मानसी गंगा श्री हरदेव, गिरवर की परिकम्मा देव।
कुंड कुंड चरणामृत लेव, अपनो जनम सफल कर लेव।।
गोवर्धन में गिरिराज की परिक्रमा के दौरान यह पंक्ति आपको अवश्य सुनने को मिलेगी। इसमें मुख्य रूप से दो नाम आते हैं। पहला मानसी गंगा और दूसरा हरदेव जी। आज हम चर्चा करते हैं हरदेवजी कि बारे में।
कौन हैं हरदेवजी
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हरदेवजी श्रीकृष्ण के सात वर्षीय वह स्वरूप हैं जिन्होंने गिरिराज पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया था। श्रीकृष्ण के पौत्र वज्रनाभ ने ब्रज में चार सेव्य विग्रह स्थापित किए थे। हरदेवजी उनमें से एक हैं। अन्य तीन गोविंददेवजी, केशवदवजी और बलदेवजी हैं। कालांतर में ये चारों विग्रह लुप्त हो गए।
केशवाचार्य ने किया पुनः प्राकट्य
हरदेवजी के विग्रह का पुनः प्राकट्य सन्त केशवाचार्य जी ने किया। एक बार श्रीकृष्ण ने इन्हें स्वप्न में हरदेवजी के विग्रह के बारे में बताया। इन्होंने बिछुआ कुंड की खुदाई करवाई। वहां से हरदेवजी का दिव्य विग्रह प्राप्त हुआ। उस विग्रह को केशवाचार्य अपनी कुटिया में ले आये और उनकी सेवा पूजा करने लगे।
कौन थे केशवाचार्य जी
केशवाचार्य जी ग्वालियर के पास किसी गांव के रहने वाले सनाढ्य ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम मोहन मिश्र और माता का नाम भागवती देवी था। इस दम्पत्ति को वृद्धावस्था में एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम केशव रखा गया। केशव शुरू से ही हरिभक्ति में लीन रहने लगे। ये घर छोड़कर वृन्दावन आ गए। एक बार गहवरवन में घूमते हुए ये अचेत हो गए। तब श्रीज्ञानदेव जी ने इन्हें सचेत किया और मंत्र दीक्षा दी। केशवाचार्य गोवर्धन की तलहटी में रहने लगे। वहीं उन्हें हरदेवजी का साक्षात्कार हुआ।
आमेर के राजा ने बनवाया मन्दिर
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हरदेवजी के मन्दिर का निर्माण आमेर के राजा भगवान दास ने संवत 1637 में कराया था। ये राजा भगवान दास अकबर के नवरत्नों में से एक राजा मान सिंह के पिता थे। लाल बलुए पत्थर से बना यह मन्दिर बहुत विशाल था। उन दिनों इसकी महत्ता बहुत हो गयी थी। गिरिराज की परिक्रमा के दो महत्वपूर्ण स्थान मानसी गंगा और हरदेवजी मन्दिर ही थे। इस मंदिर की व्यवस्था के लिए भगोसा और लोधीपुरा के गांव दे दिए गए जिनसे 2300 रुपये की सालाना आमदनी होती थी। भरतपुर राज्य की और से 500 रुपए सालाना बांधे गए।
औरंगजेब की मन्दिर विरोधी नीति का प्रभाव
यह विशाल मंदिर संवत 1736 में औरंगजेब की मन्दिर विरोधी नीति का शिकार हुआ। मन्दिर को मुग़ल हमले के द्वारा तोड दिया गया। मन्दिर में विराजमान हरदेवजी का विग्रह वहां से स्थानांतरित करना पड़ा। यह विग्रह आजकल कानपुर जिले के रजधानी बुधौली गांव में स्थापित है। यहां इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि यह मन्दिर मुगल हमले में आंशिक रूप से ही क्षतिग्रस्त हुआ हो। हरदेवजी की प्रतिमा को रजधानी बुधौली भी हो सकता है बाद में कभी ले जाया गया हो। जिस तरह से भरतपुर राज्य की और से यहां के लिए अनुदान तय किया गया उससे सिद्ध होता है कि औरंगजेब के बहुत बाद तक यह मन्दिर अच्छी खासी अवस्था में रहा होगा।
जब ग्राउस ने किए जीर्णोद्धार के प्रयास
इस मंदिर की छत देखरेख के अभाव में 1872 ईसवी तक बेहद जर्जर हो गयी थी। bharatdiscovery.org के अनुसार उन दिनों इस मंदिर की छत गिरासू हाल में थी। यह छत मेहराबदार और अलंकृत थी। ग्राउस उन दिनों मथुरा के जिलाधीश थे। उन्होंने इस छत की मरम्मत के खर्च का अनुमान करवाया। उस समय इंजीनियरों ने यह खर्च 8767 रुपये बताया। इस कार्य के लिए उच्चाधिकारियों की अनुमति समय से नहीं मिल सकी।
अडींग के छीतरमल ने बनवाई छत
अडींग निवासी सेठ छीतरमल ने इस मंदिर की छत को सुधरवाने का जिम्मा उठाया। उसने अपने निजी और अल्प व्यय के बल पर यह कार्य कराया। कम लागत होने के कारण उसने पहले जैसी अलंकृत छत के स्थान पर दीवारों पर लकड़ी की बेडौल कड़ियां रखवा कर पटवा दी।