रामजी दास गुप्ता: मथुरा के एक महान स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया

डॉ. अशोक बंसल (वरिष्ठ पत्रकार)

स्वतंत्रता दिवस की आहट जैसे ही होती है, हम अपने बहादुर सैनानियों का स्मरण करने लगते हैं। अनेक सैनानी बहुचर्चित है, अतः उनका स्मरण हम बार बार करते हैं, करना भी चाहिए, लेकिन अनेक ऐसे हैं जिन पर विस्मृति की चादर ढकी है। ऐसे ही एक विलक्षण व्यक्तित्व हैं मथुरा के श्री राम दास गुप्ता।

स्वतंत्रता आंदोलन में छह बार गए जेल

सन 1906 में जन्मे श्री रामजी दास गुप्ता के समकालीन लोग आज नहीं रहे और जनपदीय इतिहास लेखकों और पत्रकारों ने इस सैनानी के योगदान को प्रचारित नहीं किया अतः अपने जीवन काल में छह बार जेल जाकर पांच साल से अधिक वक्त जेल की सलाखों के पीछे बिताने वाले बहादुर सैनानी रामजी दास गुप्ता के नाम से हम अपरिचित हैं। पतली दुबली काया के स्वामी रामजी दास गुप्ता ने फिरंगियों के मंसूबों को ध्वस्त करने में जिस प्रकार अपने जीवन को होम दिया, वह नौजवानों के लिए प्रेणनाप्रद है।

सुभाष चंद्र बोस ने दिया था प्रशस्ति पत्र

बालक रामजी दास अपने एक शिक्षक की प्रेणना से स्कूली शिक्षा छोड़कर आजादी के आंदोलन में कूदे थे। बच्चों की टोली बनाई और गली- गली देश भक्ति की अलख जगाने में जुट गए। सन 1922 में मथुरा में बापू पधारे तो अपने साथियों के संग उनसे मिलने पहुंचे, 1928 में साइमन कमीशन के विरोध में जमकर प्रचार किया, नमक सत्याग्रह के सिलसिले में 1930 में गिरफ्तार हुए। छह माह की सजा हुई। छूटे तो मनोबल न टूटा। 1931 में सुभाष बाबू मथुरा आये, तब रामजी दास गुप्ता नौजवान भारत सभा के प्रांतीय अध्यक्ष थे। सुभाष बाबू के प्रत्येक कार्यक्रम में शामिल हुए। सुभाष बाबू कि एक सभा यमुना पार रेतिया मैदान में हुई थी तब रामजीदास उनके नजदीक थे। उस वक्त रामजी दास गुप्ता मथुरा के स्वतंत्रता सैनानियों के अगुआ बन चुके थे। मथुरा के भैंस बोहरा इलाके के ‘पास्ता भवन’ में ‘नौजवान भारत सभा’ की बैठक में सुभाष चंद बोस ने भाषण दिया और रामजी दास को एक प्रशस्ति पत्र दिया। सुभाष बाबू का यह पत्र आज उनके पुत्र सुभाष चंद्र गुप्ता के पास सुरक्षित है।

गांधीजी के अनुयाई और क्रांतिकारियों के मित्र

आजादी के लक्ष्य को सीने से लगाकर सांस लेने वाले रामजी दास गुप्ता राष्ट्रीय नेताओं के सम्पर्क में रहे लेकिन अहंकार से सदैव दूर रहे। बड़े नेताओं से सम्पर्क कर उन्हें मथुरा आमंत्रित करने में रामजी दास गुप्ता की अहम भूमिका रही। आपने 1939 में चंपा अग्रवाल इंटर कालेज के हॉल में आयोजित एक सम्मलेन में जवाहर लाल नेहरू को आमंत्रित किया। रामजी दास गुप्ता ने अपने आपको गांधी के रास्ते पर चल अहिंसावादी मूल्यों को जरूर अपनाया लेकिन अनेक क्रांतिकारियों के सम्पर्क में भी रहे, इनमे विजय सिंह पथिक का नाम प्रमुख है। राजस्थान के अजमेर से पथिक जी अपना साप्ताहिक पत्र ‘सन्देश’ प्रकाशित करते थे। उन्हें दिक्कत आई तो रामजी दास गुप्ता ने इस अखबार को मथुरा से छाप कर उनकी मदद की।

जिला परिषद के निर्विरोध अध्यक्ष रहे

प्रायः देखा गया है कि आजादी मिली तो अनेक ईमानदार स्वतंत्रता सैनानी सत्ता और सत्ताधीशों से छिटक कर जीने लगे। लेकिन रामजी दास गुप्ता राजनीति में हिस्सा लेते रहे और अपनी ईमानदारी की छाप को बरकरार बनाये रहे। वे 1952 से 1963 तक जिला परिषद के निर्विरोध अध्यक्ष रहे। 1974 में विधान सभा का चुनाव लड़े, कांग्रेस का बँटबारा हुआ था। रामजी दास गुप्ता सिंडिकेट कि टिकिट पर थे और इंडिकेट से राम बाबू मिश्रा थे। बाजरा काण्ड के नाम से मशहूर विवाद में फंसे मिश्रजी से बेहद ईमानदार सैनानी परास्त हो गया। इसके बाद रामजी दास गुप्ता ने चुनाव की राजनीति से अपने आपको दूर रखा। रामजी दास गुप्ता के सुपुत्र सुभाष चंद्र बताते हैं कि उन्हें टिकिट संग्रह का शौक था। उनके संग्रह में सबसे पुराना डाक टिकिट सन 1900 का है।

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