संपूर्ण विश्व को एकता के सूत्र में पिरोने वाला स्रोत भक्ति ही है ।भक्ति देश ही नहीं वरन विश्व में समन्वय की प्रेरणा देने वाली शक्ति के रूप में सदैव प्रवाहमान रही है। पूर्व से पश्चिम तक उत्तर से दक्षिण तक सभी को एक सूत्र में बांधने में वैष्णव भक्ति का योगदान सर्वोपरि है। श्रीमद्भागवत के महात्म्य में द्रविड़ प्रदेश को भक्ति का जन्म स्थान कहा गया है। कबीर दास जी भक्ति उपजी द्राविड़ी मानते हैं। द्रविड़ प्रदेश के वैष्णव संतो को आलवार कहा जाता है आलवार संतों की संख्या 12 है।
दक्षिण की मीरा आंडाल
द्रविड़ की महान आलवार संत आंडाल को गोदांबा के नाम से भी पहचाना जाता है। आंडाल के जन्म के विषय में जनश्रुति प्रचलित है कि यह अपने पिता विष्णुचित्त पेरीयाल को पुष्प वाटिका में शिशु रूप में प्राप्त हुई थी। आंडाल की जन्मतिथि के विषय में मतभेद है लेकिन इनका जन्म 715 ईसवी के आसपास का माना जाता है। आंडाल का तुलनात्मक अध्ययन में डॉ. एन. सुंदरम लिखते हैं कि “मीरा और आंडाल दोनों कृष्ण भक्त हैं यह दोनों ही अपनी परा भक्ति द्वारा भगवान श्री कृष्ण के विराटत्व में एकाकार हो गई हैं। मीरा और आंडाल ने अपने पदों में जन्म जन्मांतरों के लिए विराटत्व मैं एकाकार होने की भावना व्यक्त की है।”
परम विष्णु भक्त
बाल्यकाल से ही आंडाल परम विष्णु भक्त थी, वह पिता के साथ भक्ति गान करते हुए माला गूंथा करती थीं। यह माला श्री रंगनाथ भगवान को समर्पित की जाती थी। आंडाल इस माला को पहले स्वयं धारण करती थी। आंडाल ने मीरा की तरह ही विष्णु को पति रूप में वरण किया था। एक दिन भेद खुल जाने पर आंडाल द्वारा पहनी गई माला श्री रंगनाथ को धारण नहीं कराई गई ,तब भगवान ने स्वयं स्वप्न में आदेश दिया कि मुझे आंडाल द्वारा धारण की गई माला ही अर्पित करो। तब से आंडाल “धृतमुक्तमाला नायिका” कहलाई
श्री रंगनाथ के साथ एकाकार
गोदा अपने को गोपी मानकर प्रेमानंद में डूबकर श्री रंगनाथ के विरह में तड़पती रहती। उनके साथ अनेक लीलाएं करती। श्री रंगनाथ ने गोदा की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे प्रियतमा के रूप में स्वीकार किया। विष्णुचित्त को सपने में आदेश देकर गोदा को मंदिर में लेकर पहुंचने को कहा। जैसे ही पेरियार गोदा को लेकर मंदिर आए गर्भ गृह में प्रवेश करते ही गोदा श्री रंगनाथ की प्रतिमा में विलीन हो गई, तब से गोदा का नाम आंडाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आंडाल का अर्थ है जिसने भगवान को प्राप्त किया हो ।
आंडाल की रचनाएं
आंडाल ने अल्पायु में ही दो ग्रंथों की रचना की जो भक्ति के श्रेष्ठ ग्रंथ माने जाते हैं। तिरूप्पावै – यह अति सुंदर 30 पदों का मुक्तक काव्य है। इसमें कृष्ण को प्राप्त करने के लिए कात्यायनी देवी की पूजा एवं व्रतानुष्ठान का वर्णन है ।नच्चीयार तुरुमोली- इस ग्रंथ में 143 पदों में श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन है।
वृंदावन के रंगनाथ मंदिर में उत्सव
वृंदावन स्थित श्री रंगनाथ भगवान के मंदिर में भी गोदाम्बा जी का उत्सब मनाया जाता है। 10 दिन तक चलने वाले इस उत्सव में इन १० दिनों में दिव्य प्रबंध जो आलवर दिव्य सूरी लोगों ने भगवान के मुखोल्लास के लिए रचना की है और जिसमें ४००० पद जिन्हें पासुर कहा जाता है, उसका पाठ होता है। तीसरे दिन गोदम्मा जी के द्वारा लिखे गए १४३ पासुरों का पाठ होता है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण एवम् शुभ दिन माना जाता है, इसलिए खिरान्न का भोग लगता है।
(यह आलेख हिस्ट्रीपंडित डॉटकॉम के लिए गोपाल शरण शर्मा ने लिखा है। गोपाल ब्रज संस्कृति के अच्छे जानकार हैं स्वतंत्र पत्रकार होने के साथ साथ वे ब्रज संस्कृति शोध संस्थान वृन्दावन से भी जुड़े हैं।)
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