खुशाली बाबा मंदिर जलालपुर


आज हम बात करते हैं बाबा खुशाली देव की। खुशाली बाबा सत्रहवीं शताब्दी में हुए थे। वे देवी मां के अनन्य भक्त थे। मां की उन पर बड़ी कृपा थी। कहते हैं कि देवी मां ने उन्हें यह वरदान दिया था कि वे जिसके सिर पर हाथ रख देंगे उसके सब संकट दूर हो जाएंगे। आज भी खुशाली बाबा की बहुत मान्यता है। देश के कौने-कौने से लोग उनके दर्शन करने आते हैं।

खुशाली बाबा की कथा

खुशाली बाबा का जन्म

जलालपुर में मेले के दौरान हवन करते श्रद्धालु।


बाबा का जन्म जलालपुर गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम विजय सिंह था। इनकी माता का नाम लक्ष्मी देवी था। इनका जन्म बघेल समाज में हुआ था। इनका जन्म सन 1648 ईसवी में हुआ था। इनके पिता एक सम्पन्न व्यक्ति थे। पुत्र जन्म पर उन्होंने जोरदार उत्सव आयोजित किया था। खुशाली बचपन से ही धार्मिक प्रवत्ति के थे। ये हमेशा मां दुर्गा की आराधना में लीन रहते थे। इनकी धार्मिक प्रवृत्ति देख इनके पिता विजय सिंह को भय हुआ कि कहीं उनका एकमात्र पुत्र साधु न बन जाये।

खुशाली बाबा का विवाह

जलालपुर स्थित खुशाली बाबा का मन्दिर शक्ति धाम।



पुत्र की अत्यधिक धार्मिक वृत्ति देखकर विजय सिंह ने बचपन में ही उनका विवाह कर दिया। बाबा का विवाह छाता से तय हुआ। बाबा की पत्नी का नाम मुन्नी देवी था। कुछ समय पश्चात मुन्नी देवी ने दो पुत्रों को जन्म दिया। बाबा के पुत्रों के नाम लाला राम और तेजपाल थे। पुत्रों के जन्म के बाद बाबा खुशाली की मां दुर्गा के प्रति भक्ति और बढ़ गई।

खुशाली बाबा का नगरकोट जाना

जलालपुर में मन्दिर में इस पीपल के नीचे श्रद्धालु दीपक जलाते हैं।


एक बार मां दुर्गा ने खुशाली देव को स्वप्न में दर्शन दिए और नगरकोट (कांगड़ा) आने को कहा। बाबा खुशाली देव पैदल ही चल दिये। बड़े कष्ट उठा कर खुशाली देव नगरकोट पहुंचे। वहां के मन्दिर में मां बज्रेश्वरी की प्रतिमा देख उनका मन नहीं भरा।

मां ने दिया वरदान

बाबा खुशाली देव और बाबा हीरामन।


खुशाली देव को उम्मीद थी कि मां के साक्षात दर्शन होंगे पर मन्दिर में प्रतिमा के ही दर्शन हुए। इससे खुशाली देव दुखी हो गए। उन्होंने अपना सिर मन्दिर की चौखट पर मारना शुरू कर दिया। इससे देवी मां प्रसन्न हो गईं। तब देवी मां ने खुशाली देव को साक्षात दर्शन दिए। तब मां ने उन्हें वरदान भी दिया कि वे जिसके सिर पर हाथ रख देंगे उसकी सारी मुसीबतें खत्म हो जाएंगी। इसके बाद खुशाली देव जलालपुर लौट आये। उन्होंने लोगों के कष्ट हरना शुरू कर दिया। जल्द ही उनकी प्रसिद्धि बढ़ गयी।

शिष्य हीरामन और नगरकोट की 21 यात्राएं

शक्ति धाम मन्दिर।



बाबा खुशाली देव मां दुर्गा की कृपा थी। जल्द ही वे लोगों के संकटमोचक के रूप में प्रसिद्ध हो गए। इस समय उनके एक भतीजे हीरा सिंह उनके शिष्य बन गए। हीरा सिंह हीरामन के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। बाबा खुशाली देव और हीरामन ने 21 बार पैदल जाकर नगरकोट की यात्रा की थीं। बाबा खुशाली देव और हीरामन बाबा ने अपने जीवन में अनेक चमत्कार वाले कार्य कर लोगों के कष्टों को दूर किया। 80 वर्ष की अवस्था में खुशाली देव ने देहत्याग किया। कुछ समय बाद हीरामन ने भी शरीर त्याग दिया।

