मथुरा का गांधी — कन्हैया लाल गुप्त

एक किस्सा नायाब

अशोक बंसल

मथुरा में जोर-जुल्म की आपातकालीन हुकुमत को जबर्दस्त टक्कर देने वाले कन्हैयालाल गुप्त वृन्दावन की एक गली में रहे और आदर्श के इस जीवंत उदाहरण की सुध ब्रजवासियों ने नहीं ली। शिक्षा और राजनीति के क्षेत्र में करनी और कथनी में अद्भुत तालमेल स्थापित कर हैरत में डालने वाले कन्हैया लाल गुप्त को अपने जीवन में न तो किसी की मदद और न किसी पुरस्कार की दरकार रही। उन्हें आत्मप्रचार से दूर रहने में सुख मिलता था।कन्हैयालाल गुप्त 1977 में मथुरा के चम्पा अग्रवाल इण्टर काॅलेज से प्राचार्य के पद से रिटायर हुए। वे इस पद पर दस साल तक रहे। वे शिक्षकों के हितैषी थे। आपातकाल में नसबंदी का आतंक शिक्षकों को भी झेलना पड़ा तब प्राचार्य कन्हैया लाल ने इसके खिलाफ मोर्चा सँभाला। पूरे शहर में कन्हैया लाल की ईमानदारी और निर्भीकता के चर्चे होने लगे। श्रेष्ठ जीवन मूल्यों की चादर में लिपटे कन्हैया लाल गुप्त को शिक्षक और छात्र ‘मथुरा का गांधी ‘कहने लगे।

आपात्काल में कन्हैयालाल का व्यक्तित्व निखर कर सामने आया। तत्कालीन कलेक्टर एम.रंजन ने कन्हैयालाल गुप्त को राजनीति से दूर रहने की सलाह दी लेकिन वे नहीं माने। आपातकाल में जबरन नसबन्दी के हिटलरी आदेश का विरोध करने पर 25 अगस्त 1975 को कन्हैया लाल को मीसा के तहत गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। पूरे शहर में कन्हैयालाल की जय-जयकार हुई। साठ शिक्षकों ने उनके समर्थन में गिरफ्तारी दी और छात्रों ने सड़कों पर जुलूस निकाले।

आपातकाल की समाप्ति पर जनवरी 1977 में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव में कन्हैयालाल गुप्त जनता पार्टी के मथुरा से उम्मीदवार बने तो रिकार्ड मतों से विजयी हुए लेकिन लखनऊ की राजनीति उन्हें रास नहीं आई। राजनीति और नैतिकता में कोई तालमेल दिखाई नहीं दिया। मुख्यमंत्री ने उनसे राज्य का शिक्षामंत्री बनने के लिए कहा गया। उन्होंने हंस कर टाल दिया। सन् 80 में विधानसभा भंग हो गई। उस वक्त कन्हैयालाल के पास 44 संस्थाओं के विभिन्न पद थे। ऐसा उनकी लोकप्रियता के कारण था। उन्होंने कहा कि जब राजनीति उनके मतलब की नहीं है तब इतने पदों को संभालना उचित नहीं। उन्होंने सभी सरकारी और निजी पदों से एक क्षण में त्यागपत्र दे दिया और बस गए वृन्दावन में। वृंदावन में बसते वक्त प्रण किया कि अन्तिम साँस तक वे वृन्दावन में रहेंगे। वृद्धावस्था में उन्होंने संस्कृत सीखने का मन बनाया। संस्कृत का शिक्षक उनकी उम्र से बहुत छोटा था। वे अपने संस्कृत शिक्षक को बेहद सम्मान देते थे। साठ वर्ष की उम्र तक आदर्श शिक्षक रहे कन्हैया लाल वृद्धावस्था में एक आदर्श छात्र बन गए।

1934 में कन्हैया लाल गुप्त मथुरा के क्लेंसी इंटर काॅलेज में शिक्षक थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि शिक्षकों के हितों की लड़ाई लड़ने वाली संस्था ‘माध्यमिक शिक्षक संघ’ का जन्म कन्हैयालाल की पहल पर हुआ था। इसका पहला सम्मेलन मथुरा के ‘चम्पा अग्रवाल इण्टर काॅलेज’ के एक कक्ष में हुआ था। पहला प्रादेशिक सम्मेलन भी प्रसिद्ध पत्रकार कृष्ण दत्त पालीवाल की अध्यक्षता में इसी काॅलेज में हुआ था। शिक्षकों के हितों की रक्षा में खपे कन्हैया लाल दो बार विधान परिषद में एमएलसी रहे। उनका कार्यकाल 1964 तक रहा। कन्हैयालाल को शिक्षा में सुधार के लिए गठित ‘कोठारी आयोग’ में सदस्य भी बनाया गया।वृन्दावन में आज टी.बी. सैनेटोरियम का नाम देश भर में है। इस संस्था के संस्थापक कन्हैयालाल गुप्त ही थे। कन्हैयालाल गुप्त को किसी राजनैतिक पार्टी से कोई विशेष लगाव नहीं रहा। वह तो गांधी जी के पूर्णरूपेण अनुयायी रहे।

जब वह एम.एल.ए. थे तब मथुरा की डेम्पियर नगर कालोनी में एक कोठी कन्हैयालाल के नाम प्रशासन ने आवंटित कर दी थी। कोठी एक बंगाली विधवा की थी। कलकत्ते में रहने वाली इस विधवा को अचानक अपने मकान की जरूरत पड़ी। कन्हैयालाल गुप्त से उक्त विधवा ने जैसे ही अपनी जरूरत की बात कही, उन्होंने एक घंटे के अन्दर कोठी की चाबी मकान मालकिन को सौंप दी।कन्हैया लाल गुप्त में आदर्शवाद, संघर्षशीलता, ईमानदारी और मानवीयता कूट-कूट कर भरी थी।यह एक संयोग ही था कि कन्हैयालाल के जन्म की तारीख 2 अक्टूबर है। 1917 में जन्मे कन्हैयालाल अपने आचरण और विचार से गांधीजी का स्मरण दिलाते थे। मथुरा के लोग उन्हें मथुरा का गांधी कहकर सम्मान देते थे। मथुरा के इस गांधी को नई पीढ़ी जानती नहीं, और पुरानी भूल गई।

हमारे जनपद के शिक्षा मनीषियों का दायित्व है कि वे कन्हैयालाल गुप्त के जीवन की कहानी स्कूल और महाविद्यालय के छात्रों के पाठ्यक्रम में शामिल करें। ऐसा करने से अच्छे जीवन मूल्यों को बल मिलेगा।

डॉ. अशोक बंसल.

(डॉ. अशोक बंसल अनेक वर्षों हिंदी ,अंग्रेजी के समाचार पत्रों से जुड़े रहे , अनेक पुस्तकें लिखीं हैं। विगत एक दशक से मेलबर्न में कुछ वक्त बिताते हैं। ब्रज को केंद्र में लिखी पुस्तकें चर्चा में हैं। काफी टेबल बुक चल मन वृंदावन आपकी बेहद चर्चित कृति हैं। संपर्क 98373319969)

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