योगेन्द्र सिंह छोंकर कितना आसाँ था जिनके लिए मुझे हँसाना, रुलाना, मानना मनमर्जी चलाना क्या उतनी ही आसानी से मुझे भुला भी पाएंगी दो खामोश ऑंखें