भरतपुर राज्य के दरबारी कवि (भाग एक)

भरतपुर दरबार ने बड़ी संख्या में कवियों और साहित्यकारों को आश्रय दिया। यहां के अधिकांश शासक साहित्यानुरागी थे। राज्य के संस्थापक राज बदनसिंह स्वयं सरस् कवि और ब्रजभाषा साहित्य-संगीत के प्रोत्साहक थे। वैर के राजा प्रताप सिंह तथा उनका पुत्र बहादुर सिंह काव्य कला के पारखी और साहित्यकारों के आश्रयदाता थे। उनके समय पर वैर का किला साहित्यकारों का मुख्य आश्रयस्थल था और वैर नगर लघुकाशी कहलाता था। एक महान योद्धा होते हुए भी सूरजमल काव्य कला का ज्ञाता और आश्रयदाता था। यह कहा जाता है कि सूरजमल ने श्रीहरिदेव जी के चरणों में कुछ विनयभावी पद रच कर समर्पित किये थे। 

कविवर सूदन

इनका पूरा नाम मधुसूदन था। ये माथुर चतुर्वेदी थे और सूरजमल के दरबार में थे। इन्होंने प्रसिद्ध ग्रन्थ सुजान चरित्र की रचना की थी। सुजान चरित्र एक ऐतिहासिक काव्य ग्रन्थ है जो वीर रस से सिक्त है। दुर्भाग्यवश यह ग्रन्थ अपूर्ण है।

आचार्य सोमनाथ

इनका पूरा नाम आचार्य मिश्र सोमनाथ था। ये माथुर चतुर्वेदी थे। ये वैर में आकर बस गए थे और इन्होंने राजा प्रताप सिंह के लिए काव्य रचना की थी। इनके ग्रंथों में संग्राम दर्पण, रस पीयूष निधि, रास पंचाध्यायी, राम कलाधर, रामचरित रत्नाकर, ब्रजेन्द्र विनोद, श्रृंगार विलास, प्रेम पच्चीसी, माधव विनोद या मालती माधव नाटक, ध्रुव विनोद, शशिनाथ विनोद या महादेवजी को ब्याहुलो प्रमुख हैं। इन्होंने सूरजमल के लिए सुजान विलास नामक ग्रन्थ की रचना भी की थी। यह एक नीतिपरक ग्रन्थ है।

कलानिधि

इनका पूरा नाम आचार्य देवर्षि कृष्ण ‘कलानिधि’ भट्ट था। ये राजा प्रताप सिंह के दरबार में थे। इन्होंने दुर्गा भक्ति तरंगिणी, राम चंद्रोदय, तैत्तरीयुपनिषद का भावानुवाद तथा राम गीतम नामक ग्रंथों का प्रणयन किया था। 

शिवराम

इनका पूरा नाम कविवर आचार्य शिवराम था। ये सूरजमल के आश्रित कवि थे। इन्होंने नवधा भक्ति राग-रस सार नामक ग्रन्थ सूरजमल को समर्पित किया था। इनका विद्वता तथा काव्य प्रतिभा से प्रसन्न होकर सूरजमल ने इन्हें 36 हजार मुद्राएं देकर पुरस्कृत किया था।

कृष्ण कवि

इनका पूरा नाम कृष्णदास भट्ट था। ये सूरजमल के आश्रित कवि थे। इन्होंने सूरजमल के लिए बिहारी सतसई की टीका और गोविंद विलास ग्रन्थ रचे थे। गोविंद विलास रीति ग्रन्थ है।

अखैराम

इनका नाम द्विजवर मिश्र अखैराम गर्ग गोत्री था। ये सूरजमल के दरबार में थे। इन्होंने अखैसार, विचार चरित्र, कृष्ण चंद्रिका, क्षेत्रीलाल, सुजान विलास, मुहूर्त चिंतामणि, स्वरोदय, हस्तमलक वेदांत, शिवतंत्रोंक्त ज्ञान, प्रेम रस सागर, वृंदावन सत, लघुजातक, युद्धसार या क्रुद्ध युद्धसार, गंगा माहात्म्य, बाण गंगा माहात्म्य तथा वैधबोध जैसे ग्रन्थ रचे।

चाचा हित वृन्दावन दास

चाचा हित वृन्दावन दास मूलतः वृन्दावन में रहकर काव्य रचना करते थे। 1757 ईस्वी में अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण के समय ये वृन्दावन से निकलकर भरतपुर पहुंच गए थे। इन्होंने भरतपुर किले में रहकर ही अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ हरिकला वेली की रचना की थी। इस ग्रंथ में उन्होंने अब्दाली के आक्रमण, संतों व नागरिकों की हत्या तथा ब्रज की बर्बादी का वर्णन किया है। ग्रन्थ की दूसरी कला में प्रमुख वैष्णव भक्तों की हत्या किए जाने का जिक्र मिलता है। जिनमें उनके गुरु गोस्वामी रूपलाल के बड़े भाई गोस्वामी मुकुन्दलाल, हित चतुरासी के टीकाकार बाबा प्रेमदास, कृष्णदास भावक, मीराबाई के शिष्य जादौदास, घनानन्द (आनंदघन), अवधूत साधु जुगलदास, पुजारी कृष्णदास और भगवानदास आदि लोगों के मारे जाने का वर्णन है। 

भोलानाथ शुक्ल

ये संस्कृत, व्याकरण और ब्रजभाषा के मर्मज्ञ विद्वान और लेखक थे। मुगल बादशाह ने इनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर इन्हें पांच सौ जात का मन्सन दिया था। अब्दाली के आक्रमण दिल्ली के दूसरे अमीर-उमरावों, सेठ-साहूकारों और सामान्य नागरिकों की भांति ये भी दिल्ली छोड़ने को विवश हुए और भरतपुर पहुंच गए। सूरजमल ने इन्हें धन-धरती देकर सम्मानित किया। इन्होंने कुंवर नाहरसिंह के आश्रय में सुमन प्रकाश, नायिका भेद, श्रीमद भागवत गीता का पद्यानुवाद तथा लीला पच्चीसी की रचना की। 

(अगले भाग में जारी)

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