टेर लगाना यानी आवाज लगाना या पुकारना। श्रीकृष्ण जब गाएं चराने वन में जाते थे तो एक कदम्ब के वृक्ष पर चढ़कर गायों को हेला देते थे। हेला देना यानी गायों को बुलाना। यह लीला जिस स्थान की है वह है टेर कदम्ब। नंदगांव में स्थित यह स्थान अपने प्राकृतिक सौंदर्य से श्रद्धालुओं को रिझाता है।
श्रीकृष्ण की गोचारण लीला का साक्षी है टेर कदम्ब
यह स्थान श्रीकृष्ण की गोचारण लीला का स्थान है। बचपन में श्रीकृष्ण गाएं चराने जाते थे। उनकी गाएं वन में चरते हुए दूर निकल जाती थीं। घर लौटने का समय होने पर गायों को वापस बुलाने के लिए सभी ग्वाले उन्हें पुकारते थे। यहां के कदम्ब के वृक्ष पर चढ़कर श्रीकृष्ण स्वयं अपनी गायों को उनके नाम से पुकारते थे। श्यामा, भूरी, कपिला जैसे नाम उन्होंने गायों को दिए हुए थे।
गोपाष्टमी को होती है लीला
श्रीकृष्ण की गोचारण लीला का उत्सव आज भी मनाया जाता है। कहते हैं गोपाष्टमी के दिन ही श्रीकृष्ण ने गाय चराना शुरू किया था। नंदगांव में गोपाष्टमी के दिन उत्सव मनाया जाता है। इस दिन नंदभवन, खूंटा, मांट, यशोदा कुंड के साथ साथ टेर कदम्ब पर भी लीला आयोजन होता है। विद्वत गोस्वामीजन समाज गायन के माध्यम से श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते हैं।
रूप गोस्वामी की भजन स्थली है टेर कदम्ब
चैतन्य महाप्रभु के निर्देश पर ब्रज आये रूप गोस्वामी जी ने टेर कदम्ब पर ही साधना की थी। रूप गोस्वामी के बड़े भाई सनातन गोस्वामी ने पावन सरोवर के तट पर साधना की थी।
रूप गोस्वामी ने किया था गोविंद देव जी के विग्रह का प्राकट्य
गोविंद देव जी का विग्रह अब जयपुर में विराजमान है। पहले गोविंद देव जी वृंदावन में विराजित थे। गोविंद देव के इस सिद्ध विग्रह का प्राकट्य रूप गोस्वामी जी ने नंदगांव में ही किया था।
राधा रानी ने स्वयं खीर बनाई थी भक्तों के लिए
सनातन गोस्वामी पावन सरोवर के तट पर अपनी कुटी में भजन करते थे। वे भिक्षा के लिए बहुत कम ही निकलते थे जिसके कारण उनका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया था। एक बार सनातन गोस्वामी अपने अनुज रूप गोस्वामी से मिलने टेर कदम्ब पहुंचे। भाई को कृशकाय देखकर रूप गोस्वामी के मन में उन्हें खीर खिलाने का विचार हुआ। खीर बनाने की सामग्री न होने के कारण वह अपनी इच्छा मन में ही दबा गए। सनातन गोस्वामी संध्या वंदन के लिए गए तभी एक ब्रज बालिका रूप गोस्वामी की कुटिया पर खीर बनाने की सामग्री लेकर पहुंच गई। रूप गोस्वामी को भजन करते देख वहां खीर बनाकर रख गयी। सनातन गोस्वामी के आने पर रूप गोस्वामी ने उन्हें खीर भेंट की। खीर का स्वाद चखते ही सनातन समझ गए कि यह खीर लाने वाली बालिका स्वयं राधा रानी थीं। सनातन गोस्वामी ने रूप गोस्वामी को समझाया कि इस तरह के विचार भी मन में नहीं लाने चाहिए जिससे स्वयं राधा कृष्ण को उनके लिए कष्ट उठाना पड़े। हम यहां सेवा करने आये हैं न कि प्रभु से सेवा करवाने।
आज भी बंटता है खीर का प्रसाद
राधा रानी द्वारा अपने भक्तों को खीर बना कर खिलाने की लीला के प्रति आस्था रखने के कारण आज भी यहां खीर का प्रसाद बांटा जाता है।
भजन कुटी है दर्शनीय
टेर कदम्ब पर रूप गोस्वामी की भजन कुटी के दर्शन होते हैं। यहां गोचारण के लिए आये कृष्ण और बलराम के विग्रह विराजमान हैं। यहां आज भी सुंदर लताओं से आच्छादित कुंज हैं। कुंज इतने सघन हैं कि धूप मुश्किल से जमीन तक पहुंच पाती है। समीप ही टेर कदम्ब कुंड है। यहां का वातावरण अत्यंत सुरम्य है। यहां बड़ी संख्या में मोर भी देखने को मिलते हैं।
कैसे पहुंचें
नंदगांव के दायीं ओर करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर टेर कदम्ब स्थित है। इसके एक फर्लांग पर आशेश्वर महादेव का प्रसिद्ध शिव मंदिर है।