मथुरा में गुमनामी रहे – विप्लवी विजयसिंह ‘पथिक’

डॉ. अशोक बंसल (लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार)

विजय सिंह ‘पथिक’ विस्मृति के गर्त में दबा हुआ वह नाम है, जिससे राजस्थान के राजा-महाराजा भय और आतंक से काँप उठते थे। महात्मा गांधी ने विजय सिंह ‘पथिक’ की राष्ट्रभक्ति और बहादुरी के किस्से सुने तो कहा—‘‘मैं आपको पथिक की बाबत कुछ बता सकता हूँ। सब लोग बातें बनाने वाले हैं। पथिक सैनिक हैं, वीर हैं, जोशीले हैं पर साथ ही कुछ जिद्दी भी हैं।” बहुत कम लोग जान सके कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रशंसा-पात्र रहे पथिक मथुरा के जनरल गंज इलाके में बहुत दिन रहे, एकदम साधारण और अज्ञात।

बुलंदशहर में जन्मे थे विजय सिंह पथिक

विजय सिंह पथिक बुलन्दशहर के गुठावली गांव में मार्च सन् 1882 में जन्में थे। बचपन का नाम भूपसिंह था। इनके दादा श्री इन्द्रसिंह गूजर ने 1857 की लड़ाई में जमकर भाग लिया था। सन् 1906 में वे क्रांतिकारी शचीन्द्र सान्याल के सम्पर्क में आये और इनके माध्यम से इनका परिचय रासबिहारी बोस से हुआ। रासबिहारी बोस भूपसिंह के व्यक्तित्व से प्रभावित हुए। इन्हीं दिनों वे श्री अरविन्द के छोटे भाई वारीन्द्र के संपर्क में आये और बम बनाने की कला सीखी। पकड़े जाने पर सजा हुई।

लॉर्ड हार्डिंग की सवारी पर फैंका था बम

23 दिसम्बर 1912 को दिल्ली के चाँदनी चौक में लार्ड हाॅर्डिंग की सवारी पर जिन क्रान्तिकारियों द्वारा बम फेंका गया था उनमें पथिक भी शामिल थे। तमाम क्रांतिकारी गतिवधियों में शरीक पथिक भेष बदल कर जंगलों में भटके। ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के लिए पन्द्रह हजार रूपये का इनाम घोषित किया था ।

बिजोलिया किसान सत्याग्रह का किया नेतृत्व

मेवाड़ में एक जगह है बिजौलिया। यहाँ के किसान जमींदार के अत्याचारों से बेहद दुःखी थे। बिजौलिया के लोगों ने विजय सिंह पथिक से मिले और जमींदार द्वारा किये जा रहे बेजा शोषण उत्पीड़न से छुटकारा दिलाने की बात कही। पथिकजी किसानों का साथ देने का बीड़ा उठाकर बिजौलिया रवाना हो गए। पथिक के नेतृत्व में बिजौलिया आन्दोलन लम्बे समय के बाद सफल हुआ। पथिक शीघ्र ही अपने निराले व्यक्तित्व व अनोखी कार्यशैली से किसानों के विश्वासपात्र बन गये। पथिक की एक आवाज से हजारों किसान एकत्रित हो जाते थे, सभाएं होती थीं और उनमें उनका जोशीला भाषण जादू का सा कार्य करता था। परिणामस्वरूप किसानों ने लगान देना बंद कर दिया। जमीन को बिना जोते रखा और शादी-विवाह बंद कर देने पड़े। खेती न होने से सम्पूर्ण इलाके को भयंकर आर्थिक संकट से गुजरना पड़ा। पथिक के नेतृत्व में बिजौलिया आन्दोलन लम्बे समय के बाद सफल हुआ।

