श्रीराम जी के जीवन चरित पर आधारित प्रथम रचना महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण है, जो संस्कृत भाषा की रचना है। कालांतर में देश भर में अलग-अलग अंचलों में कई कवियों ने श्रीराम के जीवन चरित को अपनी -अपनी भाषा में रचा। सर्वाधिक प्रसिद्धि मिली गोस्वामी तुलसीदास कृत राम चरित मानस को। इसी मानस का एक कांड है सुंदरकांड। सुंदरकांड एक छोटा सा अध्याय है जिसमें हनुमानजी का चरित्र प्रमुखता से उभर कर सामने आता है। श्री रामचरित मानस का यह सुंदर कांड न केवल बहुत प्रसिद्ध है साथ ही इसकी लोकप्रियता भी कम नहीं है। आध्यात्मिक अभिरुचि वाला शायद ही कोई व्यक्ति होगा जिसे यह कांड कंठस्थ न हो।
इतनी महान और प्रसिद्ध रचना पर कोई टीका-टिप्पणी करना आसान काम नहीं है। सरल सुंदरकांड के रचियता का यह प्रयास छोटी बात नहीं है। अवधी भाषा में रचित मानस के इस अध्याय को ब्रजभाषा के शब्दों में पिरो कर कवि खजान सिंह जैसावत ने एक बड़ा साहस का कार्य किया है।
विषयवस्तु और भाषा
विषयवस्तु वही रामचरित मानस के सुंदरकांड वाली ही है जहां सीता की खोज में दक्षिण दिशा गया वानर दल सागर तट पर उपस्थित होता है और हनुमानजी वायु मार्ग से लंका के लिए प्रस्थान करते हैं। कुल पांच सर्गों में वर्णित यह कथा वानर सेना के साथ श्रीराम के सागर तट पर पहुंचने और सागर द्वारा नल-नील का भेद बताने तक जाती है।
पुस्तक में हनुमानजी की आरती, गंगा मैया का वंदन, गौलोक धाम और ब्रज दर्शन, डेढ़ दर्जन सैवैये और अंत में गिर्राज जी की वंदना भी संकलित है।
पुस्तक की भाषा घोषित तौर पर ब्रजभाषा है पर यह सूर और रसखान जैसी ठेठ ब्रजभाषा नहीं है, कवि की भाषा काफी हद तक हिंदी की खड़ी बोली के निकट महसूस होती है। संभवतः यह कवि की प्रथम प्रकाशित रचना है, प्रयास वंदनीय है। संशोधन, परिवर्धन आदि की भी गुंजाइश है।
पुस्तक के कुछ अंश
“सब वानर नत मस्तक है,
रघुवर के चरन परे हे!
कर गह हिय कौ चुम्बन करि,
साकार श्री राम खड़े हे!!”
“गद्-गद् स्वर ते श्री रघुवीर,
वचनामृत वानी बोले!
कह देउ सब कुशल कहानी,
कहा विधि वैदेही बोले!!”
“श्री गिरिराज हमारे जय जय
राधा रमन बिहारी जय!
कैसे तोय मनाऊं गिरिवर
हे बृज राज तुम्हारी जय जय!!”
“शीश विराजौ मेरे श्री कृष्ण, और केशन में रहो केशव जी!
आंखन माखन चोर बसौ, नित कानन कान्ह की बंशी रमौ जी!!”
कवि का परिचय
सरल सुंदरकांड की रचना की है खजान सिंह जैसावत ने। जैसावत एक सेवानिवृत शिक्षक हैं जो मथुरा जिले की गोवर्धन तहसील के गांव मुडसेरस में रहते हैं। जैसावत पूर्व में मथुरा जिला पंचायत के सदस्य रह चुके हैं। साथ ही ब्रजमंडल क्षत्रिय राजपूत महासभा मथुरा के अध्यक्ष भी रह चुके है। पुस्तक यूनिवर्सल प्रेस मथुरा से प्रकाशित है। पुस्तक के एकमात्र वितरक कवि खजान सिंह जैसावत स्वयं है, जिनका फोन नंबर 9568636566 है।
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