देवनारायण राजस्थान समेत गुजरात, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक लोकप्रिय लोकदेवताओं में से एक हैं। इन्हें भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है। देवनारायण जी औषधीय शास्त्र के ज्ञाता के रूप में प्रसिद्ध थे। वैसे तो देवनारायण जी को सभी वर्गों के लोग समान आदर से पूजते हैं पर गुर्जर जाति के लोगों में इनकी खासी मान्यता है। ये गुर्जर जाति के आराध्य देव भी कहे जाते हैं।
देवनारायण जी का सामान्य परिचय
इनके पिता का नाम सवाई भोज था। सवाई भोज गोठा के शासक थे। गोठा वर्तमान में भीलवाड़ा जिले में आता है। इनकी माता का नाम सेडू खटानी था। इनकी माता ने गोठा के समीप मालासेरी डूंगरी की पहाड़ी पर भगवान विष्णु की तपस्या की थी। भगवान विष्णु के आशीर्वाद से इनका जन्म हुआ था। इसीलिए इन्हें भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है। इनके बचपन का नाम उदयसिंह था। इनका जन्म गुर्जरों के नागवंशी कुल की बगड़ावत शाखा में हुआ था। नागवंशी कुल में जन्म लेने के कारण इनका प्रतीक चिन्ह नाग या सर्प है। इनका वाहन घोड़ा है जिसका नाम लीलागर था।
पिता सवाई भोज की हत्या
देवनारायण जी के पिता सवाई भोज की मृत्यु भिनाय के शासक दुर्जनसाल के साथ युद्ध के में हुई। भिनाय वर्तमान में अजमेर में आता है। सवाई भोज और दुर्जनसाल क मध्य पहले से दुश्मनी थी। बाद में गायों की रक्षा के लिए सवाई भोज ने दुर्जनसाल से युद्ध लड़ा। इस युद्ध में सवाई भोज वीरगति को प्राप्त हुए। गायों की रक्षा के लिए प्राण गंवाने के कारण सवाई भोज भी लोकदेवताओं में गिने जाते हैं। भीलवाड़ा जिले के आसींद में इनका मन्दिर बना हुआ है।
छोछू भाट ने की बालक उदयसिंह की रक्षा
सवाई भोज को मारने के बाद दुर्जनसाल ने उनके समस्त परिवार को नष्ट करना चाहा। उसने सवाई भोज के सभी तेईस भाइयों को मार डाला। वह बालक उदयसिंह की भी हत्या करना चाहता था। तब माता सेडू खटानी ने वंश का लेखा जोखा रखने वाले जगा छोछू भाट से बालक उदयसिंह को गोठा गांव से बाहर ले जाने को कहा। छोछू भाट बालक को अपनी झोली में लेकर दुर्जनसाल के सामने से निकल आया और किसी को शक नहीं हुआ।
ननिहाल में हुआ पालन पोषण
बालक उदयसिंह को छोछू भाट उनकी ननिहाल देवास पहुंचा आया। देवास वर्तमान में मध्यप्रदेश में हैं। यहीं पर उदयसिंह का पालन पोषण हुआ। यही उदयसिंह बड़े होने पर देवनारायण जी के नाम से प्रसिद्ध हुए। देवनारायण जी को औषधीय शास्त्र की बहुत अच्छी जानकारी थी। देवास के पास एक स्थान है धार। इस धार के शासक थे जयसिंह पंवार। जयसिंह की एक पुत्री थी जिसका नाम था पीपलदे। पीपलदे बहुत से रोगों से ग्रसित थीं। देवनारायण जी ने पीपलदे का उपचार कर उन्हें स्वस्थ किया। इन्हीं पीपलदे के साथ देवनारायण जी का विवाह हुआ। विवाह के उपरांत देवनारायण जी के घर दो सन्तानों ने जन्म लिया। पुत्र का नाम था बीला और पुत्री का नाम था बीली।
पिता की हत्या का लिया बदला
