लोकदेवता कल्लाजी राठौड़

लोकदेवता कल्लाजी राठौड़ एक आध्यात्मिक पुरुष होने के साथ-साथ एक वीर योद्धा भी थे। उन्होंने वर्ष 1568 में अकबर द्वारा चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर किये आक्रमण का प्रतिरोध करते हुए असाधारण वीरता का परिचय दिया और वीरगति प्राप्त की थी। 

कल्लाजी राठौड़ के उपनाम

कल्ला जी  को चार हाथों वाला देवता, दो सिर वाला देवता, बाल ब्रह्मचारी व कमधण भी कहा जाता है। इन्हें शेषनाग का अवतार भी माना गया है। इनके चित्र में भी हम इन्हें नाग के स्वरूप में देखते हैं।

लोकदेवता कल्लाजी का सामान्य परिचय

कल्लाजी राठौड़ का जन्म वर्ष 1544 ईसवी में मेड़ता के गांव सामियाना (जिला नागौर) में हुआ था। इनके पिता का नाम आस सिंह था (कहीं-कहीं यह नाम अचल सिंह भी मिलता है)। इनकी माता का नाम श्वेत कंवर था। इनके पिता के बड़े भाई जयमल राठौड़ मेड़ता के शासक थे। प्रसिद्ध भक्त मीराबाई इनके इनके पिता की बहन थीं। 

कल्लाजी की योग्यता

कल्लाजी को जड़ी-बूटियों के बारे में अच्छा ज्ञान था। उन्हें योग की भी अच्छी जानकारी थी। कल्लाजी ने योग की शिक्षा अपने गुरू प्रसिद्ध योगी भैरवनाथ से ली थी। 

कल्लाजी का मेड़ता छोड़कर चित्तौड़ जाना

एक बार अकबर ने मेड़ता पर आक्रमण कर दिया और उस पर कब्जा कर लिया। अकबर ने जयमल राठौड़ से अपनी अधीनता स्वीकार करने को कहा। स्वाभिमानी जयमल राठौड़ ने अकबर की अधीनता स्वीकार करने से इनकार कर दिया और मेड़ता छोड़कर चित्तौड़ के महराणा उदय सिंह के पास चले गए। कल्लाजी भी अपने ताऊ जयमल के साथ चित्तौड़ चले गए।

चित्तौड़ पर अकबर का घेरा

वर्ष 1567 में अकबर ने चित्तौड़ के किले पर घेरा डाल दिया। अकबर की बड़ी सेना देखकर मंत्रियों ने महाराणा उदयसिंह को किले से सुरक्षित निकाल कर गोगुन्दा भेज दिया। महाराणा उदयसिंह चित्तौड़ के किले की सुरक्षा का दायित्व जयमल मेड़तिया और फतहसिंह सिसोदिया को सौंप कर गए थे। जयमल और फतह सिंह की जोड़ी इतिहास में जयमल-फत्ता के नाम से प्रसिद्ध है। 

चार हाथों वाले देवता 

चित्तौड़ का घेरा चलते हुए 1568 आ गया। एक दिन किले की दीवार की मरम्मत करा रहे जयमल मेड़तिया के पैर में एक गोली आ लगी। कहते हैं कि यह गोली अकबर ने अपनी प्रसिद्ध बंदूक संग्राम से चलाई थी। गोली लगने के कारण जयमल मेड़तिया चलने फिरने में असमर्थ हो गए। उसी समय किले की महिलाओं ने जौहर और पुरुषों ने केसरिया करने का निर्णय लिया। यह चित्तौड़ का तीसरा शाका था। जयमल को चलने-फिरने में असमर्थ पाकर उनके भतीजे कल्लाजी राठौड़ ने उन्हें अपने कंधों पर बिठा कर युद्ध लड़ा। दो तलवारें कल्लाजी के दोनों हाथों में थीं और दो तलवारें जयमल मेड़तिया के दोनों हाथों में थीं। इस तरह एक साथ चार तलवारें चलती देख लोगों ने उन्हें चार हाथों वाला देवता कहा। इस युद्ध के बड़ी संख्या में शत्रुओं का संहार करने के बाद कल्लाजी और जयमल दोनों ही वीरगति को प्राप्त हुए। 

चित्तौड़ के किले में बनी है छतरी

कल्लाजी की छतरी चित्तौड़ के किले में बनी है। चित्तौड़ के किले के एक द्वार का नाम भैरव पोल है, यह भैरव पोल का नाम कल्लाजी के गुरु भैरवनाथ के नाम पर है। कल्लाजी की याद में चित्तौड़ के किले में अश्विन शुक्ल नवमी के दिन एक मेला आयोजित होता है। 

रनेला में है प्रमुख उपासना स्थल

कल्लाजी का प्रमुख उपासना स्थल रनेला गांव (तहसील सलूम्बर-जिला उदयपुर) में है। डूंगरपुर जिले के समालिया स्थान पर भी इनका एक प्रसिद्ध उपासना स्थल है, जहां एक काले पत्थर की इनकी प्रतिमा है। इस स्थान पर इन्हें केसर और अफीम चढ़ाई जाती है। इसके अलावा बांगड़ क्षेत्र (बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले) में इनके सौ मन्दिर और भी हैं। स्थानीय भील जाति के लोगों में इनके प्रति बड़ी आस्था है।

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