारीरिक शोषण करता। वहीं उस महिला के परिजन बाहर बैठे पूजा समाप्ति का इंतजार करते रहते।
बंद कमरे में उसने कितनी महिलाओं का शोषण किया था वह उसे खुद भी याद न था। इलाज के आई अपनी बेटी के समान लड़कियों को वह बेटी कहता और बंद कमरे में उनके साथ गलत काम करता था। इन गलत कामों के लिए उसके मन ने शायद उसे कभी भी नहीं धिक्कारा। वहीं अंधविश्वासी लोग उसके पास दिन पर दिन रात आते गए और वह भगवान की तरह से चारों ओर अपनी ख्याति को बढ़ाता रहा। उसकी ख्याति इतनी ज्यादा बढ़ चुकी थी कि बड़े घरों के लोग भी अपनी बड़ी-बड़ी गाड़ियों से उसके पास पहुंचते।
उसके झूठ को कोई पकड़ न सके इसके लिए वह पूजा करने के लिए कभी भी किसी के घर नहीं जाता बल्कि अपने घर पर बने एक कमरे पर ही बुलाया करता था। उसके चार बेटे ओर चार बेटियां थीं खुद का भाई गायब हो चुका था जिसका आज तक वह पता नहीं लगा सका था। मगर अपनों की तलाश के लिए लोग फिर भी उसके पास पूजा करवाने के लिए आते थे। खुद की दो बेटियों के कोई बच्चे नहीं हुए मगर फिर भी लोग जानते हुए भी अपनी संतान प्राप्ति के लिए अपनी बहन बेटियों को उसके सुपुर्द कर देते थे। अंधविश्वास की भी अति होती है उसके कहने पर भाई-भाई का दुश्मन पति पत्नी का दुश्मन और समधी समधी का दुश्मन बन जाता था।
किसी को पीलिया है तो टोटका किया है, किसी को टाइफाइड हुआ तो किसी ने टोटका किया है। इलाज के स्थान पर उस झोला छाप के चक्कर में न जाने कितनों की मौत हुई मगर कभी भी उसका झूठ पकड़ा न गया। उसने अपनी बातों की कलाकारी के चलते यही साबित किया कि फलां व्यक्ति के ऊपर, ऊपरी चक्कर काफी लंबे समय से चल रहा था जिसकी काट करवाने के लिए वह देर से आया अगर समय से आ गया होता तो वह उसे बचा लेता।
बच्चे न होने पर भी यही कहता कि इसने पिछले जन्म में यह किया वह किया मगर किसी को भी उसने यह नहीं कहा कि आप किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाओ। बीमारी जो भी हो उसके पास सभी की दवा के नाम पर कुछ भभूत ही हुआ करती थी। खुद कभी किसी ईश्वर की पूजा न करने वाला व्यक्ति अपनी पूजा खूब करवाना जानता था। उफ् कितना ठगा था उसने पूरे जीवन में लोगों को जिसका खामियाजा आज उसे इस कदर से भोगना पड़ रहा है।
उसके इन कारनामों को उसके परिवार के लोग अच्छे से जानते थे मगर किसी ने कभी भी उससे यह नहीं कहा कि आप यह गलत कर रहे हैं। सिवाए उसकी पत्नी के, पत्नी भी इसलिए नाराज होती थी क्योंकि वह जानती थी उसका पति न जाने कितनों के साथ प्रतिदिन रंगरलिया मना रहा है। वरना पैसे की भूखी वह भी कम न थी। बेटे बेटी सब मोटा कमा रहे अपने पिता को ही प्रमोट करते थे।
घर में रुपए पैसों की कोई कमी नहीं थी। गलत कमाई का नतीजा यह हुआ कि उसके बेटे शराब और मौजमस्ती में बिगड़ते चले गए। बड़ा बेटा तो उस पर हाथ भी उठाने लगा था। एक दिन बड़े बेटे से किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया। इस झगड़े में बेटे ने उसे इस तरह से धक्का दिया कि वह अपनी छत से नीचे आ गिरा। 70 की उम्र में उसकी हड्डी टूट गई। काफी इलाज करवाया गया मगर सही से न जुड़ सकी और फिर उसने बिस्तर पकड़ लिया।
आज दो सालों से वह बिस्तर पर ही पड़ा-पड़ा अपने गुनाहों को गिन रहा था। पूरा शरीर सड़ चुका था बिस्तर पर उसे अपने चारों ओर रेंगते हुए कीड़े नजर आते और वह रोता मगर उसे मौत भी नहीं आ रही थी। मौत आती भी कैसे उसे अभी अपने कर्मों का दंड भुगतना जो था। आखिर बुरे काम का बुरा नतीजा होता ही है।
[नोट: इस कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।]
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