देवनारायण जी देवास में अपने परिवार के साथ सुख पूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे थे। उन्हें अपने परिवार के साथ हुई ज्यादतियों के बारे में जानकारी नहीं थी। एक दिन उनका जगा छोछू भाट उनके पास पहुंचा। छोछू ने देवनारायण जी को उनके पिता समेत सभी चाचाओं की हत्या का विवरण सुनाया। और उनसे सवाई भोज की हत्या का बदला लेने को कहा। यह सुनकर देवनारायण जी बहुत क्रोधित हुए और देवास से गोठा के लिए चल पड़े। गोठा पहुंचकर उन्होंने सेना का संगठन किया और दुर्जनसाल से युद्ध किया। युद्ध में उन्होंने दुर्जनसाल को पराजित कर उसकी हत्या कर दी। इस तरह देवनारायण जी ने अपने पिता की हत्या का बदला लिया।
जनकल्याण के कार्य किये
पिता की हत्या का बदला लेने के बाद देवनारायण जी ने सन्यास ले लिया। इसके बाद वे एक स्थान पर जाकर रहने लगे जिसे देवमाली कहते हैं। यह देवमाली वर्तमान में अजमेर में पड़ता है। यहां रहते हुए देवनारायण जी ने लोककल्याण के कार्य किये। उन्होंने बहुत से चमत्कारपूर्ण कार्य किये। उन्होंने लोगों को असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाई। इसके बाद देवनारायण जी आजीवन देवमाली में ही रहे। देवमाली में रहने के कारण ही देवनारायण जी देवमालीनाथ कहलाये।
देवनारायण जी के प्रमुख मन्दिर
देवनारायण जी के प्रमुख मन्दिर निम्न स्थानों पर हैं :
देवमाली, यह वर्तमान में अजमेर जिले में है। देवनारायण जी मन्दिर में प्रतिमा के स्थान पर पांच ईंटों की पूजा की जाती है। यह देवनारायण जी का सबसे प्रमुख मन्दिर माना जाता है। आज जब भी कहीं देवनारायण जी का मंदिर बनाया जाता है तो जागती जोत और पूजा के लिए पांच ईंटें देवमाली से ही ले जाई जाती हैं। देवमाली गांव के लोग आज भी ईंटों के मकान नहीं बनाते हैं।
मालासेरी डूंगरी में भी इनका एक मंदिर है। यह भीलवाड़ा जिले में है। यहां राज्य सरकार द्वारा एक मंदिर बनवाया गया है। टोंक जिले में निवाई के पास जोधपुरिया नामक स्थान पर भी देवनारायण जी का एक प्रसिद्ध मंदिर है। देवनारायण जी के मेले बहुत स्थानों पर लगते हैं। पर संख्या के आधार पर उनका सबसे बड़ा मेला यहीं जोधपुरिया में ही लगता है। चित्तौड़गढ़ जिले के देवडूंगरी स्थान पर भी इनका बड़ा मन्दिर है। इस मंदिर का निर्माण मेवाड़ के महाराणा सांगा ने कराया था। मध्यप्रदेश के देवास में भी देवनारायण जी का मंदिर है। देवास शहर का नाम भी देवनारायण जी के नाम पर ही रखा गया है।
देवनारायण जी की फड़
देवनारायण जी की फड़ बहुत महत्वपूर्ण है। यह सबसे पुरानी और सबसे बड़ी फड़ है। यह सर्वाधिक चित्रों वाली फड़ है। इस फड़ का वाचन गुर्जर जाति के भोपे करते हैं। इस फड़ के वाचन के दौरान जंतर नामक वाद्ययंत्र बजाया जाता है। इनकी फड़ के ऊपर भारतीय डाक विभाग ने 2 सितंबर 1992 को पांच रुपए का एक डाक टिकट जारी किया था। देवनारायण जी एकमात्र ऐसे लोकदेवता हैं जिनके ऊपर डाक टिकट जारी किया गया है।
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