सादाबाद जिले का मुख्यालय मथुरा में लाया गया और अस्तित्व में आया वर्तमान मथुरा जिला

जलेसर के परगने के बदले मथुरा को मिले फरह के 84 गांव

गुड़गांव को दिया भिडुकी गांव, बदले में मथुरा को मिला खरौट का गांव

क्या आप जानते हैं कि मथुरा जिले का गठन कब हुआ था? क्या उस समय इसका स्वरूप आज जैसा ही था या कुछ और था? किन किन जिलों को तोड़कर बनाया गया था यह जिला? इससे गठन से पूर्व किस जिले ने अंतर्गत आता था आपका इलाका? उससे भी पहले मुगल काल में क्या थी यहां की प्रशासनिक संरचना??जानना है तो इस आलेख को तसल्ली से पढ़िए:

तो चलिए करते हैं शुरू से शुरू

शुरुआत करने के लिए आज से करीब पांच सौ साल पीछे चलते हैं, उस समय पर दिल्ली की सत्ता पर राज था मुगल बादशाह अकबर का और मथुरा का इलाका उसके अधिकार में आता था। अकबर के समय पर उसकी प्रशासनिक व्यवस्था का विस्तृत वर्णन एक किताब में लिखा गया। यह किताब है आइन-ए-अकबरी और लेखक था अबुल फजल। इस किताब के अनुसार आगरा एक सूबा हुआ करता था, इस सूबे को एक छोटा सा राज्य मान सकते हैं। इस सूबे को तीन सरकारों में बांटा गया था। पहला आगरा स्वयं, दूसरा कोल (वर्तमान अलीगढ़) और तीसरा था सहार (वर्तमान में मथुरा जिले में गोवर्धन से छाता जाने वाली सड़क पर एक ग्राम पंचायत)। इन सरकारों को आज के हिसाब से जिला माना जा सकता है। यह सरकार परगनों में बांटे जाते थे, जिन्हें तहसील के समकक्ष मान लीजिए। इन तीन सरकारों में से कुछ परगने मिला कर एक साथ रखे जाएं तो मथुरा जिला अपने स्वरूप में नजर आना शुरू हो जाएगा।इनमें सहार सरकार का सहार परगना, कोल सरकार का नौह परगना जिसे नौहझील के नाम से जाना जाता है, तथा आगरा सरकार के मथुरा, महोली, मगोर्रा, महावन और खंदौली के परगने शामिल थे।

अकबर के बाद की प्रशासनिक व्यवस्था और वर्तमान मथुरा जिले का क्षेत्र

बाद में मगोर्रा के परगने को विभाजित करके सौंख, सौंसा और अडींग के परगने बनाए गए। महावन के परगने को विभाजित करके मांट, सोनई, राया और सादाबाद के परगने बनाए गए। सादाबाद की स्थापना शाहजहां के शासनकाल में उसके मंत्री शादुल्ला खान ने की थी। सादाबाद के अंतर्गत खंदौली, जलेसर और महावन क्षेत्र से मिलाकर दो सौ गांव शामिल किए गए थे। जलेसर के परगने का विभाजन करके सहपऊ और मुरसान के परगने बनाए गए। औरगजेब के शासनकाल में सहार की सरकार को समाप्त कर दिया गया और उसके स्थान पर मथुरा में नई सरकार बनाई गई लेकिन सहार का परगना अविभाजित बना रहा। मुगलों के बाद इस क्षेत्र में भरतपुर के जाट शासकों में अधिकार में आया तो सहार के परगने को चार परगनों में विभाजित कर दिया गया। सन 1774 में जब नज़फ खान ने जाट शासकों को हरा कर इस क्षेत्र को विजित कर लिया तब नज़फ खान ने सहार और सौंख के परगनों से थोड़ा थोड़ा क्षेत्र निकाल कर गोवर्धन का नया परगना बनाया और रज़ा कुली बेग को जागीर में दे दिया। सन 1782 में नज़फ खान की मृत्यु के बाद यह सम्पूर्ण क्षेत्र मराठा सरदार महादजी सिंधिया ने विजित कर अपने अधिकार में ले लिया। सन 1803 में सिंधिया शासकों से यह ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधिकार में चला गया।

1803 में अग्रेजों द्वारा इस क्षेत्र को विजित करने के बाद की प्रशासनिक व्यवस्था

अग्रेजों द्वारा आगरा से दिल्ली तक का तमाम इलाका वर्ष 1803 में मराठों से जीत लिया गया और अंजनगांव की संधि ने यह क्षेत्र ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकार में दे दिया। इस क्षेत्र की प्रशासनिक व्यवस्था निर्धारित करते हुए अंग्रेजों ने नौहझील का परगना ब्रिटिश जिले फतेहगढ़ में शामिल किया। सादाबाद, सहपऊ, जलेसर, राया, मांट, महावन, सोनई और मुरसान के परगनों को ब्रिटिश जिला इटावा में शामिल किया गया। मथुरा का परगना ब्रिटिश जिला आगरा में शामिल किया गया। गोवर्धन का परगना भरतपुर के राजा रणजीत सिंह द्वारा अंग्रेज सेनापति लेक की सैन्य सहायता के एवज में उसके पुत्र लक्ष्मण सिंह को लगान मुक्त प्रदान किया गया। सौंख, सहार और सौंसा के परगने भरतपुर के राजा के लिए ब्रिटिश की ओर से भेंट में दे दिए गए। कोसी और शेरगढ़ के परगने सिंधिया शासक की रानी बल्लाबाई को प्रदान किए गए।

