षष्ठीपूर्ति प्रसंग पर आत्‍मीय संस्‍मरण

प्रसिद्ध विद्वान श्रीकृष्ण जुगनू के जन्मदिन पर विशेष

शैरिल शर्मा

डॉ. श्रीकृष्णकांत चौहान, जिन्हें पूरे देश में डॉ. श्रीकृष्ण ‘जुगनू’ के नाम से जाना जाता है,इस वर्ष 2 अक्‍टबूर को साठ वर्ष की आयु पूर्ण कर रहे हैं। 2 अक्टूबर 1964 को राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के आकोला ग्राम में जन्‍मे जुगनू जी का संपूर्ण कृतित्‍व और व्‍यक्तित्‍व एक ऐसी आभा है जिससे हमारा समूचा समय प्रकाशवान है। उनके व्यक्तित्व में अगाध वात्सल्य बड़ी ही सुगमता से समाहित है। वहीं उनका जीवन हमारे समक्ष संघर्ष, समर्पण और ज्ञान की अनंत यात्रा का जीवंत प्रतीक है। जिसने उन्हें भारत-विद्या के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाला एक अग्रणी विद्वान बना दिया।

जुगनू जी की शैक्षणिक यात्रा स्वयंपाठी के रूप में प्रारंभ हुई। उन्होंने प्राचीन भारतीय इतिहास, हिंदी और अंग्रेजी में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और बाद में मेवाड़ प्रदेश के लोकसाहित्य पर पीएचडी की। इस महत्वपूर्ण कार्य में उन्हें प्रसिद्ध लेखक प्रो. डॉ. नरेंद्र भानावत का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ, जिसने उनके शोध को एक नवीन दिशा प्रदान की।

वह इस यात्रा के एक महत्वपूर्ण संवाहक भी है। दरअसल, जुगनू जी की तरह अध्ययन की इस यात्रा में मैं भी तकरीबन स्वयंपाठी ही रही। यूं भी बड़ों के सहज स्नेह से समय-समय पर लाभान्वित होती रही हूं। स्नातक के शुरूआती दिनों की बात है जब मेरा परिचय जुगनू सर से हुआ। उन दिनों जब खुद मुझे मेरी कलम पर संदेह था और न ही उसके महत्व का उतना भान था। तब उन्होंने बहुत विश्वास के साथ प्रेरणा के बहुतेरे पुंज आंचल में उड़ेले। यह अभिव्यक्ति की बेबाकी उनके विश्वास का परिणाम भी है। आज अपनी शाब्दिक निष्ठा के चलते मुझे इस बात पर कोई संशय नहीं कि शब्दों में वह ताकत होती है, जो जीवन के हर पहलू को संवेदनशीलता से जोड़ती है। कह सकते हैं कि यात्राओं में मिला अपनत्व सफर में थकावट नहीं होने देता।

सोक्रेटीस का कथन है शिक्षा आत्मा के विकास का माध्यम है। जीवन में सर की उपस्थिति कुछ ऐसे है कि आज तक उनका स्नेहिल वरद्हस्त मेरे शीश को जीवन की उठा-पटक में जाने कितनी बार सहलाता आया है। जब कभी यह राह बदलने का सोचा भी तब सर का वाक्य कौंधता कि टिकना नहीं है, चलते रहना है। पुस्तक-परिवार हो या लोक से लेकर परलोक तक का विषय हो, तमाम चर्चाओं का सार एक ही बिंदु पर आकर टिकता। वह है साधनारत अध्ययन। खैर!

