मेरी बेटी (मां और बेटी के प्रेम का दर्पण)

(पायल कटियार)

बेटी पाकर धन्य हो गई

जब से वह बड़ी हो गई मैं टेंशन फ्री हो गई

मानो जिम्मेदारी से मुक्त हो गईजब से वह बड़ी हो गई

हर बात को मुझे समझाती बात बात पर टोका करती

जैसे वह अब मेरी मां हो गई मैं उसकी बेटी हो गई

जब से वह बड़ी हो गई

ऐसे मत पहनो वैसे मत पहनो

ढ़ग बताने के लिए मानो मेरी सहेली हो गई

जब से वह बड़ी हो गई

क्यों नहीं रखतीं अपना ख्याल

यह कहकर मुझको डांटा करती

जब से वह बड़ी हो गई

मेरे खाने पीने का भी रखती ध्यान

मिर्च मसाले मेरे बंद मीठे पर भी लगा पाबंद

जब से वह बड़ी हो गई

पहन लेती हो कुछ भी बेतुके से कपड़े

उम्रदराज पर सलीके से रहना मुझे सिखाती

जब से वह बड़ी हो गई

चेहरे की झुर्रियां उसे पसंद न आती इसलिए

योगा करने वह सुबह टाइम से उठाती

जब से वह बड़ी हो गई

बाल एक सफेद न होने देती

होने से पहले ही कलर कर देती

जब से वह बड़ी हो गई

ससुराल में मां कमी को पूरा करती

ससुराल में भी अब मां वह दिखती

जब से वह बड़ी हो गई

मेरे लिए वह लड़ जाती सबसे

अब मैं भी कुछ लापरवाह सी हो गई

जब से वह बड़ी हो गई

उसे देखने को सिर मैं ऊंचा करती

मुझसे भी वह बड़ी हो गई

जब से वह बड़ी हो गई

दुनियां की अब न मैं परवाह करती

क्योंकि मेरी दुनियां अब वही हो गई

जब से वह बड़ी हो गई।

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