दो खामोश आंखें – 6 Posted on 28th January 2011 by Yogendra Singh Chhonkar योगेन्द्र सिंह छोंकर अपनी अपनी वासनाओं में हस्तमैथुनरत दुनिया में बेइरादा डोलती कुछ बावरी भी हैं दो खामोश ऑंखें
साहित्य दो खामोश आंखें – 5 Yogendra Singh Chhonkar 28th January 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर हो जाऊं जहाँ के लिए मसीहा या फिर कातिल मैं क्या हूँ जानती हैं बखूबी दो खामोश ऑंखें
साहित्य दो खामोश आंखें 7 Yogendra Singh Chhonkar 28th January 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर किसी के रूप से होकर अँधा जो मैं भटका जहाँ में जानता हूँ पीठ पर चुभती रहेंगी दो खामोश ऑंखें
साहित्य दो खामोश आंखें – 23 Yogendra Singh Chhonkar 2nd February 2011 0 योगेन्द्र सिंह छोंकर मेरी ही बदकिस्मती थी जो न हो सका उनका मुझे अपना बनाना ही तो चाहती थी दो खामोश ऑंखें