वंशजों ने की सेवा-पूजा


बाबा खुशाली देव और बाबा हीरामन के देहत्याग के पश्चात भी उनकी प्रसिद्धि बढ़ती रही। उनके थान पर उनके वंशज सेवा पूजा का दायित्व संभालते रहे। इस काल अवधि में बाबा के थान पर आने वालों की मनोकामना पूरी होती रहीं और यह स्थान देश भर में प्रसिद्ध हो गया। सन 1905 में इनकी सातवीं पीढ़ी में कन्हैया भगत का जन्म हुआ। कन्हैया भगत का स्वर्गवास सन 1945 में हुआ। कहते हैं यह बाबा की आखिरी पीढ़ी थी।

लालसिंह ने बनवाया मन्दिर


लाल सिंह माधेपुर के निवासी थे जो दिल्ली में जा बसे थे। इन लाल सिंह को एक रात स्वप्न में बाबा खुशाली देव ने दर्शन देकर मन्दिर बनवाने की प्रेरणा दी। लाल सिंह तुरन्त ही जलालपुर पहुंच गए। उन्होंने यहां एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया। यहां बाबा के थान स्थापित किये। बाद में भी देशभर के तमाम भक्तों के सहयोग से मन्दिर का कार्य बढ़ता रहा। 

नवरात्रि के दिनों में लगता है मेला


बाबा खुशाली देव के गांव जलालपुर में नवरात्रि के दिनों में मेला लगता है। देश भर से बघेल समाज के लोग यहां जात लगाने आते हैं। यहां बाबा के थान पर गंगाजल चढ़ाया जाता है। पीपल के नीचे दीपक जला कर मन्नत मांगी जाती हैं। मन्नत पूरी होने पर मन्दिर में घण्टा चढ़ाने की परंपरा है। 

आरती खुशाली बाबा और दुर्गे माई की


आरती शेरावाली की – हीरामन भगत खुशाली की।

माता की मैं आज्ञा पाऊं – आरती बाबा की गाऊं।

माता तेरे चरणन सिर नाउँ – करूं विनती महामाली की। (१) आरती शेरावाली…

खुशाली हीरामन दोऊ – प्रगट भये जलालपुर सोऊ।

चले गए नगर कोटि मेंऊ – करी सेवा महताली की। (२) आरती शेरावाली…

जलालपुर मन्दिर बनवायौ – मूर्ति दुर्गे की लायौ।

दरश करि भारी हरसायौ – माता ने सब रखवाली की। (३) आरती शेरावाली…

फेरि जमुना खंदिकै थायौ – कुंड तेने घर घर खुदवायौ।

प्रेम से जागिन बजवायौ – माता ने सकल दिवाली की। (४) आरती शेरावाली…

भगत तेरे बोलत जैकारे – बघेले उज्ज्वल करि डारे।

खेल खेलत न्यारे – न्यारे प्रभू तुम सब उजियाली की। (५) आरती शेरावाली…

नीर गंगा कौ ले जावै, जलालपुर बाबा हनबाबै।

प्रेम से पूजा करि आबै, करै झांकी बलशाली की। (६) आरती शेरावाली…

जलालपुर दर्शन करि आवै, सुखी होइ धन संपत्ति पावै।आरती श्रीराम गावै, दूर तेरी सब कंगाली की। (७) आरती शेरावाली…

कैसे पहुंचें


जलालपुर उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले का एक छोटा सा गांव है। यह छाता तहसील के अंतर्गत पड़ता है। एनएच 2 से इसकी दूरी सिर्फ 10 किमी है। छाता से बरसाना के रास्ते पर खायरा गांव पड़ता है। इसी खायरा से जलालपुर की सड़क निकलती है। जलालपुर खायरा से करीब दो किमी की दूरी पर है। जलालपुर में प्रवेश करने से पहले ही बाबा खुशाली देव के मन्दिर का उन्नत शिखर दिखाई देता है।


(खुशाली देव और हीरामन की कथा लोकवाचक परम्परा पर आधारित है।)

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