1804 में अलीगढ़ जिला का गठन

अंग्रेजों ने अलीगढ़ जिले का गठन किया। इसके लिए फतेहगढ़ और इटावा जिलों से नौहझील, सादाबाद, सहपऊ, राया, मांट, मुरसान, जलेसर, महावन, और सोनई के परगने इस जिले के शामिल किए गए। वर्ष 1805 में भरतपुर के राजा रणजीत सिंह ने होलकर शासक यशवंत राव को अंग्रेजों के विरोध में शरण दी। इस पर अंग्रेजों और भरतपुर के राजा के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध के कारण भरतपुर के राजा को सौंख, सहार और सौंसा के परगने अंग्रेजों को वापस सौंपने पड़े। अंग्रेजों ने यह तीनों परगने सिंधिया रानी बैजाबाई और चमनाबाई की जागीर में दे दिए। पर यह व्यवस्था लंबे समय तक नहीं चली। वर्ष 1808 में अंग्रेजों ने कोसी, शेरगढ़, सौंख, सौंसा और सहार के परगने सिंधिया रानियों से वापस लेकर ब्रिटिश जिला आगरा में शामिल कर दिया। इन पांचों परगनों के बदले सिंधिया रानियों को आर्थिक मुआवजा प्रदान किया गया। इस तरह हम देखते हैं की उस समय तक हमारे मथुरा जिले का कहीं कोई अस्तित्व ही नहीं था। यह इलाका अलीगढ़ और आगरा जिलों के अंतर्गत बंटा हुआ था। यह व्यवस्था लंबे समय तक चली।

1824 में सादाबाद जिले का गठन

वर्ष 1824 में अलीगढ़ जिले का विभाजन करके सादाबाद का नया जिला बनाया गया। इस नए जिले में अलीगढ़ जिले से नौहझील, सादाबाद, सहपऊ, राया, मांट, जलेसर, महावन और सोनई के परगने शामिल किए गए। इस समय तक आज के मथुरा जिले का क्षेत्र सादाबाद और आगरा के जिलों में विभाजित नजर आता है। सन 1826 में गोवर्धन के जागीरदार लक्ष्मण सिंह की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने गोवर्धन का परगना भी आगरा जिले में शामिल कर दिया।

सादाबाद से जिला मुख्यालय का मथुरा स्थानातरण

सन 1832 में सादाबाद जिले का मुख्यालय मथुरा शहर में स्थानांतरित किया गया। मथुरा शहर और परगना उस समय तक आगरा जिले का हिस्सा था। मथुरा में अंग्रेजों ने एक सैनिक छावनी बनाई हुई थी जिसके कारण जिला मुख्यालय को सादाबाद से मथुरा लाया गया। इसके बाद आगरा जिले से मथुरा, गोवर्धन, सौंख, सौंसा, सहार, शेरगढ़ और कोसी के परगने इस नए जिले में शामिल किए गए। सौंख और सहार के परगनों से कुछ हिस्सा पृथक कर अडींग का परगना बनाया गया। इस तरह हम देखते हैं कि वर्तमान मथुरा जिला सन 1832 में अस्तित्व में आया। गठन के समय मथुरा के जिले में कुल सोलह परगने थे जिन्हें संयोजित कर आठ तहसीलों का गठन किया गया। यह तहसील नौहझील, जलेसर, मांट, सादाबाद, महावन, सहार, कोसी और अडींग में थीं। मथुरा जिले का गांव भिडूकी गुड़गांव जिले में शामिल कर दिया गया जिसके बदले में गुड़गांव जिले का खरौट गांव मथुरा जिले में शामिल किया गया।

सन 1857 से 1947 के मध्य के परिवर्तन

सन 1857 में विद्रोह के समय सहार की तहसील को स्थानांतरित छाता ले जाया गया। सन 1859 में नौहझील तहसील का विलय मांट तहसील में कर दिया गया। सन 1867 में अडींग की तहसील को स्थानांतरित कर मथुरा ले जाया गया। सन 1874 में जलेसर की तहसील का क्षेत्र मथुरा जिले से निकाल कर आगरा जिले में शामिल कर दिया गया। इसके बदले सन 1878 में आगरा जिले की फरह तहसील के 84 गांवों का क्षेत्र मथुरा जिले में शामिल किया गया। यह फरह की तहसील का क्षेत्र मथुरा की तहसील का हिस्सा बनाया गया। बाद में परगने चलन के बाहर हो गए और प्रशासन उपखंड (सब डिवीजन) या तहसील में विभाजित किया गया। इस समय तक मथुरा जिले में कुल छह तहसील अस्तित्व में थीं। सादाबाद, महावन, मांट, मथुरा, छाता और कोसी। सन 1894 में कोसी की तहसील को समाप्त कर छाता में शामिल कर दिया गया। सन 1923 में महावन की तहसील को समाप्त कर मांट और सादाबाद तहसीलों के बीच विभाजित कर दिया गया।

वर्तमान मथुरा जिले में तहसीलों की स्थिति

देश आजाद होने के समय जिले में कुल चार ही तहसीलें अस्तित्व में थीं। सादाबाद, मांट, मथुरा और छाता।सन 1997 में हाथरस जिले के गठन के समय सादाबाद की तहसील का क्षेत्र मथुरा से निकाल कर उसमें शामिल कर दिया गया। सन 2011 में मांट तहसील का विभाजन कर एक बार फिर से महावन में तहसील का गठन किया गया। सन 2015 में मथुरा और छाता की तहसीलों का कुछ भाग मिलाकर गोवर्धन तहसील का गठन किया गया। वर्तमान में मथुरा जिले में कुल पांच तहसील हैं मांट, मथुरा, छाता, महावन और गोवर्धन।

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