वृन्दावन में मीराबाई का मन्दिर


वृन्दावन का कण-कण राधा और कृष्ण की लीलाओं का साक्षी है। यहां की हर लता-पता और कुंज भक्तों की साधना स्थली है। कितने ही रसिक भक्त कवियों ने यहां रह कर राधा-कृष्ण की लीलाओं की अनुभूति की है।

मौजूद है मीराबाई की भजन कुटी

मीराबाई की भजन कुटी।


ऐसे ही भक्त कवियों में शिरोमणि नाम है राजस्थान की प्रेम दीवानी मीराबाई का। मीराबाई वृन्दावन आईं, यहां रहीं और भजन साधना की। उनकी भजन स्थली उनके वृन्दावन निवास की साक्षी है। इस स्थली पर आज एक मन्दिर बना हुआ है। यह मन्दिर कहलाता है मीराबाई का मन्दिर। कहते हैं मीराबाई ने पन्द्रह वर्ष तक वृन्दावन में निवास किया था।

गोविन्द बाग में स्थित है मन्दिर

मन्दिर के इतिहास से जुड़ी जानकारी देता बोर्ड।


यह मन्दिर गोविंद बाग मोहल्ले में प्राचीन निधिवन राज मन्दिर के पास स्थित है। इस स्थान पर गोविंद देव जी का बगीचा था इसलिए इस क्षेत्र को आज भी गोविन्द बाग कहा जाता है। इसके एक तरफ ठाकुर श्री बांके बिहारी जी का प्राकट्य स्थल निधिवन है दूसरी तरफ राधा दामोदर का मन्दिर है। पास ही महाप्रभु हितहरिवंश का रास मंडल है और यमुना नदी प्रवाहित है।

कृष्ण के साथ पूजी जाती हैं राधा और मीरा


वृन्दावन की तमाम गलियों की तरह यह भी एक पतली सी गली है। जिसमें एक छोटा सा प्राचीन मंदिर है जो मीराबाई का मन्दिर है। मन्दिर के गर्भगृह में श्रीकृष्ण राधा और मीरा के साथ विराजमान हैं। यहां मीराबाई का शालिग्राम भी दर्शनीय है। कहते हैं कि जब राणा ने मीराबाई को मारने के लिए सांप भेजा था तो वह शालिग्राम में परिवर्तित हो गया था। गर्भगृह के दाहिनी ओर मीराबाई की भजन कुटी भी दर्शनीय है। मन्दिर का निर्माण राजस्थान की शैली में किया गया है।

जैसलमेर के राजपूतों ने कराया मन्दिर निर्माण


इस मंदिर का निर्माण जैसलमेर के यदुवंशी भाटी राजपूत राम नारायण सिंह ने विक्रमी संवत 1898 में कराया था। भाटी राजपूत श्रीकृष्ण के वंशज माने जाते हैं। राम नारायण सिंह बीकानेर के राठौड़ राजाओं के दरबार मे राज दीवान थे। राम नारायण सिंह ने इस मंदिर का निर्माण अपनी माता लक्ष्मी बाई बाँकावत की स्मृति में कराया था। मन्दिर निर्माण में राम नारायण सिंह के वंशज ठाकुर शिव बक्श सिंह ने भी योगदान किया था। ठाकुर शिव बक्श सिंह पहलवान थे और सितारा ए हिन्द की उपाधि से विभूषित थे।

भाटी राजपूतों के साथ ही वृन्दावन आईं थीं मीरा 


इस मंदिर की सेवा व्यवस्था आज भी राम नारायण सिंह के वंशज संभालते हैं। कहते हैं कि जब मीराबाई ब्रज में आईं थी तब मन्दिर निर्माता राम नारायण सिंह के पूर्वज ही उन्हें अपने साथ लेकर आये थे। उन्हीं लोगों ने मीराबाई को वृन्दावन भ्रमण कराया था। उस समय मीराबाई ने गोविन्द देव जी के बगीचे को अपनी भजन स्थली के रूप में चुना था। यहां पर रहकर मीराबाई ने पन्द्रह वर्ष तक भजन साधना की थी।

यहीं हुई थी मीराबाई की जीव गोस्वामी से भेंट!

कहते हैं जब मीराबाई वृन्दावन आईं थीं तब वह जीव गोस्वामी के दर्शन को गईं। पर जीव गोस्वामी ने उनसे मिलने को मना कर दिया। जीव गोस्वामी ने कहा था कि वह स्त्रियों का मुंह नहीं देखते हैं। तब मीराबाई ने उनसे कहा कि वृन्दावन में श्रीकृष्ण ही एकमात्र पुरुष हैं। आप कृष्ण के अलावा दूसरे पुरुष यहां कहाँ से आ गए। मीराबाई के इस तर्क से जीव गोस्वामी को भावात्मक अनुभूति हुई और वह यहां मीरा से भेंट करने आये। 

मीराबाई और जीव गोस्वामी की यह भेंट काल गणना की कसौटी पर सत्य सिद्ध नहीं होती है। पर लोक परम्परा में इस भेंट के बारे में खूब बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन किया जाता रहा है। हो सकता है कि मीराबाई की भेंट गौड़ीय गोस्वामी जीव गोस्वामी के स्थान पर किसी अन्य आचार्य से हुई हो जो मीरा के समकालीन हो।

error: Content is protected !!