गांधी जी ने अखबार में लेख लिखकर की तारीफ

बिजौलिया सत्याग्रह की कहानी सुनकर महात्मा गांधी ने श्री महादेव भाई देसाई को बिजौलिया भेजा। गांधीजी ने अपने दैनिक पत्र ”‘नवजीवन’” में बिजौलिया के सत्याग्रह के संबंध में एक सम्पादकीय लेख भी लिखा। अमर शहीद गणेशशंकर विद्यार्थी ने अपने अखबार ‘प्रताप’ के माध्यम से पथिक का साथ दिया। ‘प्रताप’ ने आन्दोलन के समाचार देश भर में पहुंचाने का कार्य किया। इसका परिणाम यह हुआ कि लोकमान्य तिलक भी पथिक से प्रभावित हुए बिना न रहे। सन् 1930 के सत्याग्रह आन्दोलन में भी उन्हें जेल जाना पड़ा।

जब पथिक ने मार गिराया शेर

पथिक  की निडरता के सम्बन्ध में एक मजेदार घटना है। बीहड़ों में भटकते हुए एक बार पथिक  का सामना एक शेर से हो गया। उन्होंने रायफल की गोली से शेर को मार गिराया और थके होने के कारण शेर के शव का तकिया बनाकर सो गये। संयोगवश एक पुलिस अधिकारी तीन सिपाहियों के साथ उधर से आ निकला। पथिकजी को शेर का सिरहाना लगाये बेधड़क सोते देखकर वह भयभीत हो गया और चुपचाप खिसक लिया। इस घटना के बाद पथिकजी के बारे में यह बात फैल गई कि पथिक सिध्द पुरूष हैं। वह पुलिस अधिकारी जिसने शेर के ऊपर पथिक जी को सोते हुए देखा था, एक दिन मौका देखकर पथिक से एकांत में मिला और तंत्र – मंत्र सिखाने की याचना करने लगा। पथिक हँस पड़े और उसे टाल दिया।

राजस्थान संदेश और राजस्थान केसरी पत्रों का किया संपादन

एक सैनिक के रूप में कार्य करते रहने के अतिरिक्त पथिक को लिखने-पढ़ने का बेहद शौक था। उन्होंने समय समय पर कई पत्रों का सम्पादन भी किया। पहले अजमेर और बाद में आगरा में ‘राजस्थान संदेश’ साप्ताहिक पत्र निकाला। उन्होंने श्री जमनालाल बजाज के सहयोग से ‘राजस्थान केसरी’ पत्र का सम्पादन उस समय किया जब देशी नरेशों के खिलाफ प्रकाशित समाचारों को पढ़ने तक से लोग डरते थे।

जीवन का अंतिम समय मथुरा में बिताया

आजादी के बाद पथिक जैसे स्वतन्त्रता सेनानी के लिए आवास और भोजन की समस्या कड़ी हो गई । वे मथुरा केवल इसलिये आकर बस गये क्योंकि यहाँ खाने-पीने की चीजें अजमेर की अपेक्षा सस्ती थी। मथुरा के जनरलगंज इलाके में एक मकान अथक परिश्रम से खड़ा किया, तब कहीं रहने की समस्या सुलझ सकी। इस मकान की चिनाई   पथिक ने अपने हाथों से की थी। 28 मई 1954 को पथिकजी का मथुरा में निधन हो गया। सन 1992 में भारत सरकार ने पथिक  जी पर एक डाक टिकिट भी जारी किया था।  

बंद हो गया विजय सिंह पथिक पुस्तकालय

पथिक जी की श्रीमती जानकी देवी ने अपने क्रांतिकारी पति की स्मृति-रक्षा के लिये जनरलगंज में ‘विजय सिंह पथिक पुस्तकालय’ की स्थापना की। मुझे कई बार जानकी देवी के दर्शन करने और पथिक जी के किस्से सुनने का अवसर मिला था। दुःख की बात यह है कि यह अब यह पुस्तकालय भी नहीं रह। पथिक जी का मकान और पुस्तकालय मथुरा का राजकीय इण्टर काॅलेज के गेट के सामने था लेकिन इस काॅलेज के किसी शिक्षक ने अपने छात्रों को पथिक जी के बारे में कभी नहीं बताया । इन शिक्षकों ने पथिक जी का नाम भी नहीं सुना था। अंधेरे में उजियारा करने वाले पथिक जी मथुरा में जितने वक्त रहे, गुमनामी में रहे।

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