योगेंद्र सिंह छोंकर (संस्थापक संपादक)
देश की आजादी के बाद तत्कालीन मथुरा जनपद के क्षेत्र को दो लोकसभा क्षेत्रों में विभाजित किया गया। पूर्व में सादाबाद तहसील भी मथुरा जनपद का भाग हुआ करती थी। पहले आम चुनाव के लिए मथुरा जनपद के पश्चिमी भाग के लिए मथुरा (पश्चिम) के नाम से एक लोकसभा सीट बनाई गई। कमोबेश यह आज की मथुरा लोकसभा सीट वाला ही भाग था। मथुरा जनपद के कुछ पूर्वी भाग तथा एटा जनपद के कुछ पूर्वी भाग को मैनपुरी जनपद के साथ मिलाकर एक अन्य लोकसभा क्षेत्र बनाया गया। जिसे एटा(पश्चिम) कम मैनपुरी कम मथुरा (पूर्व) का नाम दिया गया। यह कमोबेश आज की जलेसर लोकसभा सीट वाला क्षेत्र था।
मथुरा(पश्चिम) सीट पर प्रो. कृष्ण चंद्र बने पहले सांसद
मथुरा सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी प्रो. कृष्ण चंद्र ने निर्दलीय राजा महेंद्र प्रताप को 18261 वोट से हराकर जीत दर्ज की। दोनों ही प्रत्याशी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सेदार रहे थे। प्रो. कृष्ण चंद्र ने कांग्रेस में रहकर स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेते हुए संघर्ष किया था और कई बार जेल गए थे। वहीं, राजा महेंद्र प्रताप ने देश के बाहर रहकर स्वतंत्रता आंदोलन शुरू किया था। उन्होंने काबुल में पहली बार आजाद भारत सरकार का भी गठन किया था। समाज सुधार के कार्यों में भी राजा महेंद्र प्रताप की महती भूमिका थी। दोनों ही नेता जनता के बीच खासे लोकप्रिय थे। तथापि जीत कांग्रेस के प्रो. कृष्ण चंद्र के हाथ लगी। करपात्री जी महाराज की पार्टी राम राज्य परिषद के प्रत्याशी बंगाली संत बन महाराज ने भी इस चुनाव में हिस्सा लिया पर वह महज 11 फीसदी वोटों पर सीमित रह गए।
वर्तमान जलेसर वाली सीट से चौधरी दिगंबर सिंह बने पहले सांसद
एटा(पश्चिम) कम मैनपुरी कम मथुरा (पूर्व) नाम वाली वर्तमान जलेसर कही जा सकने वाली सीट से कांग्रेस के चौधरी दिगंबर सिंह ने सोशलिस्ट पार्टी के गंगा सिंह को 63079 वोट के भारी अंतर से हराकर जीत दर्ज की। भारतीय जनसंघ के बाबू राम यादव को यहां तीसरा स्थान मिला।
1951 के लोकसभा चुनाव में मथुरा सीट पर एक भी वोट नहीं हुआ कैंसिल
21 – मथुरा सीट पर कुल वोटर्स की संख्या 376706 थी, जिनमें से 48.40 प्रतिशत यानी 182335 ने वोट डाले। 27 मार्च 1952 के दिन मथुरा सीट के लिए मतदान हुआ था। इस चुनाव में एक भी वोट कैंसिल नहीं हुआ था क्योंकि तब तक ठप्पा लगाने का सिस्टम चलन में नहीं था। एक पर्ची पोलिंग पार्टी द्वारा मतदाता को दी जाती थी। मतदान कक्ष में हर उम्मीदवार के लिए अलग अलग मतपेटी रखी जाती थी, जिस पर प्रत्याशी का चुनाव चिन्ह अंकित रहता था। वोटर को जिस उम्मीदवार को वोट देना होता था उसी की पेटी में उस पर्ची को डाल देता था। यह पर्ची ही वोट कही जाती थी। ऐसे में गलत तरीके से ठप्पा लगने का खतरा ही नहीं था और वोट कैंसिल नहीं हो पाते थे।
