सौ साल पहले आज ही के दिन मथुरा में जन्मी थीं प्रसिद्ध अदाकारा टुनटुन

(चंद्र प्रताप सिंह सिकरवार, वरिष्ठ पत्रकार)

“सौ साल पहले आज के दिन पहली महिला फिल्म कामेडियन ‘टुनटुन’ का जन्म मथुरा में हुआ था।”

“अफसाना लिख रही हूं दिले बेकरार का, आंखों में रंग भरके तेरे इंतजार का”..वर्ष 1947 में बनी फिल्म दर्द का ये मधुर गाना गाने वाली टुनटन थीं। उनका असली नाम उमा देवी खत्री था। टुनटन का जन्म 11 जुलाई 23 को मथुरा के पास एक गांव में खत्री/पंजाबी परिवार में हुआ था। टुनटुन 13 साल की उम्र में अकेली मथुरा से मुंबई गयी। वहां गोविदा के माता-पिता और खत्री कलाकार अरुण आहूजा व निर्मला देवी के पास जा पहुंचीं।

मुंबई पहुंच कर एक दिन सुप्रसिद्ध संगीतकार नौशाद से टुनटुन बोली कि ‘मुझसे आपने गाना न गंवाया तो मैं तुम्हारे घर के सामने समुद्र में कूद जाऊंगी’। नौशाद के सामने टुनटुन ने गाना- बेताब है दर्द सुनाया। इस गाने को सुनकर नौशाद ने कहा कि तुम गाती अच्छी हो लेकिन स्वर की समझ नहीं है। बाद में टुनटुन की आवाज में—‘अफसाना लिख रही हूं’ गीत काफी फेमस हुआ। इस बीच नौशाद ने जिद पकड़ने पर किशोरी टुनटुन को दिलीप कुमार को सौंप दिया। वर्ष 1950 में दिलीप कुमार की फिल्म ‘बाबुल’ में पहली बार टुनटुन से अभिनय कराया गया। उसी फिल्म से दिलीप ने उमा देवी का नाम टुनटुन रख दिया। वह हिंदी फिल्म जगत की पहली महिला कामेडियन बन गयीं और वर्ष 1950 से लेकर 1995 तक सैकड़ों फिल्मों में काम करके लोकप्रियता को छू लिया। 24 नबंम्बर 2003 को टुनटुन दुनिया से चलीं गयीं।

दरअसल टुनटन अपने जमाने में इतनी लोकप्रिय फिल्म कलाकार बन गयीं थीं कि मोटी औरतों को आज भी टुनटन कहा जाने लगा था।

एक इंटरव्यू में टुनटुन ने कहा था – मुझे अपने गांव अलीपुर का नाम याद है। जो इंटरव्यू व बायोग्राफी इन्टरनेट पर है, उनमें ज्यादातर में उनका जन्म मथुरा के पास एक गांव में लिखा है। एक बायोग्राफी में गांव का नाम अलीपुर लिखा है। एक स्थान पर जन्म स्थान अमरोहा भी लिखा गया है।

आकाशवाणी मथुरा में एनाउंसर रहे श्री कृष्ण शरद ने मुझे बताया था कि उनके परिचित कस्बा गोकुल के एक सज्जन फिल्मों में डायरेक्टर थे। उन्होंने भी खोजबीन की थी। जिसमें यह पता चला था कि टुनटुन रिफाइनरी के पास गांव कोयला अलीपुर की थीं। यहां पाकिस्तान से भाग कर एक-दो पंजाबी परिवार आ गए थे। उनमें से एक परिवार उमा देवी खत्री का था। उनके पिता और भाई की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद अनाथ स्थिति में थीं। भाग कर मुंबई अपने आप पहुंची थीं।

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