पिछले भाग में हमने भरतपुर राज्य के मुख्य दरबारी कवियों में से महाकवि सूदन, आचार्य सोमनाथ, कलानिधि भट्ट, शिवराम, कृष्ण कवि, अखैराम, भोलानाथ शुक्ल आदि की रचनाओं पर चर्चा की थी। वहीं हमने राधाबल्लभ सम्प्रदाय के प्रमुख सन्त चाचा हित वृन्दावनदास के बारे में भी जाना। हालांकि चाचा जी को दरबारी कवि कहना नीतिसंगत नहीं है पर उनकी मुख्य काव्यकृति हरिकला वेलि की रचना भरतपुर दुर्ग में हुई इसलिए उन्हें यहां सूचीबद्ध किया गया।
भरतपुर के राजपरिवार के साहित्यानुरागी
भरतपुर राज्य के संस्थापक बदनसिंह, महाराजा सूरजमल के काव्य प्रेम से हम भली भांति परिचय हैं। राजा बदनसिंह के दूसरे पुत्र राजा प्रताप सिंह जिन्हें वैर की जागीर दी गई थी वे भी बड़े साहित्यानुरागी व्यक्ति थे। यह परंपरा प्रताप सिंह के पुत्र राजा बहादुर सिंह ने भी कायम रखी। महाराजा सूरजमल के पुत्र महाराव नाहर सिंह भी काव्य कला के प्रेमी थे। इसी तरह उनके एक अन्य पुत्र मुख्तार राज राजा नवल सिंह का भी काव्य कला अनुराग मालूम होता है।
जवाहर सिंह और काव्य कला
महाराजा जवाहर सिंह के बारे में हम पाते हैं कि उनकी काव्य के प्रति अभिरुचि भले ही ज्यादा नहीं थी पर वे कवियों और विद्वानों को आश्रय अवश्य देते थे। इनके काल में भक्तिपरक साहित्य का सृजन निरन्तर चलता रहा। भूधर ने ध्यान बत्तीसी तथा दान लीला का सृजन किया। पतिराम भट्ट और सुधाकर ने वीर रस प्रधान स्फुट छंद व कवित्त समाज गोष्ठियों में प्रस्तुत करके जनमानस को समाज व संस्कृत की रक्षा में तन्मयता से योग देने को प्रेरित किया। रंगलाल ने जवाहर सिंह की प्रशस्ति में चम्पू में साखा लिखा और जवाहरसिंह ने इसे खोहरी गांव कांसे में दिया था। फुटकर कवित्त लिखने वाले मोतीराम सारस्वत को जवाहरसिंह ने एक रूपया दैनिक चुकारा पर आश्रय दिया था।
राजा नवलसिंह
राजा नवलसिंह की ब्रजभाषा साहित्य में अभिरुचि थी। उसने रस, अलंकार, नायक-नायिका भेद का गहन अध्ययन किया था। उसने साहित्यकारों, विद्वानों, पुराणवेत्ताओं का उचित सम्मान किया और समाज-सभा में उन्हें समुचित स्थान दिया। नियमित संघर्षों में रहने के बावजूद भी वह साहित्यकारों को दान व मान से प्रोत्साहित किया करता था। इनके समय पर कविवर भोलानाथ शुक्ल ने इश्क लता की रचना की थी। यह काव्य प्रबन्ध ब्रजभाषा और पंजाबी मिश्रित भाषा में है। भोलानाथ शुक्ल ने नवलसिंह के लिए श्रीमद्भागवत दशम स्कंद का पद्यानुवाद, श्रृंगारिक ग्रन्थ नख शिख भाषा, नीति और प्रशस्ति परक ग्रन्थ नवलानुराग आदि ग्रन्थ रचे थे। इसीकाल में दीवान चत्र सिंह चौहान के लिए भोलानाथ शुक्ल ने सुख निवास ग्रन्थ रचा था। यह ग्रन्थ गीत गोविंद का ब्रजभाषा में भावात्मक पद्यानुवाद है।