सभी विषयों के मध्य सर अक्सर बातचीत में कहते हैं, बेटा यह एक बात हमेशा ध्यान रखना। ऐसे करते-करते बहुतेरे बिंदु एकत्रित हुए और इन्ही बिंदुओं ने ध्यान में एक पूरे कोश निर्माण कर लिया है। इसी कोश से उद्धृत ‘एक बात’ ये है कि उनका मानना है कि “प्राचीन भारतीय ग्रंथों में समाहित ज्ञान आज भी अत्यंत प्रासंगिक है और इसे नई पीढ़ी के लिए सुलभ बनाना अत्यधिक आवश्यक है।” साथ ही हम सबको इन धरोहरों की सेवा हेतु जिम्मेदारी से आगे आना होगा।

भारतीय विद्या और संस्कृत के लिए सर का योगदान महत्वपूर्ण है। सर मूल रूप से ‘शिक्षक कैसा हो’ इस बात का एक आदर्श उदाहरण है। शिक्षक के रूप में उनके कॅरियर की शुरुआत राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, लकापा में हुई। यहां वे केवल शिक्षा देने तक सीमित नहीं रहे; उन्होंने विद्यार्थियों में साहित्य और संस्कृति के प्रति गहरी रुचि विकसित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। उनका उद्देश्य न केवल ज्ञान का प्रसार करना है, बल्कि युवा पीढ़ी में भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव जगाना भी है। जुगनू सर, की उपलब्धियां कई मायनों में प्रशंसा के योग्य हैं। गिनाने बैठें तो सुबह से सांझ हो चले और लेख लंबा।

1982 में उन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा नवोदित प्रतिभा प्रोत्साहन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, 2014 में महामहिम राष्ट्रपति द्वारा उन्हें राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान भी प्राप्त हुआ। ये पुरस्कार उनके समर्पण और ज्ञान की गहराई को दर्शाते हैं। उनका कार्य केवल ग्रंथों के संपादन तक सीमित नहीं रहा है। पाठ एवं पाठक के मध्य उपस्थित भाषाई बाध्यता और दुराव को पाटते हुए उन्होंने भारतीय संस्कृति, इतिहास और कला पर कई महत्वपूर्ण ग्रंथों का अनुवाद और प्रकाशन भी किया है।

अवसरानुकूल वे विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में अपनी सक्रिय भूमिका अदा करते आए हैं। जहां वे भारतीय विद्या के विविध पहलुओं पर अपने विचार प्रस्तुत करते रहे हैं। उनकी उपस्थिति और विचारों ने भारतीय विद्या के मंच को समृद्ध किया है और इसने उन्हें एक प्रबुद्ध विचारक के रूप में स्थापित किया है। उनके द्वारा किया गया कार्य भारतीय विद्या के क्षेत्र में हमारे समक्ष एक नई दिशा और प्रेरणा प्रदान करता है। उनका नाम अध्येताओं के हृदयों में अमिट छाप छोड़े हुए तो है ही साथ ही यह नाम सदैव भारतीय साहित्य और संस्कृति के इतिहास में एक प्रकाश स्तंभ के रूप में अंकित रहेगा। उनका योगदान न केवल विद्या के क्षेत्र में, बल्कि समाज में भी परिवर्तन लाने की अनूठी क्षमता रखता है।

कभी-कभार भावुक हो सर ने कहा, तुम मेरे जैसी हो, इस वाक्य का निर्धारण तो समय करेगा किंतु मैं चाहती हूं सर अध्ययन के क्षेत्र में आपके पद्चिह्नों का अनुसरण करती रहूं। आपके जन्मदिन पर प्रभु से यही प्रार्थना है कि आप दीर्घायु रहें, सदैव स्वस्थ रहें। समय-समय पर मिलते रहें, फोन लगाते ही जय जय का स्वर कानों में घुलता रहे, आवश्यकता पड़ने पर कान कसते रहें और सहज यह स्नेह बनाए रहें। अंत में इतना ही कि मेरे लिए डॉ. श्रीकृष्ण ‘जुगनू’ (सर) का व्यक्तित्व एक प्रेरणा है, जो हमें यह सिखाता है कि ज्ञान की खोज और उसके प्रचार-प्रसार में समर्पण और निष्ठा का महत्व कितना बड़ा होता है। जिस साधन के मूल में साधना हो वह सिद्ध होकर रहता ही है।

(शैरिल शर्मा)

(हिस्ट्रीपंडित डॉटकॉम के लिए यह आलेख शैरिल शर्मा ने लिखा है, शैरिल ब्रज संस्कृति की अध्येता हैं।)

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