मथुरा लोकसभा सीट का चुनाव परिणाम
इस चुनाव में कांग्रेस से प्रो. कृष्ण चंद्र, राम राज्य परिषद से बन महाराज, सोशलिष्ट पार्टी से शांति चरण पिंडारा, किसान मजदूर प्रजा पार्टी से शंकर लाल ने चुनाव लडा। राजा महेंद्र प्रताप और डोरीलाल शर्मा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में थे। मुख्य मुकाबला कांग्रेस के प्रो. कृष्ण चंद्र और निर्दलीय प्रत्याशी राजा महेंद्र प्रताप के बीच रहा। प्रो. कृष्ण चंद्र ने 71235 वोट हासिल करके निर्दलीय राजा महेंद्र प्रताप को 18261 वोट से हराया। राजा महेंद्र प्रताप को 52974 वोट मिले। तीसरे स्थान पर रहे राम राज्य परिषद के प्रत्याशी बन महाराज जिन्हें 21335 वोट मिले। चौथे स्थान पर रहे सोशलिस्ट पार्टी के शांति चरण पिंडारा जिन्हें 17791 वोट मिले। निर्दलीय डोरी लाल शर्मा को 11135 तथा किसान मजदूर प्रजा पार्टी के शंकर लाल को 7847 वोट मिले।
आइए जानते हैं मथुरा के पहले सांसद प्रो. कृष्ण चंद्र के बारे में
प्रो. कृष्ण चंद्र का जन्म बिजनौर जिले के दारानगर गांव में वर्ष 1895 ईस्वी में हुआ था। इनके पिता का नाम लाला श्री राम था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गवर्नमेंट हाईस्कूल बिजनौर में हुई। उच्च शिक्षा इन्होंने मूर सेंट्रल कॉलेज इलाहाबाद से प्राप्त की। शिक्षा प्राप्ति के बाद ये कॉलेज में प्रोफेसर बन गए। इनका विवाह वर्ष 1913 ईस्वी में शांति देवी के साथ हुआ। इनके घर एक पुत्र तथा तीन पुत्रियों का जन्म हुआ। नौकरी के सिलसिले में इनका कार्यक्षेत्र मथुरा वृंदावन में हो गया। यहां रहते हुए ये वर्ष 1919 में कांग्रेस से जुड़े और देश के स्वाधीनता आंदोलन में शामिल हो गए। वर्ष 1921 में इन्होंने अपनी प्रोफेसर की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और सक्रिय रूप से कांग्रेस के लिए काम करने लगे। स्वाधीनता आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए इन्हें वर्ष 1921, 1930, 1931, 1932, 1933, 1941 तथा 1942 में जेल यात्राएं करनी पड़ीं। ये जिला कांग्रेस कमेटी मथुरा के अध्यक्ष रहे तथा यूपी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे। इसके अलावा इन्होंने कांग्रेस के संगठन में विभिन्न पदों पर रह कर कार्य किया। ये वृंदावन नगर पालिका के चेयरमैन भी चुने गए। ये दो बार प्रदेश की लेजिस्लेटिव असेंबली के लिए सदस्य भी चुने गए। देश की आजादी के बाद इन्हें मथुरा का पहला सांसद बनने का गौरव हासिल हुआ। हरिजन उत्थान, किसान उत्थान, समाज में महिलाओं की दशा में सुधार आदि के लिए इन्होंने महत्त्वपूर्ण कार्य किया। अगले लोकसभा चुनाव में वर्ष 1957 में कांग्रेस पार्टी ने मथुरा सीट से इनका टिकट काट कर जलेसर सीट के प्रथम सांसद चौधरी दिगंबर सिंह को मथुरा से टिकट दिया। वहीं इन्हें जलेसर से टिकट दिया। जहां इन्होंने फिर से जीत दर्ज की और दूसरी बार लोकसभा पहुंचे।
You must log in to post a comment.