सारे उत्तर भारत में सर्दी का प्रकोप है हिमालय की चोटियों से लेकर विंध्य की पर्वतमाला तक शीत से कंपकपा रही है। ऐसे में कान्हा का ब्रज भला इस शीत से अछूता कैसे रह पाएगा! ब्रज की भक्ति हो या ठाकुर सेवा दोनों ही में भावपक्ष की प्रधानता है। यही वजह है कि तीनों लोकों के स्वामी लाडलीलाल सरकार को भी इस सर्दी से बचाने की फिक्र ब्रजमंडल के तमाम मंदिरों के सेवायतों को सबसे पहले होती है। ब्रज के कृष्ण तो बालकृष्ण हैं, प्यार से लाला कह कर पुकारे जाते हैं। इसी तरह राधा रानी लाडली हैं लाली कही जाती हैं। भाव प्रधान सेवा में ही यह देखने को मिल सकता है जहां मंदिरों की सेवा प्रणाली के संस्थापकों ने भोग और सेवा का क्रम ऋतु अनुकूल बनाया। ब्रजमंडल के देवालयों में ठाकुरजी को अर्पित किए जाने वाले भोग में शीतकाल में क्या खास बदलाव किए जाते हैं इस पर प्रकाश डालती हुई सुशील गोस्वामी की यह रिपोर्ट:
सर्दियों में लगाते हैं खिचड़ी का भोग
सर्दियों के मौसम में ब्रज के अधिकांश मंदिरों में खिचड़ी महोत्सव होता है। इसके अंतर्गत एक मास तक ठाकुरजी को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। यह खिचड़ी विशेष होती है जिसमें चावल और दालों के गर्म मसालों और मेवाओं का समावेश रहता है। ब्रजमंडल में नंदगांव, बरसाना, गोवर्धन, जतीपुरा, बलदेव, गोकुल और वृन्दावन के मंदिरों में पौष मास के प्रारम्भ होते ही मेवा और गर्म मसाले आदि से युक्त खिचड़ी का भोग ठाकुरजी को लगाना शुरू कर दिया जाता है। जो पूरे एक माह तक रोजाना लगाया जाता है।
नंदबाबा मंदिर में मीठी खिचड़ी का भोग
नंदगांव के नंद बाबा मंदिर में ठाकुरजी को मीठी खिचड़ी का भोग लगाया जा रहा है। जी हां! मीठी खिचड़ी सुनकर जरूर आप चौंक गए होंगे, लेकिन यह सच है, नंदबाबा मंदिर में मीठी खिचड़ी का ही भोग ठाकुरजी को प्राचीन परंपरा के अनुसार लगाया जा रहा है। नंदबाबा मंदिर के सेवायत आचार्य ब्रजेश गोस्वामी बताते हैं कि पूरे एक माह तक ठाकुरजी को शीत से बचने के लिए और ऊष्मा देने के लिए मीठी खिचड़ी का भोग धराया जाएगा। यह मीठी खिचड़ी चावल और चने की दाल से बनाई जाती है। इसे बनाने के लिए दाल चावल को दूध में रात्रि को भिगो दिया जाता है। और सुबह दूच में ही इसको पकाया जाता है। इसमें काजू, बादाम, किशमिश, पिस्ता, नारियल, अखरोट आदि मेवाओं के साथ देशी घी और शक्कर डाली जाता है। खिचड़ी भोग श्रृंगार आरती के बाद लगाया जाता है। रोजाना करीब एक मन खिचड़ी का भोग ठाकुरजी को अर्पित किया जाता है। जिसे प्रसाद के रूप में बच्चों को बांटा जाता है। बरसाना के श्रीजी मन्दिर में नमकीन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। वहीं ठाकुरजी को रजाई, शॉल, टोपा, मफलर आदि भी ओढाये जा रहे है। अंगीठी में कोयला जलाकर तपाया भी जा रहा है।
वृंदावन के मंदिर और खिचड़ी भोग
नंदगांव-बरसाना के साथ-साथ वृन्दावन के प्राचीन सप्त देवालयों में भी एक मास का खिचड़ी महोत्सव होता है। इसकी शुरुआत मार्गशीर्ष मास यानी अगहन शुक्ल पक्ष की द्वादशी से होती है। वृंदावन के बांकेबिहारी मन्दिर में खिचड़ी महोत्सव पौष माह की शुरुआत से ही प्रारंभ हो जाता है। वृन्दावन के ही राधाबल्लभ मन्दिर में खिचड़ी महोत्सव की शुरुआत पौष मास की मकर संक्रांति से होती है। सभी मन्दिरों में यह महोत्सव एक महीने तक चलता है। ब्रज के मन्दिरों का खिचड़ी महोत्सव एक प्रकार से ठाकुर की शीतकालीन सेवा है।