नवलसिंह के समय के कवियों में एक प्रमुख नाम कवि शोभनाथ भारद्वाज का मिलता है। यह जयपुर दरबार में था पर बाद में नवलसिंह के बुलावे पर डीग आ गया। इसने एक वृहद नीति ग्रन्थ नवल रस चंद्रोदय की रचना की। शोभनाथ ने नवलसिंह की वीरता, दानशीलता व गुणग्राहिता में कुछ स्फुट छंद व कवित्त भी लिखे। इसके विवरण से नवलसिंह की रसिकता, रीति काव्य के प्रति अभिरुचि तथा भक्ति अनुराग का स्पष्ट बोध होता है। इन्होंने सभा विनोद ग्रन्थ भी लिखा था जिसमें पक्षी साहित्य, प्रकृति चित्रण, नायक-नायिका भेद, तर्क शास्त्र की उक्तियां व उनके प्रयोग से समाज-सभा में सम्मान हासिल करने की सुंदर युक्तियां दर्ज हैं।
इस काल में हरदेवजी मन्दिर के गुसाईं हीरालाल के प्रपौत्र मुरलीधर व श्रीधर की काव्य रचनाओं का विवरण भी मिलता है। मुरलीधर ने श्रीमद्भागवत के पंचम स्कंद का पद्यानुवाद किया था। कवि ब्रजचन्द्र ने स्फुट कवित्त लिखे वहीं इसी काल में हरिचन्द ने सूरजमल के शौर्य पर कवित्त रचे और बरसाना की लीला नामक लघु ग्रन्थ रचा।
कवि जसराम ने नवलसिंह के शासनकाल के सात शत्रुओं का वर्णन अपनी कविता में किया है। लाल कवि ने सौंख-अडींग युद्ध के बाद श्रृंगार व वीर रस प्रधान कवित्तों में मिश्र गंगाप्रसाद भदौरिया, ठाकुरदास सेंगर के युद्ध कौशल तथा बलिदान की प्रशंसा की है।
जाट राज्य और जैन साहित्य
जाट शासनकाल में भक्ति भावी जैन साहित्य के सृजन को भी बहुत प्रोत्साहन मिला। हरविलास अग्रवाल ने काष्ठा संघ गच्छ के आचार्य भट्टारक माहचन्द्र के उपदेश से षटमाल का काव्यात्मक अनुवाद किया। यह ग्रन्थ 1754 ईस्वी में पूर्ण हुआ। इसमें भरतपुर के जैन चैत्यालय तथा उसके निर्माता चौधरी वेणीदास का उल्लेख है। एक अन्य जैन कवि नथमल बिलाला का जिक्र मिलता है। नथमल योग्य जिन भक्त, प्राकृत व अवहट्ट भाषा का ज्ञाता, ब्रजभाषा में मुक्तक तथा प्रबन्ध काव्य रचनाकार था। इसे संस्कृत भाषा, रस, अलंकार, व्याकरण, जिन पुराणों तथा जिन कथाओं का अच्छा ज्ञान था। नथमल ने नेमिनाथ कौ ब्याहुलौ, जिन गुण विलास, सिद्धांत सारदीपक, अनंत चतुर्दशी व्रतकथा, नागकुमार चरित्र, जीवनधर चरित्र, संभव शरण मंगल, सेवक पदावली, जम्बूस्वामी चरित्र आदि ग्रंथों की रचना की थी।
हरिसिंह छावड़ा ने ब्रह्म पच्चीसी, सम्यक पच्चीसी व बौध पच्चीसी नामक ग्रन्थ रचे और कई फुटकर कवित्त, गीत व राग-रागनी रचीं। आशाराम ने दीवान जोधराज पल्लीवाल के आग्रह पर आचारंग टीका की प्रतिलिपि की। इस दौरान कई अन्य ग्रंथों की प्रतिलिपियां भी तैयार की गईं।
(अगले भाग में जारी)