स्टीम नेविगेशन के क्षेत्र में भारतीय व्यापारियों के संघर्ष की अनकही कहानी : सागर के सेनानी

सागरिक परिवहन का किसी भी राष्ट्र की सामरिक और व्यापारिक प्रगति के क्षेत्र में बड़ा योगदान होता है। यूरोपियन लोगों ने अपनी इसी सागरिक क्षमता के बल पर सारे संसार तक अपनी पहुंच बनाई, जिससे न केवल वे दुनिया भर से अपना व्यापार कर पाने में सफल हुए साथ ही नए प्रदेश खोजकर उन पर कब्जा भी कर बैठे। सागर के रास्ते परिवहन का तंत्र बहुत पुराना था और तत्कालीन विश्व के कई देश इसमें पारंगत भी थे लेकिन जब यूरोपीय औद्यौगिक क्रांति के बाद स्टीम नेविगेशन का तंत्र विकसित हुआ तब इस पर यूरोपीय शक्तियों (व्यापारियों) का एकक्षत्र प्रभुत्व स्थापित हो गया। इस तरह सुदूर देशों के साथ होने वाले व्यापार के क्षेत्र में भारत के सभी व्यापारी अंग्रेजी कंपनियों पर आश्रित बनकर रह गए। इस क्षेत्र में भारतीयों का प्रवेश अंग्रेज व्यापारियों को पसंद नहीं था जिसके चलते वे अपनी अंग्रेजी सरकार के अधिकारियों से मिलकर उन व्यापारियों का उत्पीड़न करते थे जिससे भारतीय व्यापारियों को बड़े आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता था। फिर भी भारत के व्यापारी इस क्षेत्र में अपने कदम जमा कर स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कंपनी स्थापित करने के प्रयास करते रहे। इसके बदले में इन व्यापारियों को बड़े नुकसान उठाने पड़े और तमाम तरह के उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा। 

सागर के सेनानी : विषयवस्तु

‘सागर के सेनानी’ पुस्तक में द्वारकानाथ ठाकुर, जमशेदजी टाटा, चिदंबरम पिल्लई और वालचंद हीराचंद जैसे भारतीय व्यापारियों द्वारा स्टीम नेविगेशन के क्षेत्र में अंग्रेज कंपनियों के एकाधिकार को तोड़कर स्वदेशी कंपनियां खड़ी करने के प्रयासों का वर्णन है। भले ही यह लोग उस समय अपने प्रयासों में शत प्रतिशत सफल न हो सके थे, और अंग्रेजी व्यापारिक सत्ता को चुनौती देने की कीमत भी इन्हें चुकानी पड़ी थी, पर इनके प्रयास निसंदेह साहसिक थे जिनकी सराहना की जानी आवश्यक है। ऐसे अल्पज्ञात नायकों का चरित्र आमजन के सामने सरल शब्दों में ला पाना युवा लेखक की सफलता है। 

द्वारकानाथ ठाकुर पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने स्टीम नेविगेशन कंपनी में बराबर की साझेदारी हासिल की थी। जमशेद जी टाटा ने स्टीम नेविगेशन के क्षेत्र में अंग्रेजों के एकाधिकार को टक्कर देने के बदले कड़ा संघर्ष किया तमाम नुकसान सहे। चिदंबरम पिल्लई ने तो खुद का पैसा न होते हुए भी सहयोग जुटा कर स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कंपनी खड़ी की। जिसकी कीमत उन्हें जेल में अमानवीय यातनाएं तक सह कर चुकानी पड़ी। वालचन्द हीराचंद को भी अपनी स्टीम नेविगेशन कंपनी चलाए रखने के एवज में कड़ा संघर्ष करना पड़ा। अंततः अपनी कुशलता और कर्मठता के बल पर वे अपनी कंपनी को बचाए रख पाए।

लेखक परिचय

पुस्तक सागर के सेनानी के लेखक सुशांत भारती दिल्ली में रहते हैं। मंदिर स्थापत्य, भारतीय मूर्तिशास्त्र एवं ब्रज की सांस्कृतिक धरोहरों में उनकी विशेष रुचि है। कविता लेखन, यात्रा करना एवं भारतीय प्राच्य ज्ञान से जुड़े ग्रंथों का पठन पाठन उन्हें अत्यधिक प्रिय है। सुशांत रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड, लंदन के फैलो भी हैं। वर्तमान में सुशांत ब्रजस्थ मंदिर स्थापत्य के शोध एवं प्रलेखन कार्य में संलग्न हैं। पुस्तक सागर के सेनानी प्रधानमंत्री युवा पुस्तक माला कार्यक्रम के अंतर्गत राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, नई दिल्ली से प्रकाशित है। यह अमेजन पर भी उपलब्ध है।

(सुशांत भारती)

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