राधारमण मंदिर और खिचड़ी भोग
वृंदावन के राधारमण मन्दिर के सेवायत आचार्य पद्मनाभ गोस्वामी बताते हैं कि लाला को शीत से बचाने के लिए उनके अभिषेक में भी गर्म पानी का प्रयोग किया जाता है। साथ ही उन्हें हिना या केशर का इत्र लगाया जाता है। मोजे, टोपा और गर्म शाल आदि धारण कराए जाते हैं। इस दौरान एक एक महीने तक चरण दर्शन बन्द रहते हैं। लाला को सर्दी से बचाने के लिए उनके भोग के लिए बनाए जाने वाले व्यंजनों में केशर का बहुत अधिक उपयोग किया जाता है। दाल-चावल की खिचड़ी में लौंग, बड़ी इलाइची, तेजपात, काली मिर्च, मेवा तथा अन्य पदार्थों को मिलाया जाता है। खिचड़ी के साथ पापड़, सब्जियां, दही, अचार, कुलिया, खीर, मेवे के लड्डू, गर्म दूध, उड़द की दाल के लड्डू तथा अन्य विभिन्न व्यंजनों का उपयोग किया जाता है जिसे श्रंगार भोग के समय लाला को अर्पित किया जाता है। व्यंजन द्वादसी से ही कोयले की अंगीठी लाला के सामने रखी जाती है। अंगीठी चांदी की होती है। भाव की सेवा के अन्तर्गत राग सेवा भी मन्दिर में होती है जिसमें विभिन्न पदों का गायन राग मालकोस में होता है।
राधादामोदर मंदिर का खिचड़ी भोग
वृंदावन के राधादामोदर मन्दिर के सेवायत आचार्य कृष्ण बलराम गोस्वामी बताते हैं कि उनके मन्दिर में 27 दिसंबर से शुरू हुआ खिचड़ी महोत्सव 13 फरवरी तक यानी वसंत से एक दिन पहले तक चलेगा। पहले दिन इसका स्वरूप अन्नकूट जैसा रहता है।बाद में मेवा, लौंग, बड़ी इलाइची, जावित्री, काली मिर्च जैसे पदार्थ खिचड़ी में मिलाए जाते हैं जो ठाकुरजी को गर्मी दे सकें। इसके साथ ही मेवे की मिठाइयां, बादाम का हलुआ, गोभी और बथुआ के पराठे, पापड़ और दही ठाकुरजी को अर्पित की जाती है। ठाकुरजी ने रजाई ओढ़ना तथा गर्म कपड़े पहनना शुरू कर दिया है भोग में केशर का उपयोग बहुत अधिक किया जाता है तथा लाला को रात में केशरयुक्त दूध दिया जाता है। लाला को सर्दी से बचाने के लिए उनके सामने चांदी की सिगड़ी रखी जाती है और लाला रजाई ओढ़ने लगते है।
राधा श्यामसुंदर मंदिर का खिचड़ी भोग
वृंदावन के राधा श्यामसुन्दर मन्दिर मेें मार्गशीर्ष महीने की शुरुआत से ही ठाकुर को गर्म जल से स्नान कराते हैं। इस मन्दिर के सेवायत आचार्य कृष्णगोपालानन्द देव प्रभुपाद बताते हैं कि इस मन्दिर में भी एक महीने तक खिचड़ी महोत्सव चलता है। लाला की खिचड़ी लौंग, काली मिर्च, जावित्री आदि गर्म पदार्थों के साथ विभिन्न प्रकार की मेवा, दही बड़ा, नाना प्रकार की मिठाइयां, साग सब्जियां, बादाम का हलुआ तथा विभिन्न प्रकार के केशरयुक्त व्यंजन अर्पित किये जाते हैं और लाला को गर्म कपड़े धारण कराने के साथ साथ उनके सामने चांदी की सिगड़ी भी रखी जाती है। इसी प्रकार का खिचड़ी महोत्सव अन्य सप्त देवालयों में होता है। खिचड़ी का प्रसाद केवल श्रंगार भोग में ही अर्पित होता है। इसका एक किनका प्रसाद पाने के लिए भक्त लालायित रहते हैं। मान्यता है कि यह सेवा आराध्य देव ठाकुरजी को शीत से बचाने के लिए की जाती है इसलिए इसका का एक दाना भी मोक्ष प्रदायक होता है।
(हिस्ट्री पंडित डॉटकॉम के लिए यह आलेख सुशील गोस्वामी ने लिखा है। सुशील नंदगांव में रहते हैं। वे नंदबाबा मंदिर, नंदगांव के सेवायत हैं तथा पेशे से पत्रकार